बोल हरि बोल... बीजेपी में बड़े साहब को मिल गया सवा शेर, इतना कन्फ्यूजन क्यों है भाई, इधर... कांग्रेस को मास्टर स्ट्रोक की तलाश

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Harish Divekar
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बोल हरि बोल... बीजेपी में बड़े साहब को मिल गया सवा शेर, इतना कन्फ्यूजन क्यों है भाई, इधर... कांग्रेस को मास्टर स्ट्रोक की तलाश

BHOPAL. देश में एक तरफ मणिपुर जल रहा है, दूसरी तरफ महंगाई ने आम आदमी की कमर तोड़ रखी है। सत्तापक्ष और विपक्ष अपनी राजनैतिक रोटियां सेंकने पर अमादा है, मैंगो मैन की फिक्र किसी को नहीं है। वहीं प्रदेश की बात करें तो यहां मानसून अपने शबाब पर है तो वहीं राजधानी भोपाल में राजनीतिक सरगर्मियां तेजी से बढ़ गई हैं। बीजेपी ने चुनाव कार्यालय का शुभारंभ कर दिया है। देर रात तक मंथन और चिंतन का दौर जारी है। संभावना है कि इसी सप्ताह विजय संकल्प अभियान की तारीख और रोड मैप की अधिकृत घोषणा हो जाएगी। बीजेपी के कार्यकर्ताओं को उम्मीद है कि मामा के तरकश से अभी कई तीर निकलेंगे जो उनकी फिजां बदल देंगे। वहीं दूसरी ओर बीजेपी के भारी भरकम संगठन के सामने कांग्रेस में कमलनाथ और दिग्विजय मोर्चा संभाले हुए हैं। कांग्रेसियों को भी कमलनाथ पर भरोसा है कि वो भी मौके पर कोई चौका जरूर मारेंगे। बहरहाल ये तो समय बताएगा कि चुनावी मैदान में कौन किसे मात दे पाता है। देश-प्रदेश की खबरें और भी है आप तो सीधे नीचे उतर आईए और प्रदेश के राजनीति और प्रशासनिक गलियारों में हो रही रोचक घटनाओं का आनंद लिजिए। 



इतना कन्फ्यूजन क्यों है भाई

 



दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी इस समय कन्फ्यूजिया पार्टी नजर आ रही है। चार-चार घंटों तक दिल्ली और प्रदेश के दिग्गज सिर जोड़कर बैठते हैं, लेकिन आउटकम नहीं आता। चुनाव सिर पर हैं, अब तक पार्टी ये तय नहीं कर पाई कि प्रदेश में नमो के चेहरे का कितना उपयोग होगा और मामा का कितना उपयोग किया जाए। अब तक पार्टी नारा भी तय नहीं कर पाई है। पिछली बार तो पार्टी ने मामा को फुल फ्लेश चेहरा बनाते हुए नारा दिया था कि माफ करो महाराज हमारे नेता शिवराज, इस बार नारे पर भी मंथन हो रहा है। वजह महाराज साथ आ गए और अब फुल प्लेस नेता शिवराज को माना नहीं जा रहा है। हर चुनाव में मकर सक्रांति पर चुनाव कार्यालय का शुभारंभ होता था, लेकिन पशोपेश की स्थिति के चलते जुलाई अंत में चुनाव कार्यालय खुल पाया है। भाई लोगों आप लोगों के कन्फ्यूजन में मैदानी कार्यकर्ता भी पशोपेश में है, जल्दी फैसला किजिए कहीं देर ना हो जाए।

 



ठाकुर साहब बनेंगे ब्रिज

 



ठाकुर साहब को भले ही चुनाव प्रबंधन का जिम्मा दिया गया हो, लेकिन वे चुनाव प्रबंधन से ज्यादा सत्ता और संगठन के प्रबंधन पर ज्यादा फोकस करेंगे। जब संगठन को मामा से कोई बात मनवाना होगी तो ठाकुर साहब का सहारा लिया जाएगा। उसी तरह जब मामा को अपनी कोई बात मनवाना होगी तो ठाकुर साहब उनकी तरफ से वकालत करेंगे। सत्ता और संगठन में ब्रिज बनकर ठाकुर साहब उस गैप को भरने की कोशिश करेंगे जिसके चलते बेवजह की खींचतान मची हुई थी। ठाकुर साहब का कम बोलना और ज्यादा सुनना ही उनकी खूबी माना जाता है। वे विपरीत परिस्थति में सही समय पर सही बात मनवाने में माहिर माने जाते हैं। बहरहाल अब तो ये समय ही बताएगा कि सत्ता-संगठन में बिगड़ी हुई डोर को वो कितना थाम पाते हैं। 

 



कांग्रेस को मास्टर स्ट्रोक की तलाश

 



कांग्रेस को मास्टर स्ट्र्रोक की तलाश है। खबर है कि मामा भी रसोई गैस सिलेंडर 500 रुपए में देने का ऐलान कर सकते हैं। यदि ऐसा होता है तो कांग्रेस के हाथ से महंगाई का बड़ा मुद्दा छिन जाएगा। कांग्रेस अब कुछ बड़ा करने का प्लान कर रही है, लेकिन वो है क्या। ये बड़ा सवाल है। कहीं मामा और काका की इस लड़ाई में प्रदेश के खजाने की बैंड न बज जाए। चुनाव बाद विकास कार्य बंद हो जाएंगे और मुफ्त की रेवड़ी ही बटेंगी। वैसे पब्लिक अब जाग गई है। देखकर ऐलान कीजिएगा, कहीं उल्टे बांस बरेली न हो जाएं।  

 



बड़े साहब को मिल ही गया सवा शेर

 



बड़े साहब को सवा सेर मिल गया है। एक झटके में बड़े साहब की हेकड़ी दूर कर दी। पहले तो साहब की पेशी लगाई और फिर बाद में दो टूक में समझाईश देकर रवाना कर दिया। जब से ये खबर वायरल हुई है छोटे साहब लोग बड़े खुश हैं। दरअसल हॉट सीट पर बैठते ही बड़े साहब ने सबसे पहले छोटे साहब लोगों को ही तलना शुरू किया था। हालात ये हो गई कि बड़े साहब के सामने जाने से ये लोग कतराने लगे। इतना ही नहीं बड़े साहब ने पुराने साहब लोगों की जांचें खोलकर उनकी भी नींदे उड़ा रखी हैं। अब आप जानना चाह रहे होंगे कि आखिर वो सवा शेर कौन है जिसने बड़े साहब की बोलती बंद की है, तो हम आपको इशारों में बता देते हैं कि वो एक जांच एजेंसी के मुखिया हैं। उनके तीखे तेवरों से कई मंत्री भी परेशान हैं। उज्जैन की विमान पट्टी के मामले में माननीय ने बड़े साहब की पेशी लगाकर ऐसी खरी खोटी सुनाई कि साहब सनाके में आ गए हैं। 

 



महामहिम की आड़ में निकाल ली भड़ास

 



कहते हैं न समय-समय की बात है समय बड़ा बलवान। ऐसा ही कुछ किस्सा एक रिटायर्ड आईएएस के साथ हो रहा है। साहब कभी वन विभाग में मुखिया हुआ करते थे। तो उनकी तूती बोला करती थी, लेकिन विभाग से हटने के बाद विभाग के अफसरों ने उन्हें तवज्जो देना बंद कर दी। साहब ने व्यक्तिगत काम बोला तो वन अफसरों ने हाथ खड़े कर दिए थे। अब फिर साहब का समय घूमा महामहिम के यहां संविदा नियुक्ति पर आ गए। साहब ने आदिवासियों की योजनाओं की समीक्षा महामहिम से करवाने के नाम पर बैठक बुलवा ली। फिर क्या था जो जो निशाने पर थे उन पर भड़ास निकाल ली। अब साहब के बैचेन मन को शांति मिल गई। वैसे आपको बता दें ये साहब शांत और सरल स्वभाव के माने जाते हैं।

 



सिर्फ एक माह का वेतन बचाने बदले नियम

 



संविदा नियमों में बदलाव क्या हुआ। मंत्रालय में चर्चा चल पड़ी कि आखिर मामाजी किस पर मेहरबान हैं। सिर्फ एक माह का वेतन बचाने के लिए संविदा नियुक्ति नियम ही बदल दिए। दरअसल नियमों में प्रावधान था कि तय कार्यकाल से पहले कोई नौकरी छोड़ता है तो उसे एक माह का नोटिस या फिर एक माह का वेतन देना होगा। कैबिनेट से इस नियम को बदलवा दिया गया है। नए नियम के अनुसार विशिष्ट प्रकरण में इस शर्त को शिथिल किया जा सकेगा। अब पूरा मामला समझाते हैं, सीएमओ में रिटायर्ड अफसरों को संविदा में रखा जाता है, चुनाव के समय इनसे ऐन वक्त पर इस्तीफा लिया जाता है जिससे वे सीएम के साथ काम कर सकें। ऐसी स्थिति में संबंधित रिटायर्ड अफसर को एक माह का वेतन देना होता था। एक माह के वेतन का नुकसान उन्हें न हो, इसके लिए ये बदलाव किया गया है। समझे इसका फायदा सिर्फ पांचवीं मंजिल वाले ही उठा पाएंगे, या फिर वो जिसकी पकड़ चौथी मंजिल पर मजबूत हो।  

 



मुखिया को अपने खबरियों पर भरोसा नहीं

 



सरकार को पल पल की खबरें देने वाला महकमे के मुखिया को अपने खबरियों पर ही भरोसा नहीं है। मुखिया को पता है कि खबरियों की शाखा में मैदानी अमला किस तरह काम करता है। मुखिया जी अब निजी एजेंसियों और पत्रकारों से सूबे के चुनावी समीकरण समझ रहे हैं। दरअसल मामाजी को रिपोर्ट देना होती है। खबरियों की रिपोर्ट को मुखियाजी क्रॉस चैक करवाने के बाद ही दे रहे हैं। अंदर खाने की खबर तो ये है कि खबरची शाखा के खबरी भी सरकार को रुख देकर गुड़ी गुड़ी वाली खबरें दे रहे हैं। हालांकि, मामाजी भी जानते हैं कि उनका खबरी तंत्र कितना काबिल है। वो भी निजी एजेंसियों क सर्वे पर ही ज्यादा भरोसा जताते हैं।  

 

 

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