कभी LS की 2 सीटें जीतने वाली BJP की 16 राज्यों में सरकार, जनता पार्टी से निकाले जाने के बाद अटल-आडवाणी ने बनाई थी पार्टी, जानें सब

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Atul Tiwari
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कभी LS की 2 सीटें जीतने वाली BJP की 16 राज्यों में सरकार, जनता पार्टी से निकाले जाने के बाद अटल-आडवाणी ने बनाई थी पार्टी, जानें सब

BHOPAL. भारतीय जनता पार्टी यानी बीजेपी आज यानी 6 अप्रैल को 43 साल की हो गई। 2014 से केंद्र की सत्ता में काबिज और 16 राज्यों में सत्ता की बागडोर संभाल रही भारतीय जनता पार्टी (BJP) वर्तमान में कामयाबी की बुलंदियों पर है। कभी शून्‍य से सफर की शुरुआत कर आज देश की सबसे लोकप्रिय पार्टी बन गई है। आकलन के मुताबिक, बीजेपी के अभी करीब 20 करोड़ सदस्य बताए जाते हैं। बीजेपी ने 1980 में दो सांसदों से शुरुआत की थी और 2019 में उसके 303 सांसद हो गए यानी संसद में करीब 150 गुना ताकत बढ़ी। अभी देश के 16 राज्यों में बीजेपी की सत्ता है। इन राज्यों में 49.3% आबादी रहती है। कांग्रेस की 6 राज्यों में सरकार या सरकार में हिस्सेदारी है। हिमाचल, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस सत्ता में है, बिहार, झारखंड और तमिलनाडु में सत्ता में हिस्सेदारी है। इन 6 राज्यों में देश की 26% आबादी रहती है।





चार दशक के सियासी सफर में बीजेपी ने कई उतार-चढ़ाव देखे। जानते हैं अटल बिहारी वाजपेयी से शुरू हुए बीजेपी के सियासी सफर ने नरेंद्र मोदी तक पहुंचते-पहुंचते कैसे बढ़ा ली इतनी ताकत....  





बीजेपी यहां सत्ता में





मध्य प्रदेश, गुजरात, यूपी, असम, महाराष्ट्र, गोवा, कर्नाटक, त्रिपुरा, मेघालय, नगालैंड, हरियाणा, पुड्डुचेरी, मिजोरम, अरुणाचल, उत्तराखंड, सिक्किम।





अटल बिहारी पहली बार संसद पहुंचे 





दरअसल, श्‍यामा प्रसाद मुखर्जी ने अक्‍टूबर 1951 में भारतीय जनसंघ की स्‍थापना की। 1952 में देश में पहला आम चुनाव (लोकसभा) हुए। इसमें भारतीय जनसंघ ने 3 सीटों पर जीत हासिल की। वहीं, पांच साल बाद 1957 में देश के दूसरे आम चुनाव में भी जनसंघ ने हिस्‍सा लिया। इस बार जनसंघ के खाते में 5 सीटें गईं। इसी समय पहली बार अटल बिहारी वाजपेयी पहली बार संसद पहुंचे। 





1951 में जनसंघ की स्‍थापना 





भारतीय जनसंघ की स्थापना 21 अक्टूबर 1951 को दिल्ली में की गई थी। इसके तीन संस्थापक सदस्य थे- श्यामा प्रसाद मुखर्जी, प्रोफेसर बलराज मधोक और दीनदयाल उपाध्याय। इस पार्टी का चुनाव चिह्न दीपक था। 1962 में हुए तीसरे आम चुनाव में जनसंघ ने 14 सीटों पर अपना कब्‍जा जमाया। इसके बाद चौथे आम चुनाव में जनसंघ ने बड़ी जीत दर्ज करते हुए 32 सदस्‍यों को सांसद पहुंचाया। 1952 के आम चुनाव के एक साल बाद 1953 में जनसंघ के संस्‍थापक श्‍यामा प्रसाद मुखर्जी का निधन हो जाता है। इसके बाद पार्टी की जिम्‍मेदारी अटल बिहारी वाजपेयी के कंधों पर आ जाती है। 





