जानिए, वो पांच बड़े कारण जिसके चलते बीजेपी नहीं कराएगी जल्द आम चुनाव, विधानसभा के नतीजे भी बदलेंगे गणित

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BP Shrivastava
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जानिए, वो पांच बड़े कारण जिसके चलते बीजेपी नहीं कराएगी जल्द आम चुनाव, विधानसभा के नतीजे भी बदलेंगे गणित

पंकज मुकाती, BHOPAL. मुंबई में विपक्षी गठबंधन 'इंडिया' की बैठक चल रही है। इसमें गठबंधन की नीतियों, समन्वयक के चेहरे पर चर्चा होगी। दूसरी तरफ चर्चा है कि लोकसभा चुनाव वक्त से पहले होंगे। ये सवाल, इस वक्त राजनीतिक गलियारों में सांस ले रहा है। इसमें ऑक्सीजन कितनी है, ये किसी को नहीं पता। जल्द चुनाव का दावा किया है पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने। इस पर मोहर लगाई बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने।  इसके पीछे एक लाइन का तर्क है - बीजेपी ने सारे हेलीकॉप्टर बुक कर लिए हैं। यानी विपक्ष भी इस बारे में हवा में ही है। 2004 में इंडिया शाइनिंग का नारा देकर जल्दी चुनाव से बीजेपी बुरी तरह सत्ता गंवा चुकी है। 



एक नारा है 'मोदी है तो मुमकिन है' . इसी नारे की परिक्रमा करने वाले राजनीतिक विश्लेषक और पत्रकार भी वक्त से पहले चुनाव का आलाप लेने लगे हैं। उनका भी आधार यही है कि मोदी हर बार नया करते हैं। राजनीति में रूचि रखने वाले ये बात अच्छे से जानते हैं कि वक्त से पहले चुनाव  की चर्चा पहली बार नहीं है। 2018 में यही चर्चा आई थी कि मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान के विधानसभा चुनाव के साथ लोकसभा चुनाव की मोदी की रणनीति है। पर  ऐसा कुछ हुआ नहीं। इस जाल में विपक्ष जरूर उलझा। उसकी रणनीति बिखरी। चुनाव तय वक्त पर मई में ही हुए। बीजेपी ने बहुमत हासिल किया। 



हालात में कुछ बड़ा बदलाव नहीं



इस बार भी हालात में कुछ बड़ा बदलाव नहीं है। राजनीतिक विश्लेषक गिरिजाशंकर ने विधानसभा के साथ लोकसभा चुनाव के विचार को सिरे से ख़ारिज कर दिया। वे बोले दिसम्बर में विधानसभा चुनाव होने हैं। इतने कम समय में ये संभव ही नहीं। बहुत थोड़ी संभावना है कि मार्च में चुनाव हो जाए। इससे पहले कोई सम्भावना। नहीं। उनका मानना है कि अभी विपक्षी गठबंधन की सिर्फ दो बैठकें हुई हैं। विपक्ष की मजबूती का आकलन करने की बाद ही इस बारे में एनडीए कोई फैसला लेगा। अभी इस पर बहुत कुछ होना बाकी है। 



...मोदी हैं तो नामुमकिन



प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी राजनीति के वो खिलाड़ी हैं जो आखिरी गेंद तक मैदान नहीं छोड़ना चाहते। उनके करीबियों का मानना है कि मिनट का सौंवा हिस्सा भी यदि काम करने का बाकी है तो मोदी उसमें सौ फाइलें साइन करने की कोशिश करेंगे। ऐसे में वक्त से पहले सत्ता छोड़कर चुनाव में जाना संभव ही नहीं। यहां आपको मोदी तो नामुमकिन वाले नारा याद रखना होगा। 



विधानसभा चुनाव परिणामों का इंतजार करेगी सरकार



वरिष्ठ पत्रकार श्रवण गर्ग ने सूत्र को बताया कि विधानसभा चुनाव के परिणामों का इंतजार सरकार करेगी। साथ में चुनाव का मतलब है राज्यों की एंटी इंकम्बैंसी को भी गले लगा लेना। वैसे भी मध्यप्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव मुकाबला कांटे का दिख रहा है। बीजेपी बहुत उम्मीद से भरी हुई भी नहीं है। ऐसे में मोदी राज्यों की कमजोरी अपने सिर लेने का जोखिम क्यों उठाएंगे। मार्च के पहले चुनाव संभव नहीं हैं। राजनीतिक और प्रशासनिक दोनों ही रूप में ये नामुकिन है। न तो चुनाव आयोग इसके लिए तैयार होगा न ही बीजेपी और एनडीए के कार्यकर्ता।



