INDORE. साउथ में अपने दम पर फिल्म सुपर हिट कराने वाले सुपर स्टार रजनीकांत की बात करें या फिर चेन्नई टीम के महेंद्र सिंह धोनी की दोनों को प्यार से थलाइवा या थाला कहा जाता है। यानी टीम का नेता या बॉस, द लीडर। ये बात अब यहां क्यों उठ रही है? क्योंकि मध्यप्रदेश के सत्ता के गलियारे मालवा-निमाड़ की 66 सीटों के लिए बीजेपी हो या कांग्रेस दोनों को ही इस थलाइवा की तलाश करना है, यानी वो चेहरा चाहिए जो प्रत्याशी के समर्थन में आगे बढ़कर कह सके कि आप इन्हें मत देखिए, मुझे देखकर वोट दीजिए, काम कराना मेरी गारंटी। जैसा लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी के चेहरे पर ही वोट डलते हैं। मध्यप्रदेश के परिदृश्य में कहें तो पहले ज्योतिरादित्य सिंधिया अपने लोगों के लिए यही कहते थे, ये नहीं खड़े हुए हैं, मैं खड़ा हुआ हूं, मुझे वोट देना। अब इस चुनाव में कहेंगे कि नहीं, इस पर अभी असमंजस है।
क्यों चाहिए थलाइवा?
बात अब क्यों चाहिए थलाइवा? प्रदेश स्तर पर बात सीएम की होती है, सीएम फेस जिस जगह के होते हैं, वहां उस एरिया के लिए तो वही थलाइवा होते हैं, जैसे शिवराज सिंह चौहान की बात करें तो मध्य मध्यप्रदेश का एरिया और इधर कमलनाथ की बात करें तो छिंदवाड़ा एरिया आ गया, लेकिन दोनों ही मालवा-निमाड़ के लिए थलाइवा की भूमिका में नहीं हैं और जब बात 230 विधानसभा सीट की होगी तो वे चुनाव के समय इतना समय भी नहीं दे सकते हैं और ना इस एरिया के सभी नेता सीधे जुड़ सकते हैं, ऐसे में हर एरिया में एक थलाइवा तो चाहिए जो उस एरिया में सभी नेताओं को जोड़ सके और जो सीधे पार्टी, संगठन में उनकी पीड़ा को बताकर हल करा सके। इसलिए इस क्षेत्र में नेताओं को भी एक थलाइवा की जररूत है।
बीजेपी में विजयवर्गीय या मोघे कौन हो सकता है थलाइवा
बीजेपी की बात करें तो सब पर्दे के सामने तो यही कहेंगे कि वे कार्यकर्ता हैं और पार्टी संगठन ही थलाइवा है, लेकिन इस टसल वाले चुनाव में ये बात हजम नहीं होगी। मालवा-निमाड़ में बीजेपी के लिए केवल कैलाश विजयवर्गीय ही दूर-दूर तक नजर आते हैं जो इस भूमिका में फिट बैठते हैं, लेकिन समस्या ये है कि वे खुद तो एरिया में घूम रहे हैं और थलाइवा जैसा व्यवहार भी कर रहे हैं, लेकिन पार्टी… वो तो अभी तक उन्हें आगे बढ़ा ही नहीं रही है। यहां के नेताओं को भी ये बात पता है कि पार्टी ने अभी तक उन्हें थलाइवा की भूमिका नहीं दी है तो फिर मालवा-निमाड़ के नेता उनकी सुनेंगे कैसे? शिवराज सिंह चौहान के पास इतना समय नहीं है और ना आगे होगा, वहीं दूसरे नेता अपने क्षेत्र के केवल 2-4 सीट तक ही प्रभाव डालने वाले हैं। बाकी वरिष्ठ नेताओं को तो पार्टी पहले ही अलग-थलग कर थलाइवा की जगह मार्गदर्शक मंडल तक सीमित कर चुकी है, इसमें एक बड़ा नाम कृष्णमुरारी मोघे का था, जो मालवा से लेकर निमाड़ तक सक्रिय रहे, लेकिन अब केवल उनसे रिपोर्ट लेने का काम किया जा रहा है। सांसद होने के बाद भी शंकर लालवानी की इंदौर जिले मे ही थलाइवा जैसी भूमिका नहीं है तो फिर मालवा-निमाड़ तो दूर की बात है।
