BHOPAL. कर्नाटक के विधानसभा चुनाव का असर अब मध्यप्रदेश में भी देखने को मिल रहा है। कम से कम बीजेपी की ओर से जारी उम्मीदवारों की पहली सूची को देखकर तो ऐसा कहा ही जा सकता है। कर्नाटक में कांग्रेस ने बड़े पैमाने पर सोशल जस्टिस पर फोकस किया। इसके तहत कांग्रेस ने बड़ी संख्या में ओबीसी और दलित वोटर्स पर फोकस किया। उसने इस वर्ग से बड़ी संख्या में उम्मीदवार भी मैदान में उतारे। उधर बीजेपी हिंदू वोटों के धुर्वीकरण पर ही टिकी रही। उसने बजरंबली, हिजाब जैसे अपने पिछले समय में हिट रहे मुद्दों पर ही फोकस रखा।
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कारगर साबित हुआ कांग्रेस का फॉर्मूला
कर्नाटक में नतीजा बीजेपी के अनुरूप नहीं रहा। यहां कांग्रेस का सोशल जस्टिस वाला फॉर्मूला काम कर गया और नतीजा कांग्रेस के पक्ष में रहा। यहां कांग्रेस अपनी सरकार बनाने में कामयाब रही। कर्नाटक के इस परिणाम का मध्यप्रदेश के चुनाव में क्या असर पड़ रहा है ? बीजेपी की पहली सूची में जारी नामों को देखकर कहा जा सकता है कि उसकी प्लानिंग में कर्नाटक के रिजल्ट का असर दिख रहा है। बीजेपी ने जो पहली सूची जारी की है, उसमें 39 नाम शामिल हैं।
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कांग्रेस के सोशल जस्टिस की काट निकाल रही बीजेपी
बीजेपी की पहली लिस्ट में उम्मीदवार - 39
अनुसूचित जाति |
बीजेपी की लिस्ट में अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित 8 और अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित 13 सीटों के लिए उम्मीदवार शामिल हैं। आरक्षित वर्ग की सीटों के लिए इसी वर्ग से प्रत्याशी दिए जा सकते हैं। अब बात करते हैं बाकी बची अनारक्षित 18 सीटें। असल में इन सीटों पर घोषित उम्मीदवारों के नाम ही बयां कर रहे हैं कि ये कर्नाटक के परिणाम का असर है। इन सीटों के लिए घोषित नामों पर गौर करने पर बीजेपी की पूरी प्लानिंग को समझा जा सकता है कि वो किस तरह कांग्रेस की सोशल जस्टिस की काट निकाल रही है।
18 में से 13 सीटों पर OBC वर्ग से उतारे उम्मीदवार
बीजेपी ने इन अनारक्षित 18 में से 13 सीटों पर OBC वर्ग से उम्मीदवार उतारे हैं। बाकी की 5 सीटों पर सामान्य वर्ग से उम्मीदवार दिए गए हैं। बीजेपी को ऐसा लग रहा है कि कहीं न कहीं कांग्रेस जातिगत जनगणना, 27 फीसदी कोटा सहित अन्य मुद्दे उठाकर OBC वर्ग के वोट कर्नाटक की तरह अपनी तरफ लामबंद कर सकती है। इसका खामियाजा न उठाना पड़े, इसके लिए उसने टिकट वितरण में इस बात का ख्याल रखा है कि ज्यादा से ज्यादा OBC वर्ग के उम्मीदवार मैदान में उतारे जाएं। इससे उस पर सोशल जस्टिस की पॉलिटिक्स का असर न हो, या हो भी तो उतना घातक साबित न हो। अब ये तो वक्त ही बताएगा कि कांग्रेस, बीजेपी की इस रणनीति का क्या तोड़ निकालती है या बीजेपी की ये प्लानिंग कितनी असरदार साबित होती है।