New Delhi. कांग्रेस के शीर्ष कानूनी सलाहकारों ने शनिवार (15 जुलाई) को पार्टी मुख्यालय में बैठक कर समान नागरिक संहिता पर मंथन किया। सभी वरिष्ठ वकीलों ने करीब डेढ़ घंटे से अधिक समय तक इस मुद्दे पर चर्चा की, लेकिन कोई ठोस कदम उठाने पर रुख तय नहीं कर सके। बैठक में निर्णय लिया गया कि पार्टी इस मुद्दे पर कोई भी रुख अपनाने से पहले मोदी सरकार के मसौदा प्रस्ताव का इंतजार करेगी। इसके बाद नई रणनीति बनाई जाएगी।
मॉनसून सत्र में उठाया जा सकता है मुद्दा
पार्टी सूत्रों के मुताबिक, UCC को लेकर कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पी चिदंबरम, मनीष तिवारी, सलमान खुर्शीद, अभिषेक मनु सिंघवी, विवेक तन्खा, केटीएस तुलसी और एल हनुमंतैया ने बैठक की। पार्टी के वरिष्ठ वकीलों की ये बैठक मॉनसून सत्र से पहले हुई है जो कि 20 जुलाई से शुरू होकर 11 अगस्त तक चलेगा। ऐसे में पूरे आसार हैं कि कांग्रेस इस UCC के मुद्दे पर सरकार को घेर सकती है। मालूम हो, बीजेपी के राज्यसभा सदस्य सुशील मोदी की अध्यक्षता वाली कार्मिक, सार्वजनिक शिकायत, कानून और न्याय पर संसदीय स्थायी समिति ने तीन जुलाई को अपनी बैठक के दौरान समान नागरिक संहिता पर चर्चा की थी।
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क्या बोले सांसद मनिकम टैगोर
कांग्रेस के लोकसभा सांसद मनिकम टैगोर ने समिति से पूछा कि ऐसे समय में समान नागरिक संहिता के मुद्दे पर चर्चा करने के पीछे वास्तविक मंशा क्या है, जबकि अगले कुछ महीनों के दौरान कई राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं। वैसे इसकी संभावना नहीं है कि सरकार मानसून सत्र के दौरान समान नागरिक संहिता पर विधेयक लाएगी।
'देश की बहुलवाद की पहचान को क्षति पहुंचाएगी UCC'
उधर, पट्टाली मक्कल काची (पीएमके) पार्टी ने कहा है कि समान नागरिक संहिता देश की बहुलवाद की पहचान को क्षति पहुंचाएगी। पीएमके प्रमुख अंबुमणि रामदास ने कहा कि उनकी पार्टी ने 1989 में अपनी स्थापना के बाद से ही समान नागरिक संहिता के खिलाफ रुख अपनाया है। उन्होंने कहा कि सरकार को धार्मिक समुदायों के नागरिक अधिकारों में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। बता दें कि बीजेपी के राष्ट्रीय नेतृत्व ने पीएमके को 18 जुलाई को नई दिल्ली में होने वाली राजग की बैठक में भाग लेने के लिए आमंत्रित किया है।
समान नागरिक संहिता भाजपा का राजनीतिक हथियार: येचुरी
माकपा महासचिव सीताराम येचुरी ने शनिवार (15 जुलाई) को कहा कि समान नागरिक संहिता एक राजनीतिक हथियार है जिसका इस्तेमाल बीजेपी सांप्रदायिक ध्रुवीकरण को तेज करने के लिए कर रही है। वाम दल द्वारा समान नागरिक संहिता पर चर्चा के लिए आयोजित एक राष्ट्रीय संगोष्ठी में उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि एकरूपता का मतलब समानता नहीं है। उन्होंने कहा कि भेदभावपूर्ण कानूनों को पूरे समुदाय के परामर्श से ठीक किया जाना चाहिए न कि ऊपर से समान नागरिक संहिता थोपकर। माकपा समानता के लिए खड़ी है जैसे कि भारत का संविधान समानता के लिए है। एकरूपता थोपने का कोई भी प्रयास हमारे सामाजिक ताने-बाने को तोड़ देगा।
राष्ट्रीय महिला आयोग ने कहा- यूसीसी से कम होगी असमानता
राष्ट्रीय महिला आयोग (एनसीडब्ल्यू) ने शनिवार (15 जुलाई) को एक विचार-विमर्श के दौरान कहा कि मुस्लिम पर्सनल लॉ की मौजूदा गैर-संहिताबद्ध प्रकृति के चलते इसकी गलत व्याख्या की गई है। इसके चलते मुस्लिम महिलाओं को चुनौतियां का सामना करना पड़ रहा है। एनसीडब्ल्यू ने मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों पर चर्चा आयोजित की थी जो खासतौर पर मुस्लिम पर्सनल लॉ की समीक्षा पर केंद्रित थी। विचार विमर्श की यह प्रक्रिया विधि आयोग की ओर से विभिन्न संगठनों और लोगों से समान नागरिक संहिता (यूसीसी) पर विचार आमंत्रित करने की पृष्ठभूमि में आयोजित हुई। एनसीडब्ल्यू की अध्यक्ष रेखा शर्मा ने ‘मुस्लिम पर्सनल लॉ की गैर-संहिताबद्ध प्रकृति की कमियां’ पर चर्चा की।
वर्तमान कानून पर उठाए सवाल
एनसीडब्ल्यू की अध्यक्ष ने सवाल किया कि क्या जो कानून हिंदू, ईसाई, सिख और बौद्ध महिलाओं के अधिकारों की रक्षा करने में विफल रहा है, क्या उसे केवल मुस्लिम महिलाओं के लिए उचित माना जा सकता है? उन्होंने कहा कि समान नागरिक संहिता की अनुपस्थिति ने हमारे विविधता युक्त देश में असमानताओं और विसंगतियों को कायम रखा है, जिससे सामाजिक सद्भाव, आर्थिक विकास और लैंगिक न्याय की दिशा में प्रगति बाधित हुई है।