कर्नाटक में सीएम पद की रेस में डीके शिवकुमार और सिद्धारमैया में आगे कौन, जानिए क्या हैं दोनों की ताकत

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Jitendra Shrivastava
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कर्नाटक में सीएम पद की रेस में डीके शिवकुमार और सिद्धारमैया में आगे कौन, जानिए क्या हैं दोनों की ताकत

BANGALORE. कर्नाटक में कांग्रेस पूर्ण बहुमत के साथ सरकार बनाती दिख रही है। अब तक सामने आए नतीजों और रुझानों में कांग्रेस को राज्य में 120 से ज्यादा सीटें मिलती नजर आ रही हैं। नतीजों की तस्वीर साफ होने के बाद अब मुख्यमंत्री पद को लेकर भी चर्चा शुरू हो गई है। कांग्रेस के दो बड़े नेता डीके शिवकुमार और सिद्धारमैया सीएम पद की रेस में सबसे आगे हैं। दोनों ही नेताओं के समर्थकों में जमकर जोश है और वो अपने नेता को सीएम की कुर्सी पर देखना चाहते हैं। हालांकि, सिद्धारमैया पहले पायदान पर खड़े दिख रहे हैं, जो पहले ही ऐलान कर चुके हैं कि ये उनका आखिरी चुनाव है। आइए समझते हैं कैसे सिद्धारमैया इस रेस में डीके शिवकुमार को पछाड़ सकते हैं। 





दोनों नेताओं की ताकत जानना जरूरी





अब सीएम पद की रेस में शामिल इन दोनों नेताओं की ताकत को जानना भी जरूरी है। ये बात किसी से भी नहीं छिपी है कि कर्नाटक कांग्रेस में सिद्धारमैया का दबदबा डीके शिवकुमार से ज्यादा है। सिद्धारमैया ने कई मौकों पर डीके के खिलाफ मोर्चा भी खोला। जब 2013 में सिद्धारमैया को मुख्यमंत्री बनाया गया था तो उन्होंने डीके शिवकुमार को अपने मंत्रिमंडल में शामिल करने से ही इनकार कर दिया था। पार्टी के दबाव के चलते कुछ महीनों बाद उन्हें मंत्री बनाया गया। 





सिद्धारमैया की ताकत...



 



1. कांग्रेस को खड़ा करने में योगदान





सिद्धारमैया को राजनीति के एक बड़े ही शातिर खिलाड़ी के तौर पर जाना जाता है। कर्नाटक में कांग्रेस को पूरी तरह से खड़ा करने में सिद्धारमैया का बड़ा योगदान रहा है। सबसे पहले निर्दलीय चुनाव लड़ने के बाद उनकी जीत ने कर्नाटक में एक गूंज पैदा कर दी। इसके बाद अपना फायदा देखते हुए देवेगौड़ा ने सिद्धारमैया को अपना लिया। तब से वो जेडीएस के साथ जुड़ गए और उन्होंने पार्टी को मजबूत करने का काम किया। इसके बाद सिद्धारमैया को वित्तमंत्री बनाया गया। 





2. जेडीएस में कुमारस्वामी से ज्यादा दबदबा





साल 2004 में कांग्रेस-जेडीएस गठबंधन में सिद्धारमैया को उपमुख्यमंत्री बना दिया गया और धरम सिंह को मुख्यमंत्री पद मिला। हालांकि, ये गठबंधन ज्यादा दिन तक नहीं चल पाया और जेडीएस ने बीजेपी के साथ हाथ मिला लिया। इसके बाद देवेगौड़ा के बेटे कुमारस्वामी को सीएम पद मिला। यहीं से सिद्धारमैया को ये समझ आ गया कि उनका राजनीतिक भविष्य देवेगौड़ा परिवार के रहते ज्यादा अच्छा नहीं होगा। क्योंकि कुमारस्वामी से ज्यादा दबदबा तब सिद्धारमैया का था, इसके बावजूद उन्हें मुख्यमंत्री पद नहीं दिया गया। 





3. दलित-ओबीसी वोट बैंक को खड़ा किया





देवेगौड़ा से मतभेद के चलते 2006 में सिद्धारमैया ने जेडीएस छोड़ दी और अपनी खुद की पार्टी बनाने का ऐलान किया। जिसका नाम ऑल इंडिया प्रोग्रेसिव जनता दल था। हालांकि, बाद में उनका कांग्रेस की तरफ झुकाव बढ़ा और सोनिया गांधी की मौजूदगी में पार्टी का विलय कांग्रेस में कर लिया गया। कांग्रेस में आने के बाद सिद्धारमैया ने जेडीएस के वोट बैंक को खींचने का काम किया और दलित-ओबीसी वोट बैंक को खड़ा कर दिया। जहां से उनका कद लगातार बढ़ता चला गया। इसके बाद से ही सिद्धारमैया कांग्रेस आलाकमान की नजरों में चढ़ गए और 2013 में उन्हें इसका इनाम भी मिल गया। कांग्रेस ने उन्हें कर्नाटक का मुख्यमंत्री बना दिया। मुख्यमंत्री बनने के बाद सिद्धारमैया ने कई आर्थिक और सामाजिक योजनाएं शुरू कीं, जिनसे उनका जनाधार और ज्यादा बढ़ गया। 





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डीके शिवकुमार की ताकत...