आपातकाल के खिलाफ एकजुट हुईं पार्टियां 





भारतीय जनसंघ अटल बिहारी की अगुवाई में 1971 में पांचवें आम चुनाव में 23 सीटे जीतकर संसद पहुंचीं। इसी दौरान इंदिरा गांधी के आपातकाल के फैसले के खिलाफ कई लोकतांत्रिक और राष्ट्रवादी राजनीतिक पार्टी एकजुट हुए। भारतीय जनसंघ और अन्‍य पार्टियों की इस एकजुटता से जनता पार्टी का उदय हुआ और केंद्र में सरकार बनी। 





जनता पार्टी की हार और बीजेपी का उदय





साल 1980। लोकसभा चुनाव में जनता पार्टी को जनता ने नकार दिया। 1977 में 295 सीटें जीतने वाली जनता पार्टी 3 साल बाद महज 31 सीटों पर सिमट गई। हार का दोष पार्टी में शामिल उन लोगों पर मढ़ने की कोशिश की गई, जो जनसंघ से जुड़े हुए थे। 4 अप्रैल को दिल्ली में जनता पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की एक अहम बैठक हुई। इसमें फैसला हुआ कि पूर्व जनसंघ के सदस्यों को पार्टी से निकाल दिया जाए। निष्कासित किए जाने वाले नेताओं में अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी भी थे। इसके ठीक दो दिन बाद यानी 6 अप्रैल 1980 को दिल्ली के फिरोजशाह कोटला मैदान में एक नए राजनीतिक दल की घोषणा हुई। इसका नाम था- भारतीय जनता पार्टी। अटल बिहारी वाजपेयी इसके पहले अध्यक्ष बने। अपने पहले लोकसभा चुनाव (1984) में बीजेपी को 2 सीटों पर जीत मिली। 





1996 के चुनाव में बीजेपी को मिली बड़ी जीत





1996 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी देश की सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी। 161 सीटें मिलीं और गठबंधन सरकार बनाने का दावा किया गया। अटल बिहारी वाजपेयी ने पहली बार प्रधानमंत्री पद की शपथ ली। वह पार्टी के पहले नेता थे जो इस कुर्सी तक पहुंचे। हालांकि उनकी सरकार बहुमत साबित नहीं कर पाई और 13 दिन में ही सरकार गिर गई। भारत के इतिहास में किसी भी प्रधानमंत्री का यह सबसे छोटा कार्यकाल था। 1998 में जब बीच में ही चुनाव हुए एक बार फिर बीजेपी एनडीए में सबसे बड़े गठबंधन के रूप में उभरा। अटल जी दोबारा प्रधानमंत्री बने लेकिन यह कार्यकाल भी छोटा रहा और 13 महीने बाद इस्तीफा देना पड़ा। उसके बाद फिर जब चुनाव हुए तो एनडीए की पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में वापसी होती है। 5 साल तक सरकार चली, लेकिन 2004 में पार्टी दोबारा सत्ता में ना लौट सकी।





2014 में पार्टी के बदले तेवर





2004 से 2014 बाद दस साल तक पार्टी सत्ता से दूर रही। उसके बाद आता है 2014 और इस चुनाव में कुछ ऐसा होता है, जिसकी उम्मीद शायद कम ही लोगों को थी। जब नतीजे आए तो राजनीतिक पंडित भी हैरान रह गए। बीजेपी अकेले बहुमत में आ जाती है। पार्टी को रिकॉर्ड सीटें मिलीं। इस जीत के नायक बने नरेंद्र मोदी। ऐतिहासिक जीत के बाद उन्होंने देश की कमान संभाली। 2014 के चुनाव में पार्टी को जितनी सीटें मिलीं, उससे भी बढ़कर पार्टी की सीटें अगले चुनाव में हो जाती है। पार्टी 300 का आंकड़ा पार कर लेती है। नरेंद्र मोदी दोबारा भारी बहुमत के साथ प्रधानमंत्री बने। नरेंद्र मोदी और अमित शाह दोनों की अगुवाई में पार्टी एक बाद एक कई राज्यों में भी जीत दर्ज की।





वो 5 बड़े मुद्दे, जिनके दम पर बीजेपी यहां तक पहुंची...





1. राम जन्मभूमि आंदोलन





1986 में लालकृष्ण आडवाणी को बीजेपी का अध्यक्ष चुना गया। उस दौरान विश्व हिंदू परिषद अयोध्या में राम मंदिर बनाने के लिए आंदोलन चला रही थी। BJP की राजनीति को यहीं से जमीन मिली। पार्टी ने इसका जमकर समर्थन किया। इसका असर ये हुआ कि 1984 में 2 सीटें जीतने वाली पार्टी 1989 में 85 सीटों पर पहुंच गई। सितंबर 1990 में आडवाणी ने अयोध्या में राम मंदिर के समर्थन में एक रथ यात्रा की शुरुआत की। 1992 में बाबरी मस्जिद ढहा दी गई। एक लंबी कानूनी लड़ाई के बाद 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या विवाद पर फैसला सुना दिया। फिलहाल, अयोध्या में मंदिर निर्माण हो रहा है।





2. कश्मीर मुद्दा





जनसंघ (बाद में बीजेपी) के अग्रणी नेता श्यामा प्रसाद मुखर्जी जम्मू-कश्मीर को भारत का ‘अभिन्न अंग’ बनाने की वकालत करते थे। अगस्त 1952 में जम्मू में उन्होंने विशाल रैली की। कहा- या तो मैं आपको भारतीय संविधान दिलाऊंगा या फिर इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए अपना जीवन बलिदान कर दूंगा। बीजेपी इस मुद्दे को थामे रही। नरेंद्र मोदी ने दूसरी बार सत्ता संभाली तो 5 अगस्त 2019 को जम्मू-कश्मीर राज्य से संविधान का अनुच्छेद 370 हटाने का प्रस्ताव पास कराया गया। इसी के साथ बीजेपी के मैनिफेस्टो का एक जरूरी वादा पूरा हुआ।





3. परिवारवाद की खिलाफत





बीजेपी शुरुआत से ही परिवारवाद के खिलाफ रही है, लेकिन 2014 में नरेंद्र मोदी ने इसे जोर-शोर से उठाया। 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले नरेंद्र मोदी ने परिवारवाद, जातिवाद, सांप्रदायिकता और मौकापरस्ती को लोकतंत्र के चार दुश्मन बताया। आज भी पार्टी में बड़े स्तर पर परिवारवाद या वंशवाद मौजूद नहीं है और खुलकर इसकी आलोचना होती है। हालांकि, छोटे स्तर पर इस नीति में लचीलापन देखा गया है।





4. गोहत्या की खिलाफत





बीजेपी हिंदुत्व और सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की फिलॉसफी से चलती है, इसलिए गाय और गोवंश का मुद्दा इसकी प्राथमिकता में रहता है। केंद्र से लेकर अलग-अलग राज्यों में बीजेपी की सरकार बनने पर गोहत्या रोकने की कोशिश की गई है। अटल सरकार ने गो पशु आयोग बनाया। गुजरात के मुख्यमंत्री बनने के बाद नरेंद्र मोदी ने गोहत्या पर पूरी तरह से रोक लगा दी। 26 मई 2017 को मोदी सरकार ने पशु बाजारों में हत्या के लिए मवेशियों की बिक्री और खरीद पर रोक लगा दी, लेकिन इसे सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया।





5. भ्रष्टाचार





बीजेपी ने नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में 2014 का लोकसभा चुनाव जिन मुद्दों पर लड़ा, उनमें भ्रष्टाचार एक प्रमुख मुद्दा था। UPA सरकार के दौरान हुए घोटालों और विदेशों में जमा कालेधन का मुद्दा जोर-शोर से उठाया गया। जनता ने भरोसा करते हुए BJP को जमकर वोट किया।





बीजेपी ने क्या किया?





1. जाति आधारित राजनीति को हाशिए पर धकेला





बीजेपी ने परंपरागत जाति-आधारित राजनीति को हाशिए पर धकेला दिया। ऐसा नहीं है कि भाजपा ने सोशल इंजीनियरिंग और जाति समीकरणों को छोड़ दिया है, उसने उन्हें केवल ऐसे सांचे में ढाला भर है कि पार्टी को किसी एक जाति से जोड़कर ना देखा जाने लगे। इसके बजाय वह हिंदुत्व की बात करती है- यह एक ऐसा राजनीतिक विचार है, जिसमें सांस्कृतिक राष्ट्रवाद शामिल है। इसके बूते पार्टी ने अपने सामाजिक आधार को विस्तार दिया है





2. गरीबों से जुड़ी हुईं योजनाएं लाए





बीजेपी के बढ़ते प्रभाव के पीछे गरीबों से जुड़ी हुई योजनाएं भी हैं, जिनका मकसद सरकारी योजनाओं के लाभार्थियों का एक बड़ा वर्ग तैयार करना है। बीजेपी ने टॉयलेट, रसोई गैस, मुफ्त राशन, मुफ्त वैक्सीन और आवास जैसी सुविधाएं देने को अपना राजनीतिक एजेंडा बनाया। किसी भी राज्य में चुनाव से पहले BJP सरकारी योजनाओं के लाभार्थियों को बुलाकर बड़ी-बड़ी रैलियां करती है। ये टूल गेमचेंजर साबित हुआ है।





3. केंद्रीय शख्स के इर्द-गिर्द पूरी ब्रांडिंग





बीजेपी के शुरुआती दिनों से ही एक केंद्रीय चेहरे के इर्द-गिर्द पूरी ब्रांडिंग होती थी। पहले ये चेहरा अटल बिहारी वाजपेयी थे। 2014 के बाद ये नरेंद्र मोदी बन गए। 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले अखबारों के विज्ञापन में नरेंद्र मोदी की बड़ी-बड़ी तस्वीर लगती थी। सत्ता में आने के बाद सभी योजनाओं में पीएम मोदी की बड़ी-बड़ी तस्वीरें लगाई गईं। छोटी-बड़ी हर अचीवमेंट का क्रेडिट उन्हें दिया गया।





43 साल में 2 सीटों से 303 तक आ गई बीजेपी





कभी विपक्ष में रही बीजेपी ने तेजी से सफर तय किया। पहले लोकसभा चुनाव में महज दो सीटें जीती थीं, आज झोली में 303 सीटें हैं। 1984 में कांग्रेस की आंधी में ग्वालियर से अटल बिहारी वाजपेयी भी चुनाव हार गए थे। ऐसा रहा बीजेपी का 10 लोकसभा चुनावों का सफर...

















लोकसभा चुनाव का साल



बीजेपी को सीटें









1984



2









1989



85









1991



120









1996



161









1998



182









1999



183









2004



138









2009



116









2014



282









2019



303













अब कांग्रेस कहां से कहां तक आ गई







  • कांग्रेस पार्टी अब तक के अपने सबसे खराब दौर से गुजर रही है। 2014 के बाद से कांग्रेस ने 54 चुनाव लड़े, जिसमें 43 में उसे हार मिली।



  • ज्योतिरादित्य सिंधिया, गुलाम नबी आजाद, कपिल सिब्बल, जितिन प्रसाद जैसे बड़े नेता कांग्रेस छोड़कर जा चुके हैं। रिपोर्ट्स के मुताबिक, 2014 के बाद से 177 कांग्रेस सांसद और विधायक पार्टी छोड़ चुके हैं।






  • अब कांग्रेस के सांसदों की स्थिति

















    लोकसभा चुनाव साल



    कांग्रेस की सीटें









    1952



    398









    1957



    406









    1962



    394









    1967



    303









    1971



    372









    1977



    164









    1980



    377









    1984



    426









    1989



    195









    1991



    252









    1996



    140









    1998



    142









    1999



    118









    2004



    159









    2009



    211









    2014



    50









    2019



    53













     



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