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अरुण तिवारी, BHOPAL. केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने जब से प्रदेश के चुनाव की कमान संभाली है तब से सबकुछ नया और अलग हो रहा है। शाहनीति ने यहां की राजनीति को पूरी तरह बदल दिया है। चुनाव यहां होंगे, लेकिन तय सबकुछ दिल्ली से होगा। एमपी का चुनाव अब प्रदेश के नेता नहीं बल्कि, यूपी और गुजरात जिताएंगे। प्रदेश के 230 उम्मीदवार तय करने के लिए अमित शाह ने यूपी, गुजरात, बिहार और महाराष्ट्र के 230 विधायकों को जिम्मा सौंपा है। जल्द ही ये भोपाल आकर ट्रेनिंग लेने वाले हैं। 230 में से करीब 150 सीटें यूपी और गुजरात के हवाले की हैं। यानी सत्ता की चाबी प्रदेश इकाई के पास नहीं बल्कि पड़ोसी राज्यों के विधायकों के पास है।
यूपी के हवाले 100 सीटें
यूपी को सबसे महत्वपूर्ण इलाका दिया है जो बीजेपी में डेंट मार सकता है। ये है ग्वालियर-चंबल यानी ज्योतिरादित्य सिंधिया का इलाका। यहां पर सिंधिया भी टिकट तय नहीं करेंगे। ग्वालियर-चंबल की सभी 34 सीटें यूपी के विधायकों को दी गई हैं। इसके अलावा पूरा बुंदेलखंड और विंध्य भी उत्तरप्रदेश के विधायकों के हवाले है। ग्वालियर-चंबल और बुंदेलखंड, यूपी की सीमा से लगे क्षेत्र हैं इसलिए यहां की सियासत भी एक तरह की ही है। इसके अलावा यूपी को महाकौशल की तीन, मध्य की 8 और मालवा की छह सीटों की जिम्मेदारी भी यूपी के विधायकों के पास है। सीएम की सीट बुदनी में भी यूपी के विधायक तैनात होंगे।
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गुजरात को 48 सीटों का जिम्मा
यूपी के बाद गुजरात दूसरा ऐसा राज्य है जहां के विधायकों को ज्यादा सीटें दी गई हैं। गुजरात के विधायकों को 48 सीटें दी गई हैं। गुजरात के विधायकों को मालवा और निमाड़ की सीटें सौंपी हैं। मालवा के वे क्षेत्र जो गुजरात से जुड़े उन विधायकों को यहां तैनात किया जा रहा है। इंदौर की सभी सीटों पर उम्मीदवार कैलाश विजयवर्गीय नहीं बल्कि गुजरात के विधायक तय करेंगे।
बिहार को 35 और महाराष्ट्र को 47 सीटों की जिम्मेदारी
बिहार को 35 सीटों का जिम्मा सौंपा गया है। भोपाल सीट पर उम्मीदवारों के नाम बिहार के विधायक ही तय करेंगे। इसके अलावा बिहार को जरुरत के अनुसार क्षेत्र दिए गए हैं। इनमें मध्य, मालवा और एससी-एसटी की सीटें शामिल हैं। इसके अलावा महाराष्ट्र को 47 सीटों की जिम्मेदारी है। महराष्ट्र को भी मध्य, महाकौशल, विंध्य और आरक्षित सीटें दी गई हैं। जबलपुर के टिकट महाराष्ट्र के विधायक तय करेंगे।