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NEW DELHI. दिल्ली में ट्रांसफर-पोस्टिंग को लेकर उपराज्यपाल (एलजी) और अरविंद केजरीवाल सरकार की लड़ाई एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई है। दरअसल, 11 मई को दिल्ली सरकार की याचिका पर 5 जजों की बेंच ने कहा था- पब्लिक ऑर्डर, पुलिस और जमीन को छोड़कर उपराज्यपाल बाकी सभी मामलों में दिल्ली सरकार की सलाह और सहयोग से ही काम करेंगे। इसके 7 दिन बाद यानी 19 मई को केंद्र सरकार ने ऑर्डिनेंस (अध्यादेश) लाकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलट दिया। अध्यादेश के मुताबिक, दिल्ली में अधिकारियों के ट्रांसफर-पोस्टिंग का आखिरी फैसला उपराज्यपाल का होगा। इसमें मुख्यमंत्री को कोई अधिकार नहीं होगा। आज यानी 20 मई को केंद्र सरकार सुप्रीम कोर्ट पहुंची और 5 जजों की बेंच के फैसले पर फिर से विचार करने के लिए याचिका दायर की है।
Centre moves Supreme Court seeking review of May 11 Constitution bench judgement where apex court held that Delhi government has “legislative and executive power over services” in the national capital.
Centre brought an ordinance yesterday to create a National Capital Civil… pic.twitter.com/5yigmIAoSR
— ANI (@ANI) May 20, 2023
मई के इन तीन दिनों में का बड़ा घटनाक्रम
- 11 मई- SC बेंच बोली- एलजी दिल्ली सरकार की सलाह पर काम करेंगे
सुप्रीम कोर्ट ने 11 मई को फैसला दिया कि दिल्ली में सरकारी अफसरों पर चुनी हुई सरकार का ही कंट्रोल रहेगा। 5 जजों की बेंच ने एक मत से बोली- पब्लिक ऑर्डर, पुलिस और जमीन को छोड़कर उपराज्यपाल बाकी सभी मामलों में दिल्ली सरकार की सलाह और सहयोग से ही काम करेंगे।
- 12 मई- केजरीवाल ने सर्विस सेक्रेटरी का ट्रांसफर किया, एलजी ने रोका
सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बेंच के फैसले के एक दिन बाद ही मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने सर्विस सेक्रेटरी आशीष मोरे को हटा दिया। दिल्ली सरकार का आरोप है कि एलजी ने इस फैसले पर रोक लगा दी। LG सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद ऐसा कर रहे हैं। यह कोर्ट के आदेश की अवमानना है। हालांकि, बाद में LG ने फाइल पास कर दी।
- 19 मई- केंद्र ने ऑर्डिनेंस लाकर SC का फैसला पलटा
सुप्रीम कोर्ट के फैसले (11 मई) के 7 दिन बाद केंद्र सरकार ने 19 मई को दिल्ली सरकार के अधिकारों पर अध्यादेश जारी कर दिया। अध्यादेश के मुताबिक, दिल्ली में अधिकारियों के ट्रांसफर-पोस्टिंग का आखिरी फैसला उपराज्यपाल यानी LG का होगा। इसमें मुख्यमंत्री का कोई अधिकार नहीं होगा। संसद में अब 6 महीने के अंदर इससे जुड़ा कानून भी बनाया जाएगा।
बाकी राज्यों से कैसे अलग है दिल्ली?
दिल्ली एक केंद्र शासित प्रदेश है, लेकिन बाकी केंद्र शासित प्रदेशों से यहां कुछ नियम अलग हैं। 1991 में संविधान में संशोधन किया गया था, जिसके बाद अनुच्छेद 239AA और 239AB प्रभाव में आए। दिल्ली में इन दोनों के तहत की कामकाज होता है। बाकी केंद्र शासित प्रदेशों में अनुच्छेद 239 लागू होता है।
क्या है अनुच्छेद 239AA और 239AB?
