भोपाल. रामनवमी पर हुए दंगों ने साढ़े छह साल पुरानी यादें यानी ताजा कर दीं। खरगोन में 22 अक्टूबर 2015 को रावण दहन कर लौट रहे लोगों पर पत्थर बरसाए गए थे। इसके बाद पिछले दो साल में मालवा-निमाड़ में कई बार सांप्रदायिक हिंसा हुई। यहां एक ही पैटर्न पर दंगे की आग भड़कती रही है। बड़ा सवाल यह है कि आखिर ऐसा क्या हो गया?, जो लोग एक दूसरे की जान तक लेने पर उतारू हो जाते हैं। लोगों के दिमाग में इतना जहर घुला है या फिर कोई कट्टरपंथी ताकत ब्रेनवॉश कर रही है।
दो साल में कई घटनाएं आई सामने
उज्जैन, इंदौर और मंदसौर में दो साल में सांप्रदायिक हिंसा की छोटी-बड़ी 12 से ज्यादा घटनाएं हो चुकी हैं। इसी पैटर्न पर सबसे पहली सांप्रदायिक हिंसा 25 दिसंबर 2021 को उज्जैन के बेगमबाग में हुई थी। 29 दिसंबर को इंदौर के चांदनखेड़ी और मंदसौर के डोराना गांव में रैली के दौरान माहौल खराब हुआ। इंदौर की स्कीम 71 के सेक्टर-डी और राजगढ़ के जीरापुर में रैली में हालात बिगड़े थे। ये दोनों घटनाएं रैलियों के मुस्लिमों बहुल इलाकों से गुजरने के दौरान हुई थीं।
दंगे की टाइमिंग पर सवाल
खरगोन हिंसा के सामाजिक और राजनीतिक पहलुओं पर भी चर्चा हो रही है। ये सब ऐसे वक्त में हो रहा है, जब प्रदेश में चुनाव नजदीक हैं। रामनवमी के दिन हिंसा की खबरें गुजरात, गोवा, झारखंड और पश्चिम बंगाल से भी आईं, लेकिन खरगोन की चर्चा ज्यादा हो रही है। इसकी वजह भी है, प्रशासन ने कथित अवैध निर्माण पर बुलडोजर चला दिए है। हालांकि, इन दंगों के पीछे सीधे-सीधे कोई पॉलिटिकल पार्टी नहीं है, लेकिन ऐसी घटनाओं से वोटों का ध्रुवीकरण जरूर हो सकता है।
मालवा-निमाड़ में BJP का दबदबा
राजनीति के जानकार कहते हैं कि मालवा-निमाड़ में जो पार्टी ज्यादा सीटें जीतती है, प्रदेश में उसी की सरकार बनती है। 230 सीटों वाली विधानसभा की सबसे ज्यादा 66 सीटें मालवा-निमाड़ क्षेत्र में हैं। इस क्षेत्र में लंबे समय तक BJP का दबदबा रहा है। यहां राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने काफी काम किया है। हालांकि, 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने यहां BJP को झटका दिया था।
वहीं खरगोन जिला आदिवासी बाहुल्य है। यहां कांग्रेस की गहरी पैठ रही है। जिस इलाके में हिंसा शुरू हुई, वहां से कांग्रेस के रवि जोशी विधायक हैं। खरगोन में 6 विधानसभा सीटें हैं। इनमें से 4 पर कांग्रेस, 1 पर निर्दलीय और 1 पर भाजपा का कब्जा है। खरगोन शहर में 66% हिंदू और 33% मुस्लिम आबादी है।
जितना ध्रुवीकरण, BJP को उतना फायदा
पॉलिटिकल एनालिस्ट कहते हैं कि इन इलाकों में अल्पसंख्यक ताकतवर रहे हैं। जिस तरह संघ सक्रिय है, वैसे ही अल्पसंख्यक लीडरशिप भी सक्रिय हैं। सिमी आतंकी सफदर नागौरी जिसे हाल ही में फांसी की सजा हुई है, वह उज्जैन के महिदपुर का रहने वाला है। ऐसे में संघ की चिंता बढ़ना स्वभाविक है। BJP को 2018 में इस इलाके में बड़ी हार का सामना करना पड़ा था। चूंकि उत्तर प्रदेश के चुनाव में जीत का मूल आधार धार्मिक रहा है। अब वही कोशिश मध्यप्रदेश में चल रही है। जितना धुव्रीकरण होगा, बीजेपी को उतना फायदा मिलेगा।