दिल्ली के हाथ में कमान, बीजेपी फिर भी हलाकान, अपने ही सर्वे पर संशय क्यों?

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Harish Divekar
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दिल्ली के हाथ में कमान, बीजेपी फिर भी हलाकान, अपने ही सर्वे पर संशय क्यों?

BHOPAL. बीजेपी में इस बार टिकट का इम्तिहान बहुत कठिन है। परीक्षाएं तो कुछ इस माफिक हो रही है मानो पहले हाफ इयरली टेस्ट हुए फिर एनुअल एग्जाम हुआ। लेकिन पास हो गए है या नहीं ये अभी भी नहीं कह सकते। क्योंकि अब एक्सटरल के वाइवा एग्जाम का सामना करना है। बीते कुछ सालों से बीजेपी बेहद कॉन्फिडेंस के साथ चुनाव लड़ रही है। हर सीट पर सटीक माइक्रो प्लानिंग और प्रदेश के हिसाब से रणनीति तैयार कर बीजेपी ने बड़े-बड़े चुनाव जीत लिए। लेकिन ये कॉन्फिडेंस मध्यप्रदेश में आकर डगमगाया सा लग रहा है। बीजेपी के चाणक्य अमित शाह खुद दौरे पर दौरे कर चुके हैं लेकिन एमपी में प्लानिंग के लिए उन्हें भी विशेषज्ञों की जरूरत आन पड़ी है।



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ट्रिपल लेयर सर्वे का राग अलाप रही बीजेपी



चुनावी साल की शुरूआत से ही बीजेपी ट्रिपल लेयर सर्वे का राग अलाप रही है। सर्वे के आधार पर तैयार हुए रिपोर्ट कार्ड पर सीएम मंत्रियों और विधायकों से वन टू वन चर्चा भी कर चुके हैं। लेकिन पार्टी आलाकमान ने उस सर्वे पर शायद भरोसा नहीं किया। उसके बाद ये जिम्मेदारी सौंप दी गई क्षेत्रीय संगठन महामंत्री अजय जामवाल को जिन्होंने खुद पर्सनली जा जाकर एक एक सीट का दौरा किया। रिपोर्ट आलाकमान को सौंपी और कुछ सीटों पर चिंता भी जाहिर की।



MP के मन में मोदी को बसा कर शुरू किया इलेक्शन कैंपेन



संभवतः इस सर्वे के बाद आलाकमान को नई बीजेपी , पुरानी बीजेपी और अफसरशाही की मनमानी और एंटीइंकंबेंसी का अंदाजा हो गया होगा। जिसके आधार पर शिवराज सिंह चौहान को फेस प्रोजेक्ट करने की जगह एमपी के मन में मोदी को बसा कर इलेक्शन कैंपेन को शुरू कर दिया गया है। बहुत सोच समझकर श्योरशॉट रणनीति बनाने वाली बीजेपी को इस सर्वे के बाद भी इत्मीनान नहीं हुआ है शायद कि, अब टिकट के लिए जो उम्मीदवार चुना जाएगा वो चुनावी आग में जलकर खरा सोना ही साबित होगा।



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ट्रिपल लेयर सर्वे के बाद बीजेपी में एक और सर्वे



ट्रिपल लेयर सर्वे के बाद एक और सर्वे, और उसके बाद बीजेपी में एक और सर्वे हो रहा है। मध्यप्रदेश की ही बात करें तो बीजेपी में बहुत से तजुर्बेकार विधायक हैं। जो न सिर्फ अपनी सीट पर धाक रखते हैं बल्कि आसपास की सीटें जिताने का माद्दा भी रखते हैं। लगातार कई बार से विधायक हैं और प्रदेश की नब्ज को खूब समझते हैं। अब ऐसे ही विधायकों की काबीलियत को परखने का जिम्मा पार्टी ने बाहरी लोगों को सौंप दिया है। जिन्हें विशेषज्ञ मानकर विधानसभा सीटों पर भेजा जाएगा। और, उसी के आधार पर टिकट तय होंगे। पार्टी ने ये फैसला लिया है अमित शाह के तकरीबन तीन दौरों के बाद। जब वो खुद एक कार्यक्रम में सरकार का रिपोर्ट कार्ड जारी कर उनकी पीठ थपथपा चुके हैं। और, पीएम के भी कुछ दौरे हो चुके हैं, कुछ और प्रस्तावित हैं।



