Sidhi. विंध्य की सियासतदानी में इतने दिलचस्प किस्से भरे पड़े हैं कि सुनते-सुनाते कई दिन बीत जाएंगे। इसी सियासतदानी का एक किस्सा सामने आया है जो सीधा कुंवर अर्जुन सिंह से जुड़ा है। उनके फैसले और राजनीतिक सूझबूझ की एक कथा ऐसी भी है जिसमें सिंधी समाज के एक व्यक्ति को पिछड़ा सीट से न केवल नगर पंचायत का अध्यक्ष बनवा दिया बल्कि उसे कोर्ट में भी न्याय दिलाने में सफल रहे। सियासत के गुणा-भाग का वो किस्सा कुछ ऐसा है। नवलदास अपने नाम के पहले और न ही बाद में सरनेम लिखते थे। सीधी शहर के लोग उन्हें आहूजा (सिंधी जाति) ही जानते थे लेकिन 1998 में हुए नगरपालिका चुनाव में वे आहूजा से सीधे लवाना हो गए। लवाना ओबीसी में आता है जबकि आहूजा सामान्य वर्ग से। नवलदास भले ही सामान्य वर्ग से रहे पर पिछड़े वर्ग के लिए आरक्षित नगर पालिका के अध्यक्ष चुने गये। उन्होंने जनमत जीता और हाईकोर्ट से भी उन्हे न्याय मिला। यह सब केवल तत्कालीन केंद्रीय मंत्री रहे स्व. अर्जुन सिंह के चलते संभव हो सका है। सतना के एक कार्यक्रम के दौरान तत्कालीन मुख्यमंत्री (मध्यप्रदेश ) अर्जुन सिंह ने नवलदास को इशारों में ही नगर पालिका चुनाव की तैयारी करने कह दिया था। जब नामांकन भरने को दो दिन रह गया तब नवल दास को लवाना पिछड़ी जाति का प्रमाणपत्र मिल गया। कहते हैं कि पंजाब में सिंधियों की लवाना जाति पिछड़े में आती है जबकि सिंध प्रांत से आए आहूजा, अग्रवानी, सितानी, छुगानी आदि जातियां सामान्य वर्ग में गिनी जाती है।
हाईकोर्ट में दी चुनौती, वहां भी जीते
नवल दास ने लवाना के प्रमाणपत्र के साथ चुनावी मैदान मार तो लिया लेकिन उनके प्रतिद्वंद्वी रहे विनय वर्मा ने नवल दास के जाति प्रमाणपत्र को लेकर हाईकोर्ट में चुनौती दे दी। बताया जाता है कि हाईकोर्ट में भी नवल जीत गये। इसके बाद नवलदास ने पूरे 5 वर्ष अध्यक्ष रहे इतना ही नहीं चुनाव मे देरी के कारण एक वर्ष की अतिरिक्त भी कार्यकाल रहा। सहज,मिलनसार स्वभाव के रहे 'चचा' का कार्यकाल आज भी सीधी के जेहन में रचा बसा है।
नवल चचा आज भी नहीं छोड़ पाए फक्कड़पन
नवल दास नगर पालिका अध्यक्ष चुने जाने के पहले भी सिंधी समाज के सर्वमान्य नेता, अध्यक्ष रहे। कांग्रेस और खासकर अर्जुन सिंह से जुड़े रहे जिस कारण उन्हें किसी की मदद करने में कोई अटक नहीं पड़ी। अध्यक्ष बनने के बाद भी उनके स्वभाव में कोई अंतर नहीं आया। मसलन, कोई थाना, तहसील, नगरपालिका की समस्या लेकर आ गया तो वे नहीं देखते थे कि लुंगी में हैं या तौलिया लपेटे हैं बस चल पड़ते थे। फिर वहां पहुंचने के बाद संबंधित अधिकारी से बिना किसी भूमिका, आदर भाव के उलाहने भरे लहजे में कहने लगते की क्यों खामखा परेशान कर रहे हो गरीब को। जल्दी इसका काम करो नहीं ठीक नहीं होगा। अधिकारी भी जानते थे कि चचा किसी की सुनेंगे नहीं फलत: काम कर देते। चाचा अब 94 वर्ष के करीब हैं , भले राजनीति से दूर हों, अध्यक्ष के बाद विरक्त हो गए हों पर इस उम्र में भी सामाजिक कार्यों में सहभागिता निभाने में पीछे नहीं देखे जाते।
अर्जुन सिंह की पारखी नजर ने कई नगीने चुने
स्व.अर्जुन सिंह की पारखी नजर ने एक नहीं कई नगीने चुने । नवलदास तो उनमें से एक रहे ही, स्व. इंद्रजीत कुमार, स्व.जगवा देवी, स्व. तिलकराज सिंह गोंड़, मोतीलाल, मधु शर्मा जैसे कई नाम हैं जिन्हें अर्जुन सिंह ने ही राजनीति के पटल पर रखा। इसमें स्व. इंद्रजीत कुमार तो विधायक से कैबिनेट मंत्री तक का सफर तय किया। लगातार सात बार विधायक चुने जाते रहे। वंचित , पिछड़े वर्ग के नेता के रूप में पूरे प्रदेश में जाने गए। आज जगवा देवी , तिलक राज, मोतीलाल के आदिवासी नेता के रूप यदि नाम है तो वह अर्जुन सिंह की देन है। खैर, सीधी- सिंगरौली जिले में ऐसे कई नेता, जनप्रतिनिधि मिल जाएंगे जिन्हें अर्जुन सिंह ने न कि खोज निकाला बल्कि भरपूर राजनीतिक अवसर भी दिया।