जब मंदिर पहली बार बना सियासी मुद्दा, राम के सहारे एक बाबा ने जीत लिया था अयोध्या का उपचुनाव

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Rahul Garhwal
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जब मंदिर पहली बार बना सियासी मुद्दा, राम के सहारे एक बाबा ने जीत लिया था अयोध्या का उपचुनाव

रविकांत दीक्षित, AYODHYA. भगवान श्रीराम की जन्मस्थली अयोध्या मोक्षदायिनी कही गई है। इस नगर ने अपने अस्तित्व से लेकर आज तक बहुत कुछ पाया और खोया।

अयोध्या ने युद्ध देखे और देखे नरसंहार।

हार देखी, देखी जीत भी।

देखे मुगल और मराठा।

अंग्रेज देखे, देखा संघर्ष।

आंदोलन देखे और देखा विजय रथ।

अब यह नगर 22 जनवरी 2024 को फिर उत्सव मनाने की तैयारी कर रहा है। अभी यहां न्‍याय और सत्‍य के संयु‍क्‍त विजय का उल्‍लास अद्भुत है। यह वक्त अतीत की स्‍मृतियों को भुलाकर नए युग के सूत्रपात का है। आज की विजय का यह अनंत सफर 'कल' तक आसान नहीं था।

दंगों के बाद अंग्रेजों का फैसला

साल 1934 में गौ हत्या को लेकर अयोध्या में बड़ा फसाद हुआ। उसकी चिंगारी श्रीराम जन्मभूमि तक पहुंची। मस्जिद के एक हिस्से तोड़ दिया गया था। लिहाजा, हर कोई डरा था। सहमा हुआ था। ब्रिटिश सरकार के फैसले हमेशा चौंकाने वाले होते थे। इस बार भी कुछ ऐसा ही होने वाला था। दंगे के 48 दिन बाद मुस्लिमों को फिर मस्जिद में जाने की इजाजत मिल गई। अंग्रेजों ने उन्हें हफ्ते में एक दिन उस जगह नमाज पढ़ने की अनुमति दे दी।

दावे की जांच में लंबा वक्त लगा

महीने-दर-महीने बीतते गए। इस बीच मस्जिद फिर चर्चा में आ गई। वो साल था 1936...। मुस्लिमों के 2 समुदाय शिया और सुन्नी ही आपस में झगड़ गए। मुद्दा था मस्जिद के मालिकाना हक का। कानूनी लड़ाई छिड़ गई। मस्जिद के मुतवल्ली मोहम्मद जकी ने दावा ठोंका कि मीर बाकी शिया था, इसलिए यह शिया मस्जिद है। सुन्नी ने इसे अपनी बताया। शिकवा शिकायतों के बाद वक्फ कमिश्नर के आदेश पर जांच शुरू हो गई।

सरकारी जांचों में आज ही ज्यादा समय नहीं लगता, तब भी इनकी कछुआ चाल होती थी। तारीख पर तारीख चलती रही। आखिरकार 8 फरवरी 1941 को मामला आगे बढ़ा। जिला वक्फ कमिश्नर मजीद ने कहा कि मस्जिद की स्थापना करने वाला बादशाह सुन्नी था। उसके इमाम और नमाज पढ़ने वाले सुन्नी हैं, इसलिए यह सुन्नी मस्जिद हुई।

शिया मुसलमान केस को आगे ले गए। उन्होंने सुन्नी वक्फ बोर्ड के खिलाफ फैजाबाद की अदालत में मामला दायर कर दिया। दोनों पक्षों की दलीलें सुनी गईं। सिविल जज एस.ए.अहसान ने 26 मार्च 1946 को विवादास्पद इमारत का दौरा किया। साथ ही शिलालेख भी जांचे। अंत में जज ने 30 मार्च 1946 को केस का पटाक्षेप करते हुए शिया समुदाय का दावा खारिज कर दिया।

