BHOPAL. चौंकिए कि आप मध्यप्रदेश में हैं। वैसे ये लाइन आपने कुछ यूं सुनी होगी कि मुस्कुराइए आप मध्यप्रदेश में हैं, लेकिन बात चुनाव की हो तो मध्यप्रदेश में हैरान होना लाजमी है। ये हैरानी भी बहुत सारे सवालों के साथ आती है। ये चुनावी अदा मध्यप्रदेश को सिखाई है बीजेपी ने। जो हर बार चुनाव से पहले ऐसे फैसले करती है जो हैरान करते हैं। विधानसभा चुनाव तो इसकी एक बानगी भर थे। अब बारी लोकसभा चुनाव की है। इस चुनाव से पहले भी चौंकने के लिए तैयार रहिए। क्योंकि बीजेपी ने इस काम की तैयारी पूरी कर रखी है। बीजेपी के पास इस बार चौंकाने के लिए वजहें भी बहुत सारी हैं।
- पहली वजह है उन पांच सांसदों की सीट जो विधानसभा चुनाव लड़े थे। उसके बाद से उनकी सीट खाली है। उन सीटों पर नए चेहरे नजर आएंगे।
- दूसरी वजह है कुछ ऐसी सीटें जहां के सांसदों का रिपोर्ट कार्ड ठीक नहीं है या उनका पिछला रिकॉर्ड ही उन पर भारी पड़ रहा है।
बीजेपी कई जगह से बदल सकती है टिकट
ऐसे सांसदों की लिस्ट भी तकरीबन तैयार हो चुकी है। जिनके बदले अब किसी और को टिकट दिया जा सकता है। विधानसभा चुनाव की तरह भाजपा लोकसभा चुनाव में भी चौंका सकती है। बीजेपी टिकट बांटने को लेकर वह अलग रणनीति तैयार कर रही है। पार्टी एक दो नहीं बल्कि आधे से अधिक सीटों पर चेहरे बदलने की रणनीति पर मंथन कर रही है। विधायक बन चुके सांसदों की वजह से मुरैना, जबलपुर, दमोह, सीधी और नर्मदापुरम में सांसदों की सीटें खाली हैं। इन सीटों पर नए चेहरे दिखना तय है। जीत चुके विधायकों को वापस सांसद का चुनाव लड़ाया जाए। ऐसे आसार कम ही नजर आ रहे हैं। इसके अलावा अब अटकलें लगने लगी हैं कि भोपाल, उज्जैन, ग्वालियर, सतना, मंडला, इंदौर, टीकमगढ़, विदिशा, खंडवा, सागर और भिंड लोकसभा चुनाव में भाजपा टिकट बदल सकती है।
नए चेहरों को मौका देने की रणनीति बन रही
बीजेपी की कोशिश है कि इस बार चुनाव में ऐसे प्रत्याशी को टिकट दिया जाएगा जिनकी छवि बेदाग हो। जो मोदी की गारंटी को लोगों तक फैला सकें और जीत की गारंटी भी बन सके। लोकसभा चुनाव 2024 के शेड्यूल का ऐलान मार्च के पहले सप्ताह तक हो सकता है। उससे पहले ही बीजेपी पहले ही बड़ी संख्या में टिकटों पर फैसला कर ऐलान कर देना चाहती है। जिस तरह विधानसभा चुनाव से पहले लिस्ट जारी कर दी थी ठीक वैसे ही। ताकि उसके उम्मीदवारों को तैयारी के लिए पर्याप्त समय मिल सके। मध्य प्रदेश में लोकसभा की 29 सीटें हैं। जिसमें से 28 पर बीजेपी काबिज है। अब बीजेपी की नजर पूरी 29 सीटों पर है। उस एक सीट समेत बीजेपी यहां सारी पुरानी सीटें जीतना चाहती है। इस मकसद के लिए यहां डेढ़ दर्जन से भी ज्यादा सांसदों को हटाकर नए चेहरों को मौका देने की रणनीति बन रही है।
नए चेहरों के फॉर्मूले से एंटीइंकंबेंसी की काट
पार्टी की ओर से तय प्रभारियों ने अपनी डिटेल रिपोर्ट नेतृत्व को सौंप दी है। इस पर मंथन के बाद ही टिकटों के ऐलान होने शुरू होंगे। माना जा रहा है कि फरवरी के आखिरी सप्ताह से भाजपा अपने उम्मीदवारों के नाम फाइनल करना शुरू कर देगी। इस चुनाव में भी बीजेपी अपने कुछ पुराने क्राइटेरिया पर कायम रह सकती है। जिसमें 70 प्लस से ज्यादा उम्र के प्रत्याशियों का टिकट कटना तय माना जा रहा है इसके अलावा प्रभारियों की रिपोर्ट तो मायने रखेगी ही। विधानसभा चुनाव में नए चेहरों के फॉर्मूले से बीजेपी एंटीइंकंबेंसी की काट ढूंढ चुकी है। अब लोकसभा में भी बीजेपी वही फॉर्मूला लागू करने जा रही है। बीजेपी को यकीन है कि नए चेहरे ऐंटी-इनकम्बेंसी की भी काट बनेंगे और नया नेतृत्व भी उभर सकेगा।
तीन बार चुनाव जीते सासंदों को टिकट मिलना मुश्किल
