BHOPAL. जैसे बाजीराव की तलवार पर संदेह नहीं करते, वैसे ही शिवराज सिंह चौहान की निष्ठा पर संदेह नहीं किया जा सकता। वो जब कहते हैं कि वो पार्टी के कार्यकर्ता हैं और जो आदेश होगा उसका ही पालन होगा। तब वो सिर्फ कहते ही नहीं पूरी निष्ठा से इस बात को निभाते भी हैं और निभाते आए भी हैं। लेकिन इस बार जो शिवराज सिंह चौहान ने फैसला लिया है। उसे सुनकर आपको भी शायद यही लगेगा कि उन्होंने निष्ठा को कायम रखते हुए आलाकमान के आदेश का तोड़ निकाल लिया है। बात कुछ ऐसी है कि सुनो सबकी पर करो अपने मन की। अपने मन की करने के लिए शिवराज सिंह चौहान ने ऐसा बीच का रास्ता निकाल लिया है कि अब न उन्हें अमित शाह के निर्देशों की अनदेखी करनी होगी और न ही अपनी इच्छा को ताक पर रखना होगा।
बीजेपी आलाकमान ने जनआशीर्वाद यात्रा को नहीं दी हरी झंडी
चुनावी सीजन यानी यात्राओं का सीजन होता है। प्रदेश के एक कोने से लेकर दूसरे कोने तक कई यात्राएं निकाली जाती हैं। मध्यप्रदेश में भी ये दस्तूर बहुत पुराना है। जनता से सीधे रूबरू होने के लिए यात्राओं का दौर शुरू हो जाता है। इन यात्राओं के जरिए जनता से सीधे कनेक्ट करने का शिवराज सिंह चौहान का एकदम अलग स्टाइल है। वो कभी बेटा बन जाते हैं, कभी भाई बन जाते हैं और कभी पिता की भूमिका में आ जाते हैं। उनका ये स्टाइल 2018 तक काफी हिट भी रहा। लेकिन 2018 की हार ने ये जाहिर कर दिया कि अब शिवराज सिंह चौहान की शैली बासी हो रही है। इसके बावजूद शिवराज सिंह चौहान उसी शैली के साथ फिर जनता के बीच पहुंच चुके हैं। वो भी तब जब बीजेपी में उन्हें बैकफुट पर लाने की कोशिशें तो जारी हैं ही उन पर अंकुश लगाने की भी कोशिश तेज हैं। उनके पुराने साथी रहे नरेंद्र सिंह तोमर पर ज्यादा भरोसा जताते हुए आलाकमान ने उन्हें चुनावी कमान सौंप दी है। सिर्फ इतना ही नहीं शिवराज सिंह चौहान हर चुनाव से पहले जिस यात्रा पर जाते हैं, उस जनआशीर्वाद यात्रा को भी हरी झंडी नहीं मिली है।
सीएम शिवराज ने निकाला तोड़
पर शिवराज भी कहां मानने वाले हैं। लगातार 4 बार मुख्यमंत्री रहने वाले शिवराज सिंह चौहान का तजुर्बा भी कम नहीं है। जिसके चलते उन्होंने अपनी निष्ठा पर आंच भी आने नहीं दी और ऐसा रास्ता निकाल लिया कि यात्रा भी निकल जाए और आलाकमान भी न रूठे। जनआशीर्वाद यात्रा न सही, लेकिन शिवराज सिंह चौहान की यात्रा जरूर जारी है। जो लोग उन्हें पीछे धकेलने की कोशिश कर रहे हैं उन्हें भी शिवराज ये जता चुके हैं कि वो मानने वाले नहीं है। वो यात्रा निकालने पर अमादा हैं। फॉर्मेट और नाम अलग हो सकता है।
जन दर्शन यात्रा
