BHOPAL: मप्र के सीएम रोज सीएस से क्यों पूछते थे आज नाश्ते में क्या है, किशोर कुमार के गानों पर किसने लगाई थी रोक ?

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Sunil Shukla
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BHOPAL: मप्र के सीएम रोज सीएस से क्यों पूछते थे आज नाश्ते में क्या है, किशोर कुमार के गानों पर किसने लगाई थी रोक ?

BHOPAL. भारतीय लोकतंत्र के इतिहास (History of Indian Politics) में 25 जून की तारीख को काले दिन के रूप में याद किया जाता है। ऐसा इसलिए क्योंकि1975 में 25 जून के दिन तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी (Prime Minister Indira Gandhi) ने एक निरंकुश शासक के रूप में देश में आपातकाल (Emergency) लगाया था। देश में 21 महीने के आपातकाल (1975-77) के दौरान में लोकतंत्र (Democracy) का गला घोंट दिया गया था। निरंकुश सत्ता के इस काले अध्याय से मध्यप्रदेश (Madhya Pradesh) भी अछूता नहीं रहा। यह वह दौर था जब लोकतांत्रिक और मानवीय मूल्यों का इतना पतन हुआ कि राज्य सरकार के मुखिया यानी मुख्यमंत्री भी अपने अधिकारियों से रोजाना होने वाली गिरफ्तारियों की जानकारी व्यंग्यात्मक ढंग से लेते थे। उनके सामान्य बोलचाल में भी विरोधी नेताओं और आम जनता के प्रति हिकारत का भाव हुआ करता था। 





इमरजेंसी के दौरान मप्र में भी चला था दमन चक्र 





किस्सा यूं है कि आपातकाल के दिनों में मध्य प्रदेश की सत्ता कांग्रेस के हाथ में थी और प्रकाश चंद्र सेठी (Prakash Chandra Sethi) मुख्यमंत्री थे। ऐसा कहा जाता है कि इमरजेंसी के शुरुआती दिनों में उन्होंने केंद्र सरकार की मुखिया इंदिरा गांधी की इच्छा के अनुसार मध्य प्रदेश में दमन का चक्र चलाया था। जून 1975 में इमरजेंसी लागू होने के बाद पूरे प्रदेश में बड़े पैमाने पर विरोधी दलों के नेताओ और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) से जुड़े प्रमुख कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी का अभियान शुरू किया गया था। इस दौरान हर दिन सैकड़ों लोगों को बिना किसी अपराद के गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया जाता था।





सीएम क्यों सीएस से पूछते थे कि आज नाश्ते में क्या है  





उस समय मुख्यमंत्री सेठी रोजाना सुबह अपने ऑफिस पहुंचते और तत्कालीन चीफ सेक्रेटरी सुशीलचंद्र वर्मा से पूछते, 'आज नाश्ते में क्या है? इसका मतलब ये होताा था कि पिछले चौबीस घंटे में कितने लोगों को गिरफ्तार किया गया है। बाद में इन्दिरा गांधी के कट्टर समर्थक होने के कारण उनका एक औऱ बयान बहुत लोकप्रिय हुआ था। उन्होंने कहा था- ' यदि इंदिरा जी को मेरी खाल से बने जूते चाहिए होंगे तो मैं खुशी-खुशी दे दूंगा।





अचानक मंत्री बने वीसी ने क्यों लगाई किशोर कुमार के गानों पर  रोक   





इमरजेंसी के दौर में ही गांधी परिवार के प्रति निष्ठावान और संजय गांधी के कट्टर समर्थक होने के चलते ही अविभाजित मध्यप्रदेश में कांग्रेस के नेता विद्याचरण शुक्ला अचानक केंद्र सरकार में इंद्रकुमार गुजराल की जगह सूचना प्रसारण मंत्री बना दिए गए। किस्सा 20 जून 1975 का है, जब संजय गांधी ने अपनी माँ इंदिरा के समर्थन में दिल्ली के रामलीला मैदान में एक बड़ी रैली का आयोजन किया था। तब इंदिरा गांधी के प्रायवेट सेक्रेटरी आरके धवन ने इस रैली में कांग्रेस शासित सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों को ज्यादा से ज्यादा भीड़ इकट्ठी करने के निर्देश दिए थे।





 पीएम इंदिरा की रैली के प्रसारण पर किस मंत्री ने लगाई रोक 





हुआ यूं कि केंद्र सरकार में तत्कालीन सूचना प्रसारण मंत्री इंद्रकुमार गुजराल ने इंदिरा के समर्थन में की जा रही रैली के दूरदर्शन पर प्रसारण पर रोक लगा दी उनके इस फैसले से संजय आगबबूला हो गए। उन्होंने गुजराल को रूस में राजदूत बनाकर मास्को भेज दिया। पार्टी और सरकार में सभी चौंकाते हुए उनकी जगह विद्याचरण शुक्ला को सूचना प्रसारण मंत्री बना दिया गया।