लोकसभा चुनाव में भाजपा का सियासी गणित मध्यप्रदेश में लंबे समय से अनुकूल चल रहा है। 2014 के लोकसभा चुनाव में पार्टी को 27 तो 2019 के चुनाव में 28 सीटें मिली थी। अब बीजेपी इस बार वह छिंदवाड़ा में भी पूरी ताकत लगा रही है। मध्यप्रदेश के विधानसभा चुनाव में उसने नया पैंतरा चलते हुए अपने सात सांसदों को चुनाव मैदान में उतारा था, इनमें छह ने जीत हासिल की। हार चुके मंडला सांसद फग्गन सिंह कुलस्ते को टिकट मिलना मुश्किल ही है। जो सांसद लगातार तीन बार चुनाव जीत चुके हैं ऐसे सासंदों को भी टिकट मिलना इस बार मुश्किल होगा। इसके अलावा सात बार के सांसद और केंद्र में सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्री वीरेन्द्र कुमार खटीक का टिकट भी खतरे में है। धार से सांसद छतर सिंह दरबार भी इसी क्राइट एरिया में आ रहे हैं। खबर है कि ऐसे सभी नेता अब संगठन को मजबूत करने में जुटाए जाएंगे।
राष्ट्रीय अधिवेशन में होगा प्रचार अभियान का खुलासा
केंद्र में लगातार तीसरी बार सरकार बनाने के लिए तत्पर भाजपा मध्यप्रदेश में मिशन-29 का लक्ष्य लेकर चल रही है। मोदी लहर के चलते पिछले दो लोकसभा चुनावों में भाजपा का गढ़ बन चुके प्रदेश में बीजेपी अब कांग्रेस को पूरी तरह जीरो पर पहुंचा देना चाहती है। यही वजह है कि संगठन में कसावट लाई गई है। प्रभारियों को तैनात कर दिया गया है। इन सारी कवायदों के बावजूद आखिरी फैसला दिल्ली में ही होगा। वो भी पूरे मंथन के बाद। पार्टी की केंद्रीय चुनाव समिति की बैठक दिल्ली में बीस फरवरी को होना तय मानी जा रही है। इसमें कुछ नामों पर फैसला ले लिया जाएगा। इससे पहले बीजेपी का राष्ट्रीय अधिवेशन 17 और 18 फरवरी को नई दिल्ली में होने जा रहा है। इसमें पार्टी अपने प्रचार अभियान का खुलासा करेगी। राष्ट्रीय अधिवेशन में वरिष्ठ नेताओं की मौजूदगी में कोर ग्रुप की बैठक भी होनी है जिसमें पार्टी अपने टिकट बंटवारे की गाइडलाइन और क्राइटएरिया भी तय करेगी। बीस फरवरी को पार्टी की केंद्रीय चुनाव समिति की बैठक भी प्रस्तावित है। सूत्रों की मानें तो पहली बैठक में देश की 75 से अधिक लोकसभा सीटों पर कैंडिडेट तय हो जाएंगे, इसमें पांच सीटें मध्यप्रदेश की शामिल करने का तय किया गया है।
प्रदेश में स्थिति मजबूत, लेकिन रिस्क नहीं लेना चाहती बीजेपी
प्रदेश की भोपाल, इंदौर, विदिशा, होशंगाबाद, उज्जैन ग्वालियर, इंदौर समेत कई सीटों को भाजपा का गढ़ माना जाता है। इन लोकसभा क्षेत्रों में पिछले दो दशक से कांग्रेस को जीत नसीब नहीं हुई है। इनमें भोपाल, विदिशा, ग्वालियर लोकसभा क्षेत्रों में पार्टी प्रत्याशी बदलती रही है। भोपाल में 2014 में पार्टी ने आलोक संजर को मैदान में उतारा था, पर 2019 में प्रज्ञा ठाकुर को प्रत्याशी बनाया गया था। इस बार प्रज्ञा ठाकुर को फिर टिकट मिले ये मुश्किल ही नजर आता है। इसी तरह विदिशा में भी रमाकांत भार्गव के टिकट पर भी अनिश्चिय के बादल है। इंदौर सीट पर लंबे समय तक सुमित्रा महाजन जीतती रही है। पिछले चुनाव में पार्टी ने उनकी जगह शंकर लालवानी को मैदान में उतारा था। वे विजयी भी रहे पर इस सीट पर इस बार कई नेता दावेदारी जता रहे हैं। उज्जैन में 2014 में सांसद रहे चिंतामन मालवीय का टिकट काटकर अनिल फिरौजिया को मौका दिया गया था। इस बार भी नया चेहरा सामने आ सकता है। दरअसल मध्यप्रदेश को लेकर पार्टी बेहद आश्वस्त है। वह जानती है कि अधिकांश लोकसभा क्षेत्र उसके गढ़ बन चुके हैं। ऐसे में वह किसी भी नेता को टिकट दे तो, उसकी जीत तय ही मानी जाती है। इसके बावजूद बीजेपी किसी तरह का रिस्क लेने के मूड में न खुद है न विरोधी दलों को कोई मौका देना चाहती है। हालांकि, यह तय है कि इस बार का पूरा चुनाव प्रचार मोदी की गारंटी और राम मंदिर के इर्द-गिर्द ही घूमना है।
लेकिन ये सारी बातें जनता के बीच किस तरह से रखी जाएंगी ये आलाकमान के दरबार से ही तय होगा।