हर चुनाव से पहले बीजेपी की जनआशीर्वाद यात्रा निकलती है। एक भव्य विजय रथ पर सवार होकर खुद शिवराज सिंह चौहान अलग-अलग जिलों में जाकर मतदाताओं से मिलते हैं। ये विजय रथ बीजेपी ऑफिस से निकलता है। यकीनन ये शिवराज सिंह चौहान का मेहनत करने का एक स्टाइल जरूर है। साथ ही पूरे मीडिया में वो छाए भी रहते हैं। इस बार उनके हिस्से की ये लाइमलाइट छीनने की तैयारी पूरी हो चुकी थी। शिवराज सिंह चौहान को प्रदेश की कोर कमेटी ने ही हरी झंडी नहीं दी। अमित शाह के साथ अचानक हुई बैठक में जनआशीर्वाद यात्रा पर खास चर्चा नहीं हुई। बीच में ये खबरें भी आईं कि इस यात्रा का स्वरूप बदलकर दूसरे दिग्गज नेताओं को भी इसमें शामिल किया जाएगा। इसके बाद ये हवा उड़ने लगी कि इस बार शिवराज सिंह चौहान का फेस चुनाव में सबसे आगे नहीं होगा। सुगबुगाहटें जो भी हों, लेकिन शिवराज सिंह चौहान ने ये साबित कर ही दिया कि उनके वन मैन शो को रोक पाना इतना आसान नहीं है। जनआशीर्वाद यात्रा न सही अब वो एक नई यात्रा के साथ मतदाताओं से मुखातिब होंगे। इस यात्रा का नाम होगा जन दर्शन यात्रा। ये यात्राएं विजय पर्व के दौरान निकल रही हैं।
जन आशीर्वाद यात्रा और जनदर्शन यात्रा में अंतर
जन आशीर्वाद यात्रा और जनदर्शन यात्रा में अंतर ये है कि जनआशीर्वाद यात्रा सिर्फ चुनावों से पहले निकाली जाती थी। जबकि जनदर्शन यात्रा शिवराज सिंह चौहान कुछ ही समय पहले निकाल चुके हैं। 2021 में भी जनदर्शन यात्रा हुई थी। इस यात्रा में सीएम हर जिले में सभा करते हैं और लोगों से उन्हीं की जुबानी शिकायतें सुनते हैं। मौका मिलता है तो लोगों के सामने ही अफसरों को फटकार भी देते हैं। चुनावी साल में ये यात्राएं नए स्वरूप मे हो रही हैं। चुनाव से पहले जनआशीर्वाद यात्रा पार्टी के खर्च पर होती थी, लेकिन इस बार विजय पर्व के बहाने ये एक सरकारी कार्यक्रम में तब्दील कर दी गई हैं। विजय पर्व के दौरान ही सीएम जनदर्शन यात्रा निकाल रहे हैं। सरकार के काम और योजनाओं को जनता तक पहुंचाने के बहाने शिवराज सिंह चौहान नई यात्रा पर निकल चुके हैं। ये पर्व बड़ानी, धार, शाजापुर से होता हुआ आगे मनना शुरू भी हो चुका है। इस विकास पर्व का मूल उद्देश्य अनुसूचित जाति के वोटर्स को जोड़ना है। यानी लगातार जनता के बीच बने रहने की शिवराज सिंह चौहान बड़ी तैयारी कर चुके हैं। पर जो नाराजगी की खबरें जमीनी स्तर से आ रही हैं, क्या वो इन यात्राओं के जरिए आसानी से दूर हो सकेंगी।
सीएम शिवराज के तोड़ पर कैसा होगा आलाकमान का रिएक्शन
विकास पर्व के साथ जन दर्शन कर सीएम शिवराज सिंह चौहान ने ये साबित कर दिया कि वो रुकने वाले नहीं हैं। तो, क्या ये मान लें कि इस बार ये यात्राएं जनता के दर्शन करने के लिए या जनता का आशीर्वाद लेने के लिए नहीं हैं। बल्कि इस बार ये उनका शक्ति प्रदर्शन ज्यादा नजर आ रहा है। क्या शिवराज को ये अंदाजा हो चुका है कि पार्टी जीत गई तो भी उन्हें सूबे की कमान मिलने की संभावना बहुत कम है। या शिवराज अपनी पार्टी में ये मैसेज देना चाहते हैं कि कोई भी नया पदाधिकारी आ जाए उन्हें रोक पाना आसान नहीं है। अब देखना ये है कि शिवराज के इस तोड़ पर आलाकमान किस तरह रिएक्ट करते हैं।