काम न आई यूपी सरकार की तरकीब, आखिर विहिप ने कर ही दिया शंखनाद
AYODHYA, रविकांत दीक्षित.
जम्बू द्वीपे भरतखंडे आर्यावर्ते भारतवर्षे
एक नगरी है विख्यात अयोध्या नाम की...।
आज पूरे विश्व में श्री रामलला की जन्मभूमि की गूंज है। अयोध्या सज-धज कर वैसे ही तैयार हो रही है, जैसी त्रेता युग में वनवास के बाद भगवान के शुभागमन पर हुई थी। यहां आज वैसी ही रामधुन गुंजायमान है, जैसी भगवान के लौटने पर थी। उत्सव है और उल्लास अपार। अयोध्या ने बनती-बिगड़ती सरकारें देखी हैं। अवध ने कई चेहरों को चर्चित किया है।
धर्म संसद में बनी शिलान्यास की भूमिका
वरिष्ठ लेखक माधव भांडारी अपनी किताब 'अयोध्या: जो कभी पराजित नहीं हुई' में लिखते हैं, जनवरी 1989 के अंत में प्रयाग में धर्म संसद की बैठक हुई। संतों ने एक मत होकर 9 नवंबर 1989 का दिन मंदिर शिलान्यास के लिए तय किया। शिलान्यास के लिए पूरे देश से 'राम शिला' जुटाकर अयोध्या लाने का कार्यक्रम तय हुआ।
राम शिलाएं भेजी जाएंगी अयोध्या
11 जून 1989 को भारतीय जनता पार्टी रामकाज के लिए आगे आई। हिमाचल प्रदेश के पालमपुर में शीर्ष नेताओं ने रणनीति बनाई। इधर, विश्व हिन्दू परिषद और बजरंगदल की अपनी अलग तैयारी चल रही थी। कार्यक्रम की विस्तृत रूपरेखा बनाई गई। इसमें तय हुआ कि जिस गांव की आबादी दो हजार से अधिक होगी, उस गांव के लोग एक ईंट की पूजा करेंगे। फिर बाद में वह ईंट (राम शिला) अयोध्या भेजी जाएगी।
पौने तीन लाख राम शिलाएं
नियत समय के हिसाब से 30 सितंबर 1989 को कार्यक्रम की शुरुआत हुई। जैसा कि सबको अनुमान था ही, इस कार्यक्रम को अभूतपूर्व सफलता मिली। 3 लाख 16 हजार गांवों में शिला पूजन हुआ। गांव-गांव में राम मंदिर आंदोलन छिड़ गया। विश्व के 56 देशों में उत्सव मना। राम शिलाएं पूजी गईं। छह सौ से अधिक 'राम शिला रथ' अयोध्या रवाना हुए थे। उनके माध्यम से अयोध्या पहुंचीं 'राम शिलाओं' की कुल संख्या पौने तीन लाख से भी अधिक थी।
हाईकोर्ट ने नहीं रोका शिलान्यास कार्यक्रम
प्रस्तावित शिलान्यास रुकवाने की उत्तर प्रदेश सरकार की तरकीब काम नहीं आई। हाईकोर्ट ने अयोध्या में 'जैसे थे' की स्थिति कायम रखने का आदेश तो दिया, लेकिन शिलापूजन और शिलान्यास कार्यक्रम को स्थगित करने का आदेश देना जरूरी नहीं समझा।
विहिप से लिखित में लिया वादा
विश्व हिंदू परिषद ने 9 नवंबर को राम मंदिर के शिलान्यास का ऐलान किया। इसी के साथ देशभर में शिला पूजन यात्राएं निकालने की घोषणा हुई। राजीव गांधी के कहने पर गृह मंत्री बूटा सिंह ने 27 सितंबर को लखनऊ में तत्कालीन मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी के बंगले पर विश्व हिंदू परिषद से इन यात्राओं के शांतिपूर्ण ढंग से निकालने का वादा लिया। इस पर अशोक सिंघल, महंत अवैद्य नाथ और उनके साथियों ने शांति और हाईकोर्ट के आदेश के मुताबिक यथास्थिति बनाए रखने का लिखित वादा किया था।
शिलान्यास के लिए लगाया 'निशान'
इसके बाद विश्व हिंदू परिषद ने शिलान्यास के लिए झंडा (निशान) लगा दिया। इसके बाद सरकार फिर हाईकोर्ट पहुंच गई। पूछा गया कि क्या प्रस्तावित शिलान्यास का स्थान विवादित क्षेत्र में आता है या नहीं। 7 नवंबर को हाईकोर्ट ने फिर स्पष्ट किया कि यथास्थिति के आदेश में वह भूखंड भी शामिल है। अंत में उत्तर प्रदेश सरकार ने 9 नवंबर 1989 को यह कहते शिलान्यास की अनुमति दे दी कि वह भूखंड विवादित क्षेत्र से बाहर है। इस आदेश के बाद राम जन्मभूमि मुक्ति आंदोलन ने एक और मुकाम हासिल किया था।
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