/sootr/media/post_banners/c11ae8c1cb0494be6800bf4a0aaadb09a2e5966bfb070f7165a8f5606f3c8c7d.jpeg)
हरीश दिवेकर। ‘होली कब है’, करीब-करीब सभी को मार्च के इस बहुप्रतीक्षित प्रश्न का जवाब मिल गया है। देशभर में बीजेपी समर्थक बल्लियों उछल रहे हैं। यूपी समेत 4 राज्यों में भगवा सरकार जो बनने जा रही है। यूपी में वृंदावन-बरसाने की होली से फाग उड़ना शुरू होता है, लेकिन इस बार योगी की जीत के बाद से ही फिजा में अबीर घुल चुका है। हमेशा की तरह मोदी ना रुकने वाला नाम बने हुए हैं। 5 राज्यों के नतीजों के दूसरे दिन ही दो दिन के लिए गुजरात पहुंच गए। दिसंबर में उनके प्रदेश में भी चुनाव हैं। 5 राज्यों में चुनाव में बीजेपी, आप का दमखम दिखा तो कांग्रेस, बसपा का रहा-सहा कचूमर भी निकल गया। लोग तो अभी से 2024 लोकसभा चुनाव की तस्वीर साफ करने में जुट गए हैं। मध्य प्रदेश में भी कई खबरें देग पर चढ़ीं। कुछ पकीं, कुछ अधपकी लेकिन चर्चा में रहीं। आप तो सीधे अंदर उतर आइए...
मंत्री घिरे, अफसर ने नहीं की मदद: विधानसभा में जब भी कोई मंत्री विपक्ष के करारे सवालों से घिर जाता है तो सदन की अफसर दीर्घा में बैठे विभाग के अफसर तत्काल विपक्ष के आरोपों का तोड़ निकालने के लिए पर्ची लिखकर भिजवाते हैं। इस बार ऐसा नहीं दिखा। शुद्ध हवा-पानी वाले विभाग के मंत्री पर जब कांग्रेस के युवा विधायक ने सवालों की बौछार की तो मंत्री जी लड़खड़ा गए। उन्होंने हर बार बचने के लिए सवाल का जवाब देने की कोशिश की, लेकिन युवा विधायक एक के बाद एक प्रश्न दागते चले गए। सटीक जवाब ना देने पर मंत्री बगलें झांकते रहे, वहीं विभाग के प्रमुख सचिव चुपचाप बैठे देखते रहे। उन्होंने मंत्री को बिंदूवार जवाब देने के लिए बेहतर तरीके से पर्ची तक बनाकर नहीं दी। साहब की खामोशी देख अफसर दीर्घा में बैठे दूसरे अफसर आपस में खुसफुसाते रहे- मंत्री सीधा-साधा है, इसलिए ढंक गया, दूसरा कोई मंत्री होता तो इन साहब का नपना तय था।
सिंधिया के मंत्री बन रहे निशाना: कांग्रेस के विधायकों के पहले टारगेट पर सिंधिया के मंत्री रहते हैं। हाल ही में विधानसभा में इस बार भी ऐसा ही कुछ देखने को मिला। सिंधिया के मंत्रियों को चुन-चुनकर घेरा जा रहा है। इसके लिए कांग्रेस विधायक पूरी तैयारी करके आते हैं। इन सबके चलते मूल भाजपाई मंत्री राहत महसूस कर रहे हैं। उनका कहना है- सही भी है कांग्रेसी जब भी सदन में आते हैं तो सिंधिया के मंत्रियों को देखकर सबसे पहला ख्याल यही आता होगा कि ये वही हैं, जिनके कारण आज हम सत्ता से बाहर विपक्ष में बैठे हैं। हम खाक छान रहे हैं और ये मलाई।
इक्कीस में से ग्यारह...कोई शक: इंदौर बीजेपी को दो ही नेता चला रहे हैं। एक तुलसी सिलावट और दूसरे कैलाश विजयवर्गीय। जिन्हें ये लग रहा है कि कैलाश जी राष्ट्रीय स्तर पर जाकर स्थानीय मित्रों को भूल गए हैं तो उन्हें अपने विचार पर पुनर्विचार करना पड़ेगा। अगर ना-नुकुर कर रहे हैं तो फिर अभी-अभी घोषित हुई बीजेपी की नगर कार्यकारिणी का गहन अध्ययन करना पड़ेगा। कुल 21 नामों की घोषणा हुई। उनमें से 11 तुलसी सिलावट और विजयवर्गीय एंड फैमिली ले उड़ी। फैमिली बोले तो... कैलाश विजयवर्गीय के अलावा रमेश मेंदोला और आकाश विजयवर्गीय। ये फैमिली यहीं नहीं रुकती। महेंद्र हार्डिया के