संघ के पदाधिकारी ही बनेंगे थलाइवा
जिस तरह से बीजेपी में अंदरूनी उठापठक मची हुई है और संघ लगातार सक्रिय हो रहा है और सर्वे बैठकें कर अपनी रणनीति बना रहा है, इससे तो यही लग रहा है कि पार्टी संगठन भी नहीं बल्कि संघ ही यहां पर थलाइवा की भूमिका में रहने वाला है। वैसे भी ये संघ का सभी से अहम प्रांत है। इसमें वो साल 2018 जैसी चोट नहीं खा सकते हैं, जब 66 में 57 सीट लाने वाली बीजेपी केवल 29 सीटों पर सिमट गई थी।
अब कांग्रेस के लिए तो सिंह ही हैं थलाइवा
बात कांग्रेस की करें तो इंदौर-उज्जैन संभाग यानी मालवा-निमाड़ के लिए उसने दिग्विजय सिंह के पुत्र जयवर्धन सिंह को जिम्मेदारी दे दी है। कुल मिलाकर नेताओं को संदेश यही है कि जो भी करेंगे इस एरिया के लिए दिग्विजय सिंह करेंगे और सभी नेताओं का पूरा ध्यान रखेंगे, यानी चेहरा थलाइवा के तौर पर जयवर्धन सिंह का है और गारंटी पूर्व सीएम दिग्विजय सिंह की है। हाल ही में जिस तरह से उन्होंने जोशीले युवा की तरह प्रदेश की हारी हुई 66 विधानसभा सीटों पर तूफानी दौरे किए, लोगों से मिले, उससे ये बात फिर स्थापित हो गई कि कांग्रेस की राजनीति में तो वही सुपरस्टार रजनीकांत यानि असली थाला हैं। उधर इस क्षेत्र में लोग उनकी गारंटी इसलिए भी सौ टका सही मान रहे हैं क्योंकि साल 2018 के दौरान 15 माह की सरकार में वे ट्रायल देख चुके हैं कि कमलनाथ ने सिंह की राय और सलाह को कितनी तवज्जो देते हुए काम किया था। आगे भी कमलनाथ प्रदेश में किसी की सलाह मानेंगे चाहे चुनाव के पहले हो या चुनाव के बाद वो दिग्गी ही होंगे। ऐसे में कांग्रेस में मोटे तौर पर थलाइवा तय है और बीजेपी के लिए संघ को ही थलाइवा बनना होगा।
रेस के अंतिम चरण से पहले हांफ नहीं जाए कांग्रेस, सत्ता की एनर्जी बीजेपी के पास
एक करीबी ने जब कमलनाथ से पूछा कि क्या स्थिति है चुनाव की? तो उन्होंने कहा कि अभी की स्थिति में कांग्रेस की जीत तय है, लेकिन लय बनाकर रखना होगी क्योंकि सत्ता में बीजेपी है और वो ऐन वक्त तक कुछ भी बड़ा दांव खेल सकती है। उनकी आशंका सही साबित हुई, सीएम चौहान ने लाड़ली बहना की राशि 1 हजार से बढ़ाकर 3 हजार करने का दांव खेल दिया है, जो कांग्रेस के 1500 पर भारी पड़ने जा रहा है। एक अहम बात ये भी कि कांग्रेस ने अपनी सारी योजनाएं पहले ही साफ कर दी हैं, यानी अब नया उनके पास कुछ नहीं है ऐसी बात सामने आने लगी है। रेस के शुरुआत में धावक एनर्जी बचाकर अंतिम चरण में सभी को पीछे छोड़ता है, लेकिन कांग्रेस ने कहीं सारी एनर्जी पहले चरण में ही तो नहीं लगा दी? ये देखने वाली बात होगी, क्योंकि रेस अभी बहुत लंबी है और सत्ता की एनर्जी बीजेपी के पास मौजूद है। हम भी जय बजरंग बली के नारे के साथ रेस पर नजर रखे हुए हैं।