अब अनुच्छेद 239AA के तहत ही ये बताया गया है कि राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के प्रशासक उपराज्यपाल होंगे। बाकी तमाम राज्यों के राज्यपालों की तुलना में दिल्ली के एलजी यानी उपराज्यपाल के पास ज्यादा शक्तियां होती हैं। 239AA के तहत ही दिल्ली सरकार के पास कानून व्यवस्था, पुलिस और भूमि से जुड़े अधिकार नहीं हैं। इन तीनों मामलों पर दिल्ली सरकार कुछ नहीं कर सकती। केंद्र सरकार को इन तीनों को देखना होता है। इसमें कहा गया है कि सरकार के साथ मतभेद होने पर एलजी उस मामले को राष्ट्रपति को भेज सकते हैं।
इसके अलावा अनुच्छेद 239AB में आपातकाल की स्थिति को बताया गया है। अगर दिल्ली में कुछ ऐसा होता है, जिससे आपातकाल लगाने की संभावनाएं बढ़ती हैं तो इसके तहत एलजी इमरजेंसी की सिफारिश कर सकते हैं। सरकार ठीक से नहीं चल पाने की स्थिति में एलजी राष्ट्रपति से इमरजेंसी लगाने की सिफारिश कर सकते हैं।
मोदी और केजरीवाल...हम साथ-साथ हैं
अब दिल्ली सरकार में विवाद की बात करते हैं और आपको बताते हैं कि कब-कब दिल्ली का बॉस बदलता रहा। पिछले 8 साल से दिल्ली की सत्ता में अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी की सरकार है, वहीं केंद्र की सत्ता में बीजेपी काबिज है। इसकी वजह से लगातार दिल्ली सरकार और एलजी के बीच टकराव होता रहा है। मामला कई बार सुप्रीम कोर्ट पहुंचा और हर बार हाई वोल्टेज ड्रामा देखने को मिला है।
ऐसे शुरू हुआ विवाद
केजरीवाल vs जंग
केजरीवाल ने सरकार बनाते ही 2015 में एक आदेश दिया कि जमीन, पुलिस और कानून व्यवस्था से जुड़ी तमाम फाइलें पहले उनके पास आनी चाहिए। इसके बाद उन्हें एलजी के पास भेजा जाएगा। तब दिल्ली में नजीब जंग उपराज्यपाल थे, जिन्होंने इस आदेश को लागू करने से इनकार कर दिया। इसके बाद तत्कालीन एलजी नजीब जंग ने एक बड़ा फैसला लिया और दिल्ली सरकार की तरफ से नियुक्त किए गए तमाम अधिकारियों की नियुक्ति को रद्द कर दिया। एलजी ने कहा था कि नियुक्ति का अधिकार उन्हें है।
फिर हाई कोर्ट ने एलजी को बताया था बॉस
यहां से अफसरों के ट्रांसफर और नियुक्ति का मामला उठा और दिल्ली सरकार ने हाई कोर्ट का रुख किया। दिल्ली हाईकोर्ट ने अगस्त 2016 में बड़ा फैसला सुनाते हुए कहा कि दिल्ली में एलजी ही असली बॉस हैं। ये दिल्ली सरकार के लिए एक बड़े झटके की तरह था। हाई कोर्ट ने कहा था कि प्रशासनिक मामलों में एलजी की सहमति जरूरी है और मंत्रिमंडल कोई भी फैसला लेने से पहले उसे एलजी को भेजेगा।
सुप्रीम कोर्ट पहुंचा मामला
हाईकोर्ट से बड़ा झटका मिलने के बाद केजरीवाल सरकार की तरफ से इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई। मामले की लंबी सुनवाई के बाद 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए साफ किया कि चुनी हुई सरकार ही दिल्ली की असली बॉस होगी। तब भी सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि पुलिस, जमीन और कानून-व्यवस्था को छोड़कर बाकी सभी अधिकार दिल्ली सरकार के पास ही हैं।
केंद्र सरकार लाई एनसीटी बिल
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद केंद्र सरकार की तरफ से संसद में एक बिल लाया गया, जिसमें एलजी और दिल्ली सरकार की शक्तियों को परिभाषित किया गया था. इस बिल में साफ तौर पर कहा गया था- 'दिल्ली में सरकार का मतलब उपराज्यपाल है।' बिल पेश होने के बाद आम आदमी पार्टी और बाकी विपक्षी दलों ने इसका विरोध किया, लेकिन भारी हंगामे के बीच गवर्मेंट ऑफ नेशनल कैपिटल टेरिटरी ऑफ दिल्ली बिल 2021 को दोनों सदनों से पास कर दिया गया। इसके बाद इसे नोटिफाई भी किया गया, जिसके खिलाफ बाद में दिल्ली सरकार सुप्रीम कोर्ट पहुंची।
क्या होता है अध्यादेश?
जब संसद या विधानसभा का सत्र नहीं चल रहा हो तो केंद्र या राज्य सरकार को कानून बनाने की जरूरत महसूस हो रही तो सरकार राष्ट्रपति या राज्यपाल की अनुमति से अध्यादेश (ऑर्डिनेंस) जारी करती हैं। इसमें संसद/विधानसभा द्वारा पारित कानून जैसी शक्तियां होती हैं। अध्यादेश को 6 महीने के अंदर संसद या राज्य विधानसभा के अगले सत्र में सदन में पेश करना अनिवार्य होता है। अगर सदन उस विधेयक को पारित कर दे तो यह कानून बन जाता है। जबकि तय समय में सदन से पारित नहीं होने पर यह स्वत: खत्म हो जाता है। हालांकि, सरकार एक ही अध्यादेश को कई बार जारी कर सकती है।