वीसी ने मीडिया को सरकार के आगे नतमस्तक होने का दबाव बनाया 





सरकार में मंत्री बनने के बाद विद्याचरण ने इंदिरा गांधी और संजय गांधी के इशारे पर ही काम किया। मीडिया में सेंसरशिप लागू कर  अखबारों में सरकार विरोधी खबरों पर प्रतिबंध लगा दिया गया। यही वह दौर था जब सरकारी ब्रॉडकास्टर के रूप में आकाशवाणी औऱ दूरदर्शन सरकारी भोंपू बना दिए गए। बीजेपी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी ने इमरजेंसी के बाद लिखी पुस्तक में उस दौर के मीडिया की हालत के बारे में लिखा, “उनसे कहा गया था कि वे झुककर चलें पर वे रेंगने लगे । ” तब अखबारों और पत्र-पत्रिकाओं को सरकार के आगे नतमस्तक होने का दबाव बनाने का काम सूचना प्रसारण मंत्री के रूप में विद्याचरण ही किया करते थे ।





किशोर कुमार ने कांग्रेस की रैली में गाने से किया इनकार 





हालात इतने बदतर हो गए थे कि ऐसी फिल्में और कलाकार जो काँग्रेस की खिलाफत करते नजर आते थे उन्हें प्रतिबंधित कर दिया जाता था। यहां तक कि एक बार जाने-माने गायक किशोर कुमार ने कांग्रेस की एक रैली में गाने से मना कर दिया तो आकाशवाणी पर उनके गाने भी प्रतिबंधित कर दिये गए।





देश में कब और क्यों लागू किया गया आपातकाल 





 दरअसल 12 जून 1975 को इलाहाबाद हाई कोर्ट ने इंदिरा गांधी के लोकसभा के चुनाव को रद्द घोषित कर दिया था। उनके खिलाफ भ्रष्टाचार के भी कई आरोप साबित हुए थे। उन्हें छह साल तक चुनाव नहीं लड़ने का निर्देश दिया गया था। लेकिन कांग्रेस और सरकार में सर्वशक्तिमान माने जाने वाली इंदिरा गांधी ने देश में अपनी ताकत साबित करने के लिए इमरजेंसी लगाने का कठोर फैसला किया। 





हाईकोर्ट के फैसले से बदरंग हुई इंदिरा की इमेज



 



इंदिरा गांधी ने 25 जून, 1975 को संविधान के अनुच्छेद 352 के अनुसार देश में आपातकाल यानी इमरजेंसी की स्थिति घोषित कर दी। ये वो दौर था जब हर जगह सिर्फ और सिर्फ इंदिरा गांधी ही नजर आती थीं। उनकी सरकार की गरीब औऱ किसान समर्थक नीतियों और योजनाओं के कारण देश में 'इंदिरा इज इंडिया, इंडिया इज इंदिरा' का नारा बुलंद हुआ करता था। लेकिन हाई कोर्ट के फैसले से इंदिरा गांधी की आइरन लेडी की इमेज को बड़ा धक्का लगा।





राष्ट्रपति से रात में कराए गए इमरजेंसी के आदेश पर दस्तखत 





इंदिरा सरकार में कानून मंत्री सिद्धार्थ शंकर रे ने आपातकाल का प्रस्ताव रखा और राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद (President Fakhruddin Ali Ahmed) को रात में ही जगाकर उस पर हस्ताक्षर करवाए गए। इस प्रकार 26 जून को देश में आपातकाल लागू कर दिया गया। इसके बाद विरोधी दल के ज्यादातर नेताओं और आरएसएस के प्रमुख कार्यकर्ताओं को बंदी बना लिया गया। इस तानाशाही के विरोध में 'लोक संघर्ष समिति' का गठन किया गया। इसके बैनर तले आंदोलन हुआ, जिसमें देशभर में 1.50 लाख लोगों को गिरफ्तार किया गया। इनमें 90 से 95 प्रतिशत राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ता थे।





इमरजेंसी के बाद चुनाव में इंदिरा गांधी की बड़ी हार 





इंदिरा सरकार ने आंदोलन से जुड़े सभी कार्यकर्ताओं को जेल में बंद कर सोचा कि आंदोलन दबा दिया गया है। इसके बाद उन्होंने लोकसभा चुनाव की घोषणा कर दी। लेकिन संघ के सभी संगठन अंदर ही अंदर इंदिरा की खिलाफत के लिए पूरी तरह सक्रिय थे। इस दौरान जेल में बंद नेताओं से संपर्क किया गया। उनसे 'जनता पार्टी' के बैनर तले चुनाव लड़ने का आग्रह किया गया। ज्यादातर बड़े नेताओं की हिम्मत टूट चुकी थी, लेकिन लोगों का उत्साह देखकर वे मान गए और 1977 में हुए लोकसभा चुनाव में  इंदिरा गांधी को बहुत बड़ी हार का सामना करना पड़ा।



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