सर्वे- बीजेपी और एनडीए की सीटें घटती दिख रही



वैसे, ममता और नीतीश की बात को हवा इसलिए भी मिल रही है क्योंकि तमाम सर्वे में बीजेपी और एनडीए की सीटें घटती दिख रही हैं। हालांकि, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अब भी 60 फीसदी से ऊपर लोगों की पसंद हैं। तमाम सर्वे में एनडीए की सीटें जरूर कम हो रही हैं, पर बहुमत  वही है। इस बारे में विश्लेषक गिरजाशंकर का कहना है कि सब कुछ विपक्षी गठबंधन 'इंडिया' की मजबूती और एकता पर टिका है। यदि विपक्ष मजबूती से साथ खड़ा रहा तो बीजेपी उसकी मजबूती को कम करने के लिए जल्द चुनाव पर विचार कर सकती है। अभी विपक्ष का पूरा चेहरा ही सामने नहीं है। सीटों के बंटवारे और नेतृत्व जैसे मुद्दों पर बीजेपी टकटकी लगाए बैठी है। वो उम्मीद करेगी कि इस मुद्दे पर 'इंडिया' में बिखराव हो। 



इस वजह से बीजेपी नहीं चाहेगी जल्दी चुनाव 



1 - विधानसभा चुनाव के नतीजों का इंतजार 



भारतीय जनता पार्टी विधानसभा चुनाव के नतीजों का इंतजार करेगी। राज्यों में उसकी हालात बहुत ठीक नहीं है। मध्यप्रदेश में पार्टी एंटी इंकम्बैंसी और चेहरे की चिंता में है। राजस्थान में भी अभी तक कोई चेहरा तय नहीं है। छत्तीसगढ़ में कांग्रेस सरकार ने अपने कामों  से बढ़त बना रखी है। ऐसे में पार्टी का पूरा जोर इन तीन बड़े राज्यों में सत्ता वापसी पर रहेगा। इन राज्यों से अभी लोकसभा में बीजेपी के पास 64 सीटें हैं। ऐसे में इनकी मजबूती जरूरी। 



2 -  राममंदिर के जरिये हिंदुत्व का परचम 



जनवरी 2024 के अंतिम सप्ताह में अयोध्या में राममन्दिर का लोकार्पण होना है। ये बीजेपी का सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा रहेगा। इसके जरिये वो देश में हिन्दू वोटर्स को एकतरफा पक्ष में करने का माहौल बना सकती है। जनवरी में मंदिर के लोकार्पण के पहले चुनाव का बिगुल बजना नामुकिन है। ये मुद्दा 2024 जीतने का सबसे बड़ा शस्त्र है। बीजेपी इसे कैसे आसानी से गंवा देगी। 



3 -  बजट के जरिये योजनाओं को पैसा 



2024 का बजट मार्च में पेश होना है। सरकार तेजी से योजनाएं ला रही है। इन योजनाओं की मंजूरी बजट के बिना संभव नहीं। ऐसे में सरकार बजट पेश करने के बाद ही चुनाव में जाएगी। बहुत तो बजट जनवरी में पेश करके सरकार मार्च में चुनाव का ऐलान कर दे। 



4 - विपक्षी गठबंधन 'इंडिया' में टूट की उम्मीद 



बीजेपी विपक्षी गठबंधन को लेकर सतर्क है। अभी उसका पूरा आकार सामने नहीं आया है। एक तो बीजेपी उसका इंतजार करेगी। दूसरा उसमें टूट की उम्मीद करेगी। मायावती ने फिलहाल विपक्षी गठबंधन में शामिल होने से इंकार कर दिया है। आम आदमी पार्टी बहुत स्पष्ट नहीं है। सबसे बड़ा चेहरा बने बैठे पवार राज्य में बीजेपी के साथ खड़े दिख रहे हैं। ऐसे में बीजेपी विपक्ष रणनीति को तोड़ने पर फोकस करेगी। उसके बाद ही चुनाव में जाएगी। 



5 - समान नागरिक संहिता बिल 



बीजेपी राममंदिर के माहौल में समान नागरिक संहिता बिल को बजट सत्र में सदन में लाने की कोशिश करेगी। रणनीतिक रूप से वो इस बिल को सदन में रखकर छोड़ देना चाहेगी। विपक्ष इसके खिलाफ आवाज बुलंद करेगा। बीजेपी देश को ये बताने की पूरी कोशिश करेगी कि एक मौका दीजिए मंदिर के बाद समान नागरिक संहिता भी लागू करेंगे। 



2004 की गलती दोहराएगी बीजेपी?



2004 में इंडिया शाइनिंग का नारा देकर बीजेपी चुनाव में वक्त से छह महीने पहले आ गई। बुरी तरह हारी। सत्ता गंवाई। इस बारे में विश्लेषकों का कहना है कि 2004 में बीजेपी विपक्षी गठबंधन की मजबूती का आकलन करने में चूक गई। बीजेपी को लग रहा था कि कांग्रेस गठबंधन को संभाल नहीं पाएगी। हुआ उलटा। कांग्रेस ने गठबंधन के रिश्ते को गंभीरता से निभाया। इस बारे में गिरिजाशंकर का मानना है कि इस बार कांग्रेस पहले से ज्यादा संजीदा है। वो सीटें, चेहरे दोनों पर समझौते को राजी है।


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