हरीश दिवेकर, BHOPAL. 2023 के रण में बीजेपी के त्रिदेव का जवाब बनेंगी कांग्रेस की देवियां। हालांकि देवों और देवियों का ये टकराव अभी नजदीक नहीं है। क्योंकि रण अलग-अलग मैदानों में है लेकिन डायरेक्टली या इनडायरेक्टली तो इन्हें टकराना ही होगा। जीत देवों की होगी या नारी शक्ति का परचम बुलंद होगा। इस नारी शक्ति के भरोसे कांग्रेस प्रदेश में शुरू करने जा रही है किचन पॉलीटिक्स।
कांग्रेस और बीजेपी की रणनीति कॉमन
अगले साल होने वाले चुनाव के लिए कांग्रेस और बीजेपी की एक रणनीति कॉमन है। लेकिन उस रणनीति का मकसद अलग-अलग है। बीजेपी माइक्रो लेवल की प्लानिंग कर उन सीटों को हथियाना चाहती है जो पिछले चुनाव में कांग्रेस के खाते में थी। कमलनाथ उन सीटों पर काम कर रही हैं जो पूरी ताकत लगाने के बावजूद कांग्रेस की पकड़ से दूर हैं। कांग्रेस के खाते से जीती हुई सीटों को निकालने के लिए बीजेपी ने त्रिदेव तैनात किए हैं। बदले में कांग्रेस ने देवियों से शक्ति दिखाने की गुहार लगा दी है।
दिलचस्प होने वाला है 2023 का चुनाव
2023 का चुनाव कई मायनों में दिलचस्प होने वाला है। दिग्गज नेताओं के दौरे, प्रदेश बचाने के लिए अलग-अलग रणनीति। कुछ जानी-पहचानी आजमाई हुई स्ट्रेटजी और कुछ ऐसी प्लानिंग जो पहली बार हो रही है। चमत्कार किसी पार्टी के लिए होगा ये फिलहाल कहा नहीं जा सकता। लेकिन इसी चमत्कार की आस में कांग्रेस और बीजेपी दोनों देवी और देवों की शरण में है। ये देवी और देव कोई और नहीं दोनों पार्टियों के ही कार्यकर्ता हैं। दरअसल बीजेपी ने माइक्रो लेवल की प्लानिंग के लिहाज से हर जिले की कमान तीन अलग-अलग स्तर के पदाधिकारियों को सौंपी है। जिन्हें नाम दिया गया है त्रिदेव। बीजेपी इन त्रिदेवों के भरोसे हैं तो कांग्रेस ने अपनी देवी यानी कि पार्टी की महिला शक्ति पर भरोसा जताया है। पूरी कमान महिला कांग्रेस को सौंप दी है। जो पूरे प्रदेश में ऐसे करिश्मे की कोशिश में होंगी कि पार्टी दोबारा सत्ता में वापसी कर सके। इसके लिए तगड़ी प्लानिंग शुरू हो चुकी है। रणनीति माइक्रो लेवल से भी ज्यादा माइक्रो है क्योंकि कांग्रेस की नजर सिर्फ जिला या ब्लॉक स्तर पर नहीं है बल्कि लोगों के घरों में घुसने की तैयारी है। इस रणनीति के बाद महिला कांग्रेस भी खासी उत्साहित है।
कांग्रेस की किचन पॉलीटिक्स
ये तो आपने सुना ही होगा कि एक महिला की पहुंच दूसरी महिला के किचन तक होती है। गपशप, गुफ्तगूं, सुख-दुख बांटने की जगह घर का किचन ही है। ये संयोग नहीं कि किचन में होने वाली चर्चा ही किचन पॉलीटिक्स में तब्दील हो जाती है। यही किचन पॉलीटिक्स अब कांग्रेस की रणनीति का आधार बनने की तैयारी में है। महिला कांग्रेस को सिर्फ गली कूचों में जाकर मतदाता नहीं बटोरने बल्कि पार्टी पॉलीटिक्स को किचन तक पहुंचाना है। फिर इसी किचन पॉलीटिक्स के जरिए सत्ता में वापसी करनी है। यानि अब महिलाओं के दम पर सियासी रोटियां सेंकी जाएंगी जो सत्ता की भूख शांत करेंगी।
कमलनाथ ने महिला कांग्रेस को सौंपी बड़ी जिम्मेदारी
