22-23 दिसंबर 1949 की वो सर्द रात और प्रकट हुए रामलला

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Rahul Garhwal
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22-23 दिसंबर 1949 की वो सर्द रात और प्रकट हुए रामलला

रविकांत दीक्षित, AYODHYA. भगवान श्रीराम जन-जन के पालनहार हैं। मन-प्राण हैं। वे सृष्टा भी हैं और सृष्टि भी हैं। वे दृष्टा भी हैं और दृष्टि भी हैं। वे करुणा भी हैं और शांति भी हैं। सनातन संस्कृति उनसे अर्थ पाती है। अयोध्यानामा में अब दास्तां आजाद भारत की अयोध्या की, इसमें अनेक किरदार हैं। हर चेहरा अपने आप में खास है।

आजादी के बाद अयोध्या में ज्यादा कुछ नहीं बदला

15 अगस्त 1947 के बाद देशवासी आजादी की सांस ले रहे थे। प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की अगुवाई वाली पहली कैबिनेट में सरदार वल्लभभाई पटेल को गृह मंत्री बनाया गया। उन्होंने 13 नवम्बर 1947 को गुजरात के सोमनाथ मंदिर का जीर्णोद्धार कराने का ऐलान किया। तब रेडियो का चलन खूब था। आकाशवाणी पर जब गृह मंत्री का ऐलान गूंजा तो अयोध्या में राम जन्मभूमि के लिए संघर्ष करने वालों की उम्मीद जाग उठी, लेकिन अयोध्या में ज्यादा कुछ नहीं बदला।

बाबा राघव दास को मिली जीत

इधर, अयोध्या में जब उपचुनाव हुए तो राम नाम की गूंज शुरू हुई। बाबा राघव दास को जीत मिली। आचार्य नरेंद्र देव चुनाव हार गए थे। जीत से बाबा के समर्थक उत्साहित थे। यहीं से सियासत ने करवट बदली। जुलाई 1949 में बाबा राघव दास की ओर से मंदिर निर्माण के लिए सरकार को चिट्ठी लिखी गई। इस पर जल्द एक्शन हुआ।

मंजूरी देने में कोई रुकावट नहीं

उत्तर प्रदेश सरकार में डिप्टी सेक्रेटरी रहे केहर सिंह ने 20 जुलाई 1949 को फैजाबाद के डिप्टी कमिश्नर के.के. नायर से जवाब-तलब किया। उन्होंने पूछा कि 'वह' जमीन नजूल की है या नगर पालिका की। दस्तावेज खंगाले गए। सरकारी प्रक्रिया में थोड़ा वक्त लगा। आखिर 10 अक्टूबर को ये पता चला कि वह जमीन नजूल की है। जमीन को लेकर स्थिति साफ होने के बाद हिंदू संगठनों ने पुरजोर तरीके से मांग उठाई। सिटी मजिस्ट्रेट गुरुदत्त सिंह की रिपोर्ट ने हिंदुओं में फिर जोश भर दिया। नारे गूंजने लगे। दरअसल, सिंह ने कहा कि नजूल की जमीन पर मंदिर निर्माण की मंजूरी देने में रुकावट नहीं है।

संविधान...ऐतिहासिक दस्तावेज

इस अवधि में दिल्ली में आजाद भारत की नियमावली बनाने के लिए दफ्तरों में काम चल रहा था। मंथन, मनन के साथ संविधान सभा के सदस्य ऐतिहासिक दस्तावेज बनाने में जुटे हुए थे। हर दिन कुछ न कुछ बदलाव होते। दस्तावेज गढ़े जाते। विशेषज्ञों की 2 साल, 11 माह और 18 दिन की मेहनत रंग लाई। संविधान में एक प्रस्तावना, 22 भाग, 448 अनुच्छेद और 12 अनुसूचियां शामिल की गईं। इसी के साथ देश को ऐसा कल्पनाशील दस्तावेज मिला, जिसमें राष्ट्रीय एकता थी। देश की विविधता का सम्मान भी था। भारत की संविधान सभा ने 26 नवंबर 1949 को भारत के संविधान को अपनाया। हालांकि, इसे लागू 26 जनवरी 1950 को किया गया था।

कड़ाके की सर्द रात...

कुल मिलाकर आजाद भारत में चीजें तेजी से बदल रही थीं। नवाचारों का दौर शुरू हो गया। इसी बीच अयोध्या में कुछ अलग ही रंग था। कड़ाके की ठंड ठिठुरा रही थी। सर्द हवाएं रह-रहकर तापमान को और गिरा देतीं। कुछ संतों ने 24 नवंबर 1949 से विवादित स्थल के सामने पूजा-पाठ शुरू कर दिया। इसके एक माह बाद जो हुआ, उसने राजनीति में मानो भूचाल ला दिया।

भए प्रगट कृपाला...

भए प्रगट कृपाला दीनदयाला, कौसल्या हितकारी।

हरषित महतारी, मुनि मन हारी, अद्भुत रूप बिचारी॥

यानी रामलला प्रकट हो गए थे। जी हां, 22-23 दिसंबर 1949 की सर्द रात में कथित विवादित स्थल के गर्भ गृह में रामलला की मूर्ति 'प्रकट' हुई। दरअसल, यहां 'प्रकट' शब्द का महत्व खास है, क्योंकि इस पूरे मामले में सरकारी प्रक्रिया और न्यायालयीन दस्तावेजों में इसी शब्द का प्रयोग किया गया है। यहां तक कि आज तक जितने भी बार कोर्ट में सुनवाई हुई, उन सभी में इसी शब्द का प्रयोग किया गया है।

साधु-संत संकीर्तन कर रहे थे

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अपने ब्लॉग में लिखते हैं, ब्रिटिश काल में राम मंदिर के मुद्दे को स्‍वर देने का काम महंत दिग्विजयनाथ महाराज ने किया था। सन 1934 से 1949 के दौरान उन्‍होंने राम मंदिर निर्माण के लिए सतत संघर्ष किया। 22-23 दिसंबर 1949 को जब कथित विवादित ढांचे में रामलला का प्रकटीकरण हुआ। तब वहां तत्‍कालीन गोरक्षपीठाधीश्‍वर, गोरक्षपीठ महंत दिग्विजयनाथ कुछ साधु-संतों के साथ संकीर्तन कर रहे थे।

मुख्य सचिव ने कमिश्नर को जमकर फटकार लगाई

सुबह यह खबर देशभर में फैल गई। दिल्ली में हलचल बढ़ गई। फोन घनघनाने लगे। किसी को कुछ