बदहाल हैं विरासतें, धरोहरों पर ध्यान जरुरी

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Ruchi Verma
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बदहाल हैं विरासतें, धरोहरों पर ध्यान जरुरी

रुचि वर्मा, ओपी नेमा 



Bhopal: दुनिया का सबसे बड़ा शिवलिंग मध्यप्रदेश के भोजपुर में है। भोजपुर का शिव मंदिर एएसआई के अधीन है। लेकिन अतिक्रमण का शिकार है। मंदिर के चारों तरफ एएसआई ने बाउंड्रीवॉल तो बनाई है लेकिन बाउंड्रीवॉल खत्म होते ही यहां दुकानें शुरू हो जाती हैं जबकि संरक्षित इमारतों के 100 मीटर के दायरे में किसी तरह के निर्माण नहीं किए जा सकते। लेकिन मंदिर परिसर से सटकर ही दुकानें शुरू हो जाती हैं। भोजपुर को भी यूनेस्कों की विश्व धरोहरों में शामिल करवाने की कोशिश हो चुकी है। प्रस्ताव भी भेजा जा चुका है। लेकिन सब कुछ कागजी है। तत्कालीन पर्यटन मंत्री सुरेंद्र पटवा ने भोजपुर के लिए एक प्लान जरूर बनाया था लेकिन वो जमीन पर नहीं उतर सका। हालांकि सुरेंद्र पटवा का दावा है कि जल्द ही ये सपना साकार होगा। पटवा ने कहा कि भोजपुर का मास्टर प्लान तैयार है और जल्द ही इस पर काम शुरु हो जाएगा। यहां से न सिर्फ अतिक्रमण हटेगा बल्कि पार्किंग समेत अन्य सुविधाएं भी मुहैया होंगी। 

 



विश्व धरोहर में शामिल कराने गंभीरता से हों प्रयास : 

पुरातत्व विशेषज्ञ नारायण व्यास मानते हैं कि भोजपुर को विश्व धरोहर में शामिल करना है कुछ नियमों पर खरा उतरना जरूरी होता है। नियमों के हिसाब से भोजपुर को विश्व धरोहर में शामिल करने के लिए सरकार को गंभीरता से प्रयास करने होंगे। इससे पहले सभी मापदंड भी पूरे करने जरुरी हैं। भोजपुर मंदिर अपने खास तरह के शिल्प की वजह से आकर्षण का केंद्र होता है। कहा जाता है कि एक रात में भोजपुर मंदिर को बनाया गया था। धार्मिक आस्था की वजह से पुरातत्व विभाग ने इसे मंदिर प्रोजेक्ट में शामिल किया गया है। इसलिए साल भर श्रद्धालु आते हैं। महाशिवरात्रि और मकर संक्रांति पर यहां विशेष मेला लगता है। ऐसे में यदि भोजपुर को भी विश्व धरोहर में शामिल करना है तो कई इंतजाम करने पड़ेंगे। 



अतिक्रमण का शिकार भेड़ाघाट : 

जबलपुर का भेड़ाघाट, जहां नर्मदा नदी के धुआंधार जलप्रपात को देखने दुनिया भर के लोग आते हैं। धुआंधार की खूबसूरती को देखने लोग आते तो हैं लेकिन तस्वीर का दूसरा पहलू ये है कि यहां उतनी गंदगी भी फैली हुई है। तस्वीर का दूसरा पहलू बेहद चिंताजनक है। भेड़ाघाट को यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थलों की संभावित सूची में शामिल किया गया है लेकिन भेड़ाघाट बदसूरत होता जा रहा है। ये नो प्लास्टिक जोन है लेकिन यहां प्लास्टिक ही प्लास्टिक नजर आता है। कचरे के निपटान का कोई इंतजाम नहीं है। ना तो पर्यटकों को गंदगी करने से रोकने टोकने वाला कोई मौजूद रहता है। नगर पंचायत भेड़ाघाट के पूर्व अध्यक्ष अनिल तिवारी कहते हैं कि इसके लिए कई बार योजनाएं बनीं लेकिन वे अमल में नहीं आ सकीं। नर्मदा में नालों का गंदा पानी ना मिले इसके लिए भी कोई इंतजाम नहीं किए और अभी भी इसके आसपास संचालित उद्योग धंधे और फैक्ट्रियों का गंदा पानी सीधे तौर पर भेड़ाघाट में आकर मिल रहा है। इसकी रोकथाम के लिए कोई उपाय नहीं किए गए। 

 


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