खरगौन/भोपाल. जय आदिवासी युवा शक्ति संगठन (JAYS) के मतभेद अब बाहर नजर आने लगे हैं। इन दिनों संगठन का एक पक्ष जब आंदोलन स्थगित करने का ऐलान करता है तो दूसरा पक्ष आंदोलन करता है, आखिरकार ये विरोधाभास क्यों? द सूत्र ने इस पूरे मामले की पड़ताल करते हुए जयस के दोनों से पक्षों से बातचीत की। जिसमें एक पक्ष डॉ हीरालाल अलावा (Dr. Hiralal Alawa) का है तो दूसरे पक्ष में जयस के बाकी फाउंडर मेंबर (Jays Founder membr) है। दोनों ही पक्ष खुद को सही साबित करने में जुटे हैं।
आंदोलन पर जयस में दो फाड़
14 सितंबर को आदिवासी युवक बिसन की पुलिस पिटाई से कथित मौत के बाद उसे न्याय दिलाने के लिए जयस ने आंदोलन (Jays Protest) किया। आंदोलन के ऐलान से पहले जयस के पदाधिकारी राजेंद्र पंवार का बयान सामने आता है कि एसपी को हटाए जाने के साथ ही जयस की अधिकारियों पर कार्रवाई की जो मांग थी, वो पूरी हो गई। सरकार ने मुआवजे का ऐलान भी कर दिया, इसलिए 14 सितंबर का आंदोलन नहीं होगा।
पंवार के बयान से फाउंडर मेंबर नाराज
राजेंद्र पंवार कांग्रेस विधायक और जयस के फाउंडर मेंबर हीरालाल अलावा से जुड़े है। पंवार का ये बयान सामने आने के बाद जयस के बाकी के जो फाउंडर मेंबर है वो थोड़े नाराज हुए। सभी ने सोशल मीडिया पर कैंपेन (Social media campaign) चलाया कि 14 सितंबर को खरगौन पहुंचना है। इनमें महेंद्र कन्नौजे, नितेश अलावा, समेत जयस की जिला इकाईयों के पदाधिकारियों ने कार्यकर्ताओं को खरगौन पहुंचने का आव्हान किया। जयस की तरफ से संदेश भी जारी किया गया कि आंदोलन स्थगित नहीं हुआ है।
हीरालाल अलावा गुट आंदोलन में नजर नहीं आया
सभी खरगौन पहुंचे और आंदोलन भी किया। लेकिन हीरालाल अलावा गुट का कोई पदाधिकारी इसमें नजर नहीं आया। आंदोलन के बाद जयस के पदाधिकारियों ने मांग की कि दोषी पुलिसकर्मियों पर हत्या के आरोप में मामला दर्ज किया जाए। अगर ऐसा नहीं हुआ तो आंदोलन जारी रहेगा।
कांग्रेस से चुनाव लड़ते ही अलावा बाहर- मुजाल्दे
जयस के पदाधिकारी लोकेंद्र मुजाल्दे का साफ कहना है कि जिस दिन हीरालाल अलावा ने कांग्रेस (Congress) के टिकट पर चुनाव लड़ा था, तभी से वो जयस से बाहर हो गए क्योंकि जयस की स्थापना के दौरान बनाए गए संविधान (Constitution) में ऐसा जिक्र है कि जो राजनीति (Politics) में जाएगा। वो अपने आप जयस का सदस्य नहीं रहेगा। क्योंकि जयस एक सामाजिक संगठन है।
हीरालाल अलावा का पार्टी संविधान मानने से इंकार
दूसरी तरफ द सूत्र ने हीरा अलावा का पक्ष भी जाना। अलावा ने किसी भी तरह के संविधान को मानने से इंकार कर दिया। अलावा का कहना है कि कोई लिखित संविधान नहीं है। दूसरी तरफ जब सभी मांगें सरकार ने मान ली थीं तो खरगौन में आंदोलन करने का कोई औचित्य नहीं था। साथ ही हीरालाल अलावा ने ये भी कहा कि जो लोग इकट्ठे हुए और आंदोलन किया, उनके साथ वैसी भीड़ नहीं जुटी, जैसी जुटना चाहिए थी। हालांकि, अलावा ने माना कि जिन्होंने आंदोलन किया वो सभी लोग जयस से जुड़े हैं।
सवाल- खरगौन आंदोलन में शामिल क्यों नहीं हुए
हीरालाल अलावा- मैंने तो नहीं बोला था कि आंदोलन करो, प्रभारी लोगों ने निर्धारित किया था, दूसरा इसमें क्या था कि जो मांगें थी, वो पूरी हो गई थी.. आंदोलन से एक दिन पहले एसपी कलेक्टर समेत तमाम अधिकारियों को हटा दिया, मुआवजे वाली मांग थी उसमें प्रशासन ने कहा कि एक करोड़ दिए जाएंगे इसलिए आंदोलन नहीं किया।
सवाल- जयस का संविधान कहता है कि आप अब जयस में नहीं हो
हीरालाल अलावा- कोई संविधान नहीं है। जयस ने कोई लिखा पढ़ी नहीं की है। जो लोग भ्रम फैला रहे हैं वो आप देख लो रिसर्च.. कर लो.. असली जयस नकली जयस का कोई सवाल पैदा नहीं होता। जयस एक वैचारिक क्रांति है, ये कोई लिखापढ़ी वाला संगठन नहीं है।
सवाल- नीतेश अलावा बाकी लोग क्या जयस के नहीं है
हीरालाल अलावा- ये सब आदिवासी जयस है। अब ये अलग बात है कि इनपर जनता कितना भरोसा करती है। इन्होंने बोला कि 50 हजार आएंगे लेकिन खरगौन में कितने आए सबको पता चल गया। ऐसा नहीं है ये सब जयस के ही है...ऐसा जरूरी नहीं है कि सब एकसाथ चले। 25 अक्टूबर को बड़ा कार्यक्रम करने जा रहे हैं। उसमें सारी चीजें साफ हो जाएगी।
जयस अंर्तद्वंद से जूझ रहा
दरअसल जयस के भीतर तनातनी इस बात की है कि हीरालाल अलावा जयस का कांग्रेसीकरण करने में जुटे हैं। जयस संगठन में कांग्रेस के पदाधिकारियों को भी शामिल किया जा रहा है। ऐसे में आदिवासियों के हितों की बात उठाने वाला जयस आपसी अंर्तद्वंद से जूझ रहा है। इस समय एक के बाद एक जो घटनाक्रम हो रहे हैं और जयस जिस तरीके से मामलों को उठा रहा है, उसने विपक्ष के साथ सरकार की नींद उड़ाई हुई है। इसलिए पूछा जा रहा है कि कहीं ऐसा ना हो कि इसका फायदा पहले से स्थापित ये राजनीतिक दल उठा ले। हालांकि दोनों पक्ष चाहे वो हीरालाल अलावा का हो या फिर जयस के फाउंडर मेंबर्स का, दोनों इस बात को सिरे से खारिज करते हैं। बहरहाल जानकार मानते हैं कि जयस को आदिवासियों की आवाज पुरजोर तरीके से बुलंद करना है तो ये आपसी अंर्तद्वंद भुलाकर एकसाथ आना होगा।