1. देवेगौड़ा को हराने के बाद कद बढ़ा 



 



डीके शिवकुमार कांग्रेस के एक ऐसे सिपाही माने जाते हैं, जिन्होंने पार्टी के हर आदेश को चुपचाप माना है और जब भी पार्टी को उनकी जरूरत पड़ी वो पीछे नहीं हटे। हर बार डीके ने पार्टी को संकट में निकालने का काम किया। इसलिए अब वो भी मुख्यमंत्री पद के लिए अपनी दावेदारी पेश कर रहे हैं। डीके ने जब 1989 में देवेगौड़ा को हराया तो उनका कद बढ़ गया। इसके बाद उन्होंने देवेगौड़ा के बेटे कुमारस्वामी को भी हराया और बाद में कुमारस्वामी की पत्नी को हराने का काम किया। डीके कनकपुरा सीट से लगातार 8 बार विधायक रहे हैं। 





2. कांग्रेस के लिए संकटमोचक हुए साबित  





डीके शिवकुमार को कांग्रेस का संकटमोचक भी कहा जाता है, क्योंकि हर बार जरूरत पड़ने पर उन्होंने पार्टी के लिए लड़ाई लड़ी और उसे संकट से बाहर निकालने का काम किया। 2017 में जब सोनिया गांधी के बेहत खास अहमद पटेल को राज्यसभा भेजने की तैयारी हो रही थी, तब बीजेपी ये कोशिश थी कि किसी भी हाल में उन्हें रोका जाए। इसके बाद कर्नाटक में विधायकों को बचाने की बड़ी चुनौती खड़ी हो गई, जिसकी जिम्मेदारी पार्टी ने डीके शिवकुमार को सौंप दी। डीके ने मतदान तक विधायकों को सेफ रखा और अहमद पटेल राज्यसभा पहुंच गए। यहां सोनिया गांधी की नजरों में डीके संकटमोचक बनकर उभरे। 





3. कांग्रेस-जेडीएस की सरकार बनाने में भूमिका 





इसके बाद जब 2018 में कांग्रेस को पूर्ण बहुमत नहीं मिला और उसे सरकार बनानी थी, तब भी डीके शिवकुमार ने काफी अहम भूमिका निभाई। बाद में कांग्रेस और जेडीएस ने मिलकर कर्नाटक में सरकाई बनाई। हालांकि, ये सरकार करीब डेढ़ साल तक चली, क्योंकि विधायकों ने बगावत कर दी। बागी विधायकों को मनाने की जिम्मेदारी भी डीके को मिली, उन्होंने सरकार बचाने की पूरी कोशिश की, लेकिन कामयाब नहीं हो पाए। इसके बाद डीके को मनी लॉन्ड्रिंग केस में ईडी ने गिरफ्तार भी किया और उन पर करप्शन के आरोप लगे। 





कौन किस पर भारी





हमने आपको कर्नाटक कांग्रेस के इन दोनों ही नेताओं की ताकत के बारे में बताया, जिससे ये साफ हो गया है कि दोनों एक दूसरे की टक्कर के नेता हैं और सीएम पद की दावेदारी रखते हैं। हालांकि, अगर पूरे राज्य में जमीनी स्तर की बात करें तो सिद्धारमैया ही आगे नजर आते हैं। सिद्धारमैया का असर पूरे राज्य में दिखता है और उनकी लगभग हर तबके में पकड़ है। जेडीएस से लेकर कांग्रेस तक के अपने सफर में उन्होंने खुद के लिए ये जनाधार कमाया है, वहीं मुख्यमंत्री रहने के दौरान भी उनका ये जनाधार बढ़ा। वहीं डीके शिवकुमार को भले ही डैमेज कंट्रोल में माहिर समझा जाता है, लेकिन सभी वर्गों या क्षेत्रों में उनकी सिद्धारमैया जितनी पहुंच नहीं है।





सीएम पद से होगा सिद्धारमैया का फेयरवेल?





सिद्धारमैया ने चुनाव से पहले ही हर मंच से यही कहा है कि वो इस चुनाव के बाद रिटायर हो रहे हैं, ये उनका आखिरी चुनाव है। इसे पार्टी आलाकमान के लिए भी एक मैसेज की तरह समझा गया। कांग्रेस भी उन्हें सीएम पद देकर उनका फेयरवेल कर सकती है। हालांकि, इसके बाद राहुल-सोनिया के करीबी डीके शिवकुमार का क्या रुख होगा, ये देखना दिलचस्प होगा। 



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