विधानसभा क्षेत्र क्रमांक 5 में भी इनके रिश्ते-नाते गहरे हैं। दरअसल पांच नंबर का बड़ा हिस्सा कभी दो नंबर यानी मेंदोला के हिस्से में होता था। अब परिसीमन में वो हिस्सा तो हार्डिया के हिस्से गया, लेकिन विरासत में जो नेता मिले वो सब भैया-दादा के भक्त हैं। अब होता यह है कि पार्षदों के टिकट बंटने में भी नाम तो हार्डिया का होता है, लेकिन लोग भैया-दादा के होते हैं। नगर समिति में ऐसा ही कुछ हुआ। रहा सवाल तुलसी सिलावट का तो उनके सारे पांच नाम वो भूतपूर्व कांग्रेसी हैं, जिन्हें वे दलबदल में दहेज में लाए थे। मां कसम, नजारा दिलचस्प होगा। दीनदयाल भवन में बैठक में भाजपाई नीचे बैठेंगे और पुराने कांग्रेसी कुर्सी पर...। समय-समय की बात है।
...कि मेरा यहां कोई नहीं: जीतू पटवारी स्वयंभू फायर ब्रांड नेता हैं। अपनी राजनीति की गाड़ी जिस रफ्तार से इंदौर से भोपाल और दिल्ली दौड़ाते हैं, उतनी ही रफ्तार से राजनीतिक दुर्घटना हो जाती है। कभी कद्दावर नेता महेश जोशी और फिर दिग्विजय सिंह के साए में राजनीति करने वाले जीतू की बाइक पर जब से मंदसौर में राहुल गांधी बैठे हैं, तब से उनकी गाड़ी में ब्रेक ही नहीं लग रहा। राहुल तो उसके बाद कई बार दूसरों की गाड़ी में उतर-चढ़ गए, लेकिन पटवारी को हमेशा लगता है कि आगे बढ़ो...पीछे राहुल भैया बैठे ही हैं। इस उठक-बैठक में हो यह रहा है कि उनके जितने भी अपने थे, वो धीरे-धीरे पराए होते जा रहे हैं। राज्यपाल के अभिभाषण के बहिष्कार में उन्हें एकांतवास का जो सामना करना पड़ा, उसके पीछे उनके दो तरह के शुभचिंतक थे। एक वो जो उन्हें अमेरिका की तरह उकसाकर यूक्रेन बनाना चाहते थे और दूसरे वो जो उनकी तेजी और सपनों को लगाम लगाना चाहते हैं। अब कौन उकसा रहा है और कौन लगाम कसे है, ये अलग से समझाने की जरूरत नहीं। इंदौर से भोपाल तक सारे चेहरे सब की नजर में हैं।
जज ने ले ली क्लास: कहते हैं ना, छोटों को ज्यादा मुंह लगाओगे तो बड़ी कीमत चुकाना पड़ेगी। ऐसा ही कुछ प्रदेश के दो बड़े अफसरों के साथ हुआ....। विभाग के ईएनसी को ज्यादा मुंह लगाना इन साहब लोगों को भारी पड़ गया। सुप्रीम कोर्ट ने छोटे कर्मचारियों के वेतनमान को लेकर फरमान दिया था, जिस पर अमल नहीं हो पाया। ईएनसी के कहने पर इसे गंभीरता से ना लेना इतना भारी पड़ेगा ये तो साहब लोगों ने भी नहीं सोचा था। इंदौर हाईकोर्ट बेंच जज ने पहले विभाग में पदस्थ रहे प्रमुख सचिव और वर्तमान प्रमुख सचिव को कोर्ट में बुलाकर एक घंटे तक खड़ा किया। कोर्ट की अवमानना पर क्लास ली सो अलग...। अब विभाग के इंजीनियर कहते फिर रहे हैं कि साहब लोगों को अब समझ आ गया कि किसकी कितनी सुनना है।
सरकारी एसी-पंखे तक उखाड़ लाए: बाबा महाकाल की नगरी को स्मार्ट बनाने के लिए भेजे गए एक अफसर को जब हटाया गया तो वे अपने साथ सरकारी एसी-पंखे तक निकाल कर ले आए। बताने वाले बताते हैं कि साहब थोड़ा सा सामान लेकर महाकाल की नगरी में आए थे, लौटे तो तीन ट्रक भरकर ले गए। हम आपकी सुविधा के लिए बता दें, इन साहब के कारनामों को देखते हुए जिले के साहब ने ही इन्हें हटाने के लिए उच्च स्तर पर शिकायत की थी, जिसके बाद इन्हें आनन-फानन में हटाया गया। साहब अब मंत्रालय में बड़े साहब लोगों के तबादले-पोस्टिंग आदेश बनाने वाले महकमे में बैठे हैं।