29 दिसंबर 1949; एक फैसले से गूंजने लगे रामलला के जयकारे, गोपाल सिंह विशारद और महंत रामचन्द्र दास परमहंस ने लगाईं अर्जियां

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Jitendra Shrivastava
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29 दिसंबर 1949; एक फैसले से गूंजने लगे रामलला के जयकारे, गोपाल सिंह विशारद और महंत रामचन्द्र दास परमहंस ने लगाईं अर्जियां

AYODHYA. आज अयोध्या में उत्सव है। संत रामधुन गा रहे हैं...

हरि अनंत हरि कथा अनंता, कहहिं सुनहिं बहुबिधि सब संता॥

रामचंद्र के चरित सुहाए, कलप कोटि लगि जाहिं न गाए॥

जैसी अनेक चौपाईयां गूंज रही हैं। संत कहते हैं, श्री हरि अनंत हैं। उनकी कथा भी अनंत। रामलला के सुंदर चरित्र करोड़ों कल्पों में भी गाए नहीं जा सकते। दिसंबर की उस ठंडी सुबह में सूरज की चमक भी तेज थी। दिन चढ़ते-चढ़ते कुछ ऐसा होने वाला था, जो हर किसी के मन को हर्षित कर गया। 29 दिसंबर 1949 का अयोध्या के इतिहास में खास महत्व है। इसी दिन राज्य सरकार ने विवादास्पद गर्भगृह के साथ बाकी जमीन भी अपने अधिकार में ले ली और रामलला की पूजा-अर्चना शुरू हो गई। लगा मानो रामलला की नयनाभिराम छवि का मां सरस्वती, शेषजी, भगवान शिव और वेद गान कर रहे हों।

जैसा बालकांड में लिखा है...

बालचरित अति सरल सुहाए, सारद सेष संभु श्रुति गाए।

जिन्ह कर मन इन्ह सन नहिं राता, ते जन बंचित किए बिधाता॥

दोहे-चौपाईयों के साथ रामलला का स्तुति गान होने लगा। राज्य शासन ने विवादास्पद स्थल के लिए फैजाबाद नगर पालिका के तत्कालीन अध्यक्ष प्रियदत्त राम को रिसीवर बना दिया। पूजा-अर्चना के लिए राशि राज्य सरकार की ओर से दी जाने लगी।

हाईकोर्ट ने कायम रखा आदेश

सर्दी अपने शबाब पर थी। अभी एक पखवाड़ा ही बीता था कि फैजाबाद की दीवानी अदालत में एक अर्जी दाखिल की गई। 16 जनवरी 1950 को ठाकुर गोपाल सिंह विशारद ने यह पहल की। उनकी मांग थी कि गर्भगृह की मूर्ति को प्रशासन या पुलिस हटाए नहीं। रामलला की पूजा में कोई बाधा न डाल सके, इसलिए प्रतिबंधात्मक आदेश दिए जाएं। इस पर अदालत ने स्थगन आदेश जारी कर दिया। 26 अप्रैल 1955 तक हाईकोर्ट ने भी वही आदेश कायम रखा। कानूनी लड़ाई के बीच 1986 में विशारद जी का निधन हो गया। इसके बाद उनके पुत्र राजेंद्र सिंह ने पक्षकार की हैसियत से राम काज को आगे बढ़ाया।

जब महंत ने वापस लिया अपना केस

इससे पहले 5 दिसंबर 1950 को दिगंबर अखाड़े के प्रमुख महंत रामचन्द्र दास परमहंस ने भी विशारद की तरह एक दावा किया। वे भी राम जन्मभूमि के संघर्ष में अगुवा थे। बाद में विश्व हिंदू परिषद द्वारा गठित 'राम जन्मभूमि ट्रस्ट, अयोध्या संस्था का उन्हें अध्यक्ष बनाया गया। हालांकि, बढ़ती उम्र का हवाला देते हुए वर्ष 1990 में उन्होंने अपना दावा वापस लेने की अर्जी लगा दी थी। इसके पीछे उनका तर्क था कि 40 वर्ष से न्याय की आस में कानूनी लड़ाई लड़ रहा हूं। मुझे अब न्याय की उम्मीद नहीं है। दुखद पहलु यह रहा कि वर्ष 2003 में न्यायालय का फैसला आने से पहले वे परलोक सिधार गए।

और निर्मोही अखाड़े ने शुरू की लड़ाई

समय बीतता गया। आस अब भी अधूरी थी। इस बीच 17 दिसंबर 1959 को निर्मोही अखाड़े ने तीसरी अर्जी लगाई। उनका दावा था कि प्रभु रामचन्द्र की जन्मभूमि, जन्म स्थान और उस परिसर के मंदिर का प्रबंधन हमारे अखाड़े के पास पहले से है। लिहाजा, रिसीवर को हटाकर अखाड़े को कब्जा दिया जाए। इस मामले में कुछ निष्कर्ष आता, इससे पहले अर्जी लगाने वाले संत का भी देवलोक गमन हो गया। हालांकि, बाद में उनके एक शिष्य ने अपने गुरू की लड़ाई को आगे बढ़ाया।

सुन्नी वक्फ बोर्ड ने किया दावा

18 दिसंबर 1961 को सुन्नी वक्फ बोर्ड आगे आया। बोर्ड ने पुराने मामलों का हवाला देते हुए कहा कि वह विवादित इमारत बाबर बादशाह ने 433 साल पहले बनाई मस्जिद है। इसमें बड़ा सवाल यह था कि यह केस इतने वर्षों बाद क्यों दायर किया गया। बोर्ड ने भी इसके पीछे कोई ठोस जानकारी नहीं दी। केस यूं ही चलता रहा। रामलला को मंदिर में विराजमान करने की कार्ययोजना पर काम होता रहा। फिर 7 अप्रैल 1984 को राम जन्मभूमि मुक्ति यज्ञ समिति बनी। रामलला की चरित गाथा को कोने-कोने में पहुंचाया गया। फिर समिति की पहल पर पूरे देश में लाखों संकल्प सभाओं का आयोजन हुआ। भारतीय मानस में ये सभाएं रच बस गईं। संकल्प सभाओं के बाद 8 अक्टूबर से 14 अक्टूबर 1984 के बीच अयोध्या से धर्म यात्रा निकाली गई। इसके समापन पर लखनऊ में हिंदू गर्जना का वह विराट स्वरूप नजर आया, जिसे लखनऊ के इतिहास में आज भी याद किया जाता है।

निरंतर...

अयोध्यानामा के अगले भाग में जानिए...

  • किस तरह जज ने नौकरी के बाद शुरू किया रामकाज
  • शाह बानो केस में सर्वोच्च न्यायालय का ऐतिहासिक फैसला
Ayodhya's Ram temple 29 December 1949 a decision started resonating with the cheers of Ramlala Gopal Singh Visharad Mahant Ramchandra Das Paramhansa अयोध्या का राम मंदिर 29 दिसंबर 1949 एक फैसले से गूंजने लगे रामलला के जयकारे गोपाल सिंह विशारद महंत रामचन्द्र दास परमहंस