पक्षकारों ने नहीं माना जमीन को तीन हिस्सों में बांटने का आदेश
रविकांत दीक्षित, AYODHYA. भगवान श्रीराम की अयोध्या इन दिनों आनंद में डूबी हुई है। शृंगारित है। यहां उल्लास है और उत्सव। हवा में रामधुन की अनुगूंज है।
चौपाई कहती है...
रमानाथ जहं राजा सो पुर बरनि न जाय,
अनिमादिक सुख सम्पदा रही अवध सब छाय।।
यानी स्वयं लक्ष्मीपति भगवान जहां के राजा हों, उस नगर का क्या वर्णन किया जा सकता है। अणिमा के साथ आठों सिद्धियों और समस्त सुख संपदा अयोध्या में छा रही है। तो यूं शब्दों में अवध के सौंदर्य का बखान करना मुश्किल है। 500 वर्ष के लंबे इंतजार के बाद 22 जनवरी 2024 को अभिजीत मुहूर्त में रामलला गर्भगृह में विराजमान होंगे।
सुप्रीम कोर्ट चले गए पक्षकार
राम मंदिर आंदोलन के इतिहास में 30 सितंबर 2010 का दिन बेहद अहम है। यह वही दिन था, जब इलाहाबाद हाईकोर्ट ने आर्केलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (ASI) की रिपोर्ट के बाद विवादित जमीन को तीन हिस्सों में बांट दिया। दीर्घकालीन कब्जे को देखते हुए तीन जजों की पीठ ने रामलला, निर्मोही अखाड़ा और सुन्नी वक्फ बोर्ड के बीच तीन हिस्से कर दिए गए। पक्षकारों ने इस फैसले को नकार दिए। सभी सुप्रीम कोर्ट चले गए।
लोकसभा चुनाव में बीजेपी की जीत
मई 2011 में शीर्ष अदालत ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले पर स्थगन दे दिया। समय के साथ केस चलता रहा। तारीख-दर-तारीख फाइलों में पन्ने बढ़ते गए। इस बीच वर्ष 2014 आ गया। लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने ऐतिहासिक जीत दर्ज की। यह पहले से साफ था कि नरेंद्र मोदी ही प्रधानमंत्री बनेंगे। लिहाजा, वे लीडर चुने गए।
मोदी ने दो जगह से लड़ा चुनाव
यह पहली बार था, जब बीजेपी 282 सीटें जीतकर सत्ता में आई थी। इस अभूतपूर्व सफलता के बीच मोदी ने उत्तर प्रदेश की वाराणसी और गुजरात की वडोदरा संसदीय सीट से चुनाव लड़ा था। यह उनकी लोकप्रियता ही रही कि दोनों जगह से भारी मतों से चुनाव जीतकर सदन की दहलीज पर पहुंचे। हालांकि बाद में उन्होंने वडोदरा सीट छोड़कर वाराणसी को ही अपनी कर्मभूमि के रूप में चुना।
चर्चा से नहीं निकला हल
ये वो समय था, जब बीजेपी को देशवासियों की आकांक्षाओं पर खरा उतरना था। मजबूत और स्थिर सरकार में प्रधानमंत्री मोदी भारत को आध्यात्मिकता, तकनीक और अर्थव्यवस्था के क्षेत्र में आगे ले जाने के अभियान में जुट गए। इस बीच राम मंदिर को लेकर कानूनी लड़ाई जारी थी। 21 मार्च 2017 को सुप्रीम कोर्ट ने तीनों पक्षकारों को सलाह दी। इसमें कहा गया कि न्यायालय के बाहर चर्चा कर हल निकाला जाए, लेकिन ऐसा होना संभव नहीं था।
जब शुरू हुई नियमित सुनवाई
अंतत: 11 अगस्त 2017 से शीर्ष अदालत ने इस मामले में नियमित सुनवाई शुरू हुई। तीन न्यायाधीशों के सामने जिरह शुरू हो गई। इसके बाद 8 जनवरी 2019 को मुख्य न्यायाधीश जस्टिस रंजन गोगोई ने अपने प्रशासकीय अधिकारों का इस्तेमाल कर यह सुनवाई पांच न्यायाधीशों की पीठ को सौंप दी। दो माह बाद 8 मार्च 2019 को शीर्ष अदालत ने एक बार फिर मध्यस्थता की पहल की। कोर्ट ने सुझाव दिया कि पक्षकार चाहें तो कोर्ट के समक्ष बातचीत कर सकते हैं। इसके बाद देश में हुए लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने एक बार पुन: प्रचंड बहुमत के साथ सरकार बनाई।
पहले से कोई बात नहीं बनी
इधर, जब मध्यस्थता पर बात नहीं बनी तो 2 अगस्त 2019 को सर्वोच्च अदालत ने हर दिन सुनवाई का फैसला दे दिया। रोज सुनवाई शुरू हो गई। 40 दिन तक सवाल-जवाब, सबूत और गवाह पेश होते रहे और 15 अक्टूबर 2019 को हर दिन की सुनवाई पूरी कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया। इस तरह राम मंदिर के लिए वर्ष 1949 से आधिकारिक तौर पर शुरू हुई कानूनी लड़ाई अब अपने मुकाम पर आ पहुंची थी।
निरंतर
अयोध्या नामा के अगले भाग में पढ़िए....
- 70 साल की कानूनी लड़ाई का हुआ अंत
- स्वर्ण अक्षरों में दर्ज हुई 5 अगस्त की तारीख
Ayodhyanama Part 14: तमाम गवाहों और सबूतों के मद्देनजर ये अदालत इस नतीजे पर पहुंची है कि विवादित स्थल पर मंदिर निर्माण के लिए दिया जाए...!!!
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