और अलग हो गए भारत-पाकिस्तान

1946...यह वही साल था, जब भारत गुलामी की जंजीरों से बाहर आने के लिए बेताब था। अंग्रेजी हुकूमत से आजादी की लड़ाई की पहली चिंगारी वर्ष 1857 में उठी थी और अब यह ज्वालामुखी के रूप में धधक रही थी। गहमा-गहमी के बीच 1946 बीत गया और 1947 नई रोशनी लेकर आया। इस वर्ष 20 फरवरी को ब्रिटिश प्रधानमंत्री क्लेमेंट एटली ने बड़ी घोषणा की। उन्होंने कहा कि भारत में ब्रिटिश शासन 30 जून 1948 तक समाप्त हो जाएगा। इस घोषणा के बाद मुस्लिम लीग ने नया राग छेड़ते हुए आंदोलन कर देश के विभाजन की मांग उठाई। फिर 3 जून 1947 को ब्रिटिश सरकार ने ऐलान किया कि 1946 में गठित भारतीय संविधान सभा द्वारा बनाया गया कोई भी संविधान देश के उन हिस्सों पर लागू नहीं हो सकता, जो इसे स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं थे।

ऐसे में उसी दिन यानी 3 जून 1947 को भारत के वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन ने विभाजन योजना सामने रखी। कांग्रेस और मुस्लिम लीग ने योजना स्वीकार कर ली। भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम 1947 को लागू करने की योजना को तत्काल प्रभाव दिया गया।

आजादी के बाद राम मंदिर की हलचल

14-15 अगस्त 1947 की आधी रात को ब्रिटिश शासन समाप्त हो गया और सत्ता दो नए स्वतंत्र डोमिनियन भारत और पाकिस्तान को हस्तांतरित कर दी गई। लॉर्ड माउंटबेटन भारत के नए डोमिनियन के पहले गवर्नर-जनरल बने। जवाहर लाल नेहरू स्वतंत्र भारत के पहले प्रधानमंत्री बने। 1946 में स्थापित संविधान सभा भारतीय डोमिनियन की संसद बन गई। अब मुद्दे पर लौटते हैं। 1947 में जब अंग्रेजी राज खत्म को आया तो हिंदू संगठनों ने चबूतरे पर राम मंदिर निर्माण की हलचल तेज कर दी गई, लेकिन कोई बात नहीं बनी। देश के विभाजन के बाद रसूखदार मुस्लिम पाकिस्तान चले गए।

समाजवादी नेता कांग्रेस से अलग हुए

यहां से अयोध्या का एक नया अध्याय शुरू हुआ। पहली बार राम मंदिर को चुनावी मुद्दा बनाया गया। हुआ कुछ यूं कि समाजवादी नेता कांग्रेस से अलग हो गए। समाजवाद के पुरोधा आचार्य नरेंद्र देव समेत सभी विधायकों ने पद छोड़ दिया और उपचुनाव की नौबत आ गई। इस पर मुख्यमंत्री गोविंद वल्लभ पंत ने अयोध्या उपचुनाव में आचार्य नरेंद्र देव के सामने बाबा राघव दास को उतार दिया। चूंकि राघव दास संत थे तो अयोध्या में राम मंदिर मुद्दा बनने लगा। मुख्यमंत्री पंत सभाओं में इस बार पर जोर देते थे कि आचार्य नरेंद्र देव श्रीराम को नहीं मानते हैं। समीकरण कुछ ऐसे बैठे कि आचार्य नरेंद्र देव चुनाव हार गए।

निरंतर...

अयोध्यानामा के अगले भाग में जानिए

  • कैसे राजनीतिक रूप से मंदिर बनाने की मांग उठी।
  • किस तरह संतों ने कब्रिस्तान को साफ कर पूजा शुरू कर दी।
  • किन परिस्थितियों में सरदार पटेल को अचानक लखनऊ जाना पड़ा।
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