इब्तिदा-ए-इश्क़ है रोता है क्या, आगे-आगे देखिए होता है क्या
अब इस इश्क को राजनीति कह कर पढ़े तो क्या कुछ गलत होगा. देश और मध्यप्रदेश की सियासत में जो उथलपुथल मच रही है. उसे देखकर ये कहा जा सकता है कि एक नई सियासत की शुरूआत है जिसे देखकर फिलहाल कांग्रेस के पास रोने या यूं कहें कि हाथ मलने के सिवाय कोई चारा नहीं बचा है. तो इब्तिदा ए सियासत तो कांग्रेस देख ही रही है और आगे आगे क्या होता है ये भी देखना अभी बाकी है.
ये शेर कांग्रेस के उस हाल के लिए कि वो तिल तिल कर टूट रही है और बेबसी ये कि चाह कर भी कुछ कर नहीं सकती. पूरा देश हो या सिर्फ मध्यप्रदेश दोनों ही जगह हाल एक सा है. बीजेपी के सत्ता में आने के बाद से और खासतौर से साल 2020 के बाद से जिस तरह बीजेपी कांग्रेस को तोड़ती चली जा रही है, वो सिलसिला अब भी जारी है. शुरूआत सिर्फ कांग्रेस को तोड़ने से हुई थी और अब तो बात इंडिया गठबंधन तक जा पहुंची है.
साल 2020 में पार्टी ने अपने सबसे बड़े नेता को बीजेपी में जाते देखा. ये नेता थे ज्योतिरादित्य सिंधिया. जो अपने साथ कुछ और कांग्रेसियों को ले गए. उनके इधर से उधर जाने पर कांग्रेस ने खूब उंगलियां उठाईं. उन्हें गद्दार और विभिषण तक कहा गया. लेकिन सिंधिया का बीजेपी में आना क्या हुआ. ऐसा लगा जैसे सियासत की धूरी के दो ग्रहों का पोर्टल ही खुल गया हो. उसके बाद एक एक कर कई बड़े नेता और गांधी परिवार के करीबी कांग्रेस से दूर होते चले गए. ताजा हालात से पहले एक नजर जरा उन पुराने परिवारों पर डाल लीजिए जिन पर कभी कांग्रेसी होने का ठप्पा लगा था और अब वो भाजपाई रंग में रंग चुके हैं. सिंधिया घराने की बात तो आप सब जानते हैं. उसके अलावा.
कांग्रेस मौजूदा समय में अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रही है. इन बीते आठ सालों में बीजेपी ने ना केवल अपने वोट बैंक को मजबूत किया है, बल्कि कांग्रेस समेत कई क्षेत्रिय दलों के नेताओं को भी अपने दल में शामिल किया है. आइए आपको बताते हैं कि इन आठ सालों में बीजेपी ने किन वंशवादी नेताओं को अपनी तरफ खींचने में सफलता हासिल की है.