स्पेशल 230 की टीम तैयार, हर विधानसभा सीट का फिर सर्वे



अपनी चुनावी रणनीति को लेकर बीजेपी मुतमईन नजर नहीं आती। सर्वे पर सर्वे कराने के बाद अब बीजेपी ने स्पेशल 230 की टीम तैयार की है। जो एक बार फिर हर विधानसभा सीट का सर्वे करेंगे। इस स्पेशल 230 की  खासियत ये हैं कि इनका मध्यप्रदेश से कोई लेना देना नहीं है। ये उत्तरप्रदेश, गुजरात और बिहार से आए विधायक हैं जो बीजेपी की नजरों में एक्सपर्ट हैं। एमपी की एक एक सीट पर ये विधायक सात दिन गुजारेंगे और अपनी रिपोर्ट सीधे आला दरबार में पेश  करेंगे।



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इन मुख्य बिंदुओं पर फोकस होगा सर्वे




  •  2020 में दल बदल वाली सीटों  के हालात जानना


  • सिंधिया समर्थकों की वजह से सीट पर बदली स्थितियां

  • 2018 में हारी सीटों पर नजर

  • वरिष्ठ भाजपाइयों की नाराजगी वाली सीटों पर नजर रखना   



  • बीजेपी की प्रैक्टिस पर कांग्रेस का हमला 



    प्रवासी विधायकों को खास ट्रेनिंग भी दी गई है। जिसके बाद अब ये पूरे सात दिन अपना टास्क पूरा करने के लिए अलोटेड विधानसभा सीट पर गुजारेंगे। निर्देश तो ये भी हैं कि बिना स्थानीय नेताओं की मदद लिए, वो जनता की राय जानेंगे और कार्यकर्ताओं का हाल भी जानेंगे। कांग्रेस ने बीजेपी की इस पूरी प्रेक्टिस को उनके डर का नाम दिया है। कांग्रेस नेताओं का कहना है कि बीजेपी समझ चुकी है कि उनकी जीत यहां मुश्किल है। इसलिए नए नए पैतरें आजमा रही है। कांग्रेस को ये कॉन्फिडेंस भी है कि बीजेपी सारी मशीनरी झोंक कर भी जीत हासिल नहीं कर सकेगी।



    मध्यप्रदेश में बीजेपी बीस साल में पंद्रह महीने कम के समय से सत्ता में है। एक ही पार्टी के इतने लंबे समय तक टिके रहने के बाद एंटीइंकंबेसी के हालात तो समझे जा सकते हैं। लेकिन ऐसी कोई वजह समझ से परे है, जिसे देखकर पार्टी अब तक अपनी लाइन क्लीयर नहीं कर सकी। और, चंद सीटों के टिकट डिक्लेयर करने के बाद एक और सर्वे शुरू कर चुकी है। अपनी ही पार्टी के नेताओं से भरोसा कुछ यूं उठा है कि विधायकों को इंपोर्ट कर यहां लाया जा रहा है। क्या ये फैसला एमपी में पार्टी के हालात को और खराब नहीं कर देगा।



    नए सर्वे की बात पर खड़े हो गए नए सवाल



    अमित शाह के लगातार दौरों से ये लगने लगा था कि प्रदेश में फिजा बदल रही है। बीजेपी में नई जान आ रही है। लेकिन नए सर्वे की बात से फिर कुछ नए सवाल खड़े हो गए हैं। पार्टी पदाधिकारियों के साथ हाल ही में हुई बैठक में अमित शाह ने सभी से एक सवाल किया। सवाल था कि इतने साल  सत्ता में रहते हुए भी कांग्रेस के कब्जे वाली सीट बीजेपी के खाते में  क्यों नहीं आई। ये महज सवाल नहीं है एक डर है। डर इस बात का कि कांग्रेस के गढ़ का हाथ आना तो दूर की बात कहीं अपने ही किले में सेंध न लग जाए। नए और पुराने कार्यकर्ताओं और नेताओं में संतुलन बिठाते बिठाते आलाकमान भी अब प्रदेश को लेकर आश्वस्त नहीं लग रहे। जिस तरह किसी सीट पर हेलीकॉप्टर कैंडिडेट उतारे जाते हैं। उस तरह, इस बार हेलीकॉप्टर टीम भेजी गई है। देखना ये है कि रणनीति बनाने के चाणक्य अमित शाह कहां चूके जिसकी कसर पूरी करने के लिए स्पेशल 230 को मैदान में उतारना पड़ा।


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