NEW DELHI. जिस भव्यता और दक्षिण भारत के संतों के सम्मान के साथ नए संसद भवन में सेंगोल (राजदंड) को स्थापित किया गया है। उससे संसद भवन में दक्षिण भारत खासकर तमिलनाडु को विशेष स्थान मिल गया है। नए संसद भवन की जितनी चर्चा हो रही थी उससे ज्यादा चर्चा अब सेंगोल की हो रही है। सेंगोल को प्राचीन भारत में चोल राजाओं के सत्ता हस्तांतरण के समय दिया जाता था। इस परंपरा को इतने भव्य स्वरूप में देश के सामने लाने के पीछे बीजेपी का दक्षिण की सियासत पर फोकस करना माना जा रहा है। जिस तरह इस राजदंड को तमिल मठों के धर्माचार्यों से आशीर्वाद लेकर संसद में स्थापित किया गया है। उसका तमिलनाडु की राजनीति पर असर पड़ना तय माना जा सकता है। तमिलनाडु को ध्यान में रख कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने लोकसभा क्षेत्र बनारस में काशी तमिल समागम का आयोजन भी कराया था।
दक्षिण भारत में कमजोर है बीजेपी
दक्षिण के राज्यों केरल, तमिलनाडु, आंध्रप्रदेश, तेलंगाना और कर्नाटक की बात करें तो कर्नाटक को छोड़ कर अन्य राज्यों में भाजपा की स्थिति कमजोर ही है। इन राज्यों की 129 लोकसभा सीटों में से बीजेपी के पास 29 सीटें ही हैं। उनमें भी 25 सांसद तो कर्नाटक से ही है। लेकिन खास यह है कि कर्नाटक के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को करारी हार का सामना हाल ही में करना पड़ा है।
उत्तरप्रदेश, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल और बिहार के बाद सबसे ज्यादा लोकसभा सीटों वाला राज्य है तमिलनाडु। यहां भाजपा अपनी राजनीतिक संभावनाएं तलाश रही है। तमिनाडु में फिलहाल बीजेपी का कोई सांसद नहीं है। यहां एंट्री करने के लिए पार्टी पुरजोर कर रही है जिसकी झलक नए संसद भवन के उद्घाटन कार्यक्रम में दिखी है।
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राजदंड को लेकर राजनीतिक बयानबाजी
कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने कहा कि राजदंड से बीजेपी ने अपने राजनीतिक उद्देश्य पूरा करने के लिए इस्तेमाल किया है तो वहीं केंद्री गृहमंत्री अमित शाह का कहना है कि कांग्रेस ने देश की इतनी महान परंपरा को म्यूजियम में रख कर सहारा लेकर चलने वाली छड़ी बना कर छोड़ दिया।