बस दिनों की गिनती करते जाइए। आपकी गिनती पूरी होने से पहले महिला कांग्रेस की तेज-तर्रार नेता आपको अपनी गली, मोहल्ले या घर के आसपास दिखने लगेंगी। खासतौर से अगर आप उन 70 सीटों का हिस्सा हैं जहां कांग्रेस जीतने के लिए बेताब है तो वहां आप ये महिला कांग्रेस की नेताओं को जरूर देख पाएंगे। महिला कांग्रेस को कमलनाथ ने ये बड़ी जिम्मेदारी सौंपी है। उन्हें अलग-अलग चरणों में भारी रणनीति को अंजाम देना है।
महिला कांग्रेस के जिम्मे 70 सीटें
महिला कांग्रेस को उन 70 सीटों की जिम्मेदारी दी गई है जहां कांग्रेस को 3 या 5 चुनाव से जीत नहीं मिली है। महिला कांग्रेस कार्यकर्ता घर-घर जाकर संपर्क करेंगी। हर घर से एक महिला सदस्य बनाने की जिम्मेदारी होगी। सरकार की नाकामियां गिनाएंगी। हर घर से एक महिला को साथ जोड़ने के साथ-साथ कांग्रेस की धुरंधर नेता गली-गली में जाकर प्रदर्शन भी करेंगी। प्रदर्शन के जरिए महंगाई का मुद्दा जोरशोर से उठाया जाएगा जिसने पूरे किचन का बजट खराब कर दिया है।
महिला कांग्रेस को इन सीटों पर अदा करनी है बड़ी जिम्मेदारी
रहली, नरयावली,सागर, बीना, गुना, शिवपुरी, दतिया, डॉ. आंबेडकर नगर (महू), इंदौर दो, इंदौर चार, इंदौर पांच, बिजावर, चांदला, पथरिया, हटा, सिरमौर, सेमरिया, त्योंथर, रामपुरबघेलान, रीवा, सीधी, सिंगरौली, देवसर, धौहनी, जैतपुर, बांधवगढ़, मानपुर, मुड़वारा, जयसिंह नगर, जबलपुर, कैंट, पनागर, सिहोरा, परसवाड़ा, बालाघाट, सिवनी, आमला, टिमरनी, सिवनी मालवा, होशंगाबाद, सोहागपुर, पिपरिया, भोजपुर, कुरवाई, शमशाबाद, बैरसिया, नरेला, हुजूर, गोविंदपुरा, बुधनी, आष्टा, सीहोर, सारंगपुर, सुसनेर, शुजालपुर, देवास, खातेगांव, बागली, हरसूद, खंडवा, पंधाना, बुरहानपुर, धार, उज्जैन उत्तर, उज्जैन दक्षिण, रतलाम सिटी, मंदसौर, मल्हारगढ़, नीमच और जावद।
बीजेपी को त्रिदेवों की ताकत पर यकीन और महिला कांग्रेस पर शक
बीजेपी को अपने त्रिदेवों की ताकत पर जितना यकीन है। महिला कांग्रेस की ताकत पर उतना ही शक है। बीजेपी के अधिकांश नेताओं को यकीन है कि कांग्रेस के इस नए सदस्यता अभियान की हवा जल्द ही निकल जाएगी। बीजेपी सामने जो कुछ भी कहे लेकिन भीतर से इत्मीनान उसे भी होना मुश्किल है। कमलनाथ के नेतृत्व में कांग्रेस एक बार जीत का कारनामा दिखा चुकी है। उसकी एक झलक कुछ ही दिन पहले हुए नगरीय निकाय के चुनाव में भी दिखाई दी। सत्ता और संगठन दोनों कमलनाथ के तजुर्बे को नजरअंदाज करेंगे तो फिर नतीजे भारी पड़ सकते हैं। चुनावी जानकारों का कहना है कि वर्तमान में महिला कांग्रेस की अध्यक्ष विभा पटेल हैं। जो ओबीसी वर्ग का चेहरा हैं। ये वर्ग लगातार में सत्ता में अपनी अनदेखी से नाराज है। महिला कांग्रेस इस बात का भी फायदा उठा सकती है।
हिमाचल के चुनाव कांग्रेस के फॉर्मूले का लिटमस टेस्ट
मध्यप्रदेश की रणनीति पर ही हिमाचल प्रदेश में भी महिला कांग्रेस काम कर रही है। हिमाचल प्रदेश महिला कांग्रेस ने हर बूथ से 10 महिलाओं को जोड़ने का लक्ष्य रखा है। मध्यप्रदेश से पहले हिमाचल में चुनाव होने हैं। ये कांग्रेस के इस फॉर्मूले का लिटमस टेस्ट होगा। इसके बाद कांग्रेस को पर्याप्त समय मिलेगा। देवियों की शक्ति में जहां जो कमी होगी उसकी भरपाई की जा सकेगी। अब बस देखना ये है कि इस जिम्मेदारी के मिलने के बाद जिस एनर्जी से महिला कांग्रेस का रिएक्शन आया है। चुनावी ठोकरों के बाद भी ये जज्बा और जुनून यूं ही कायम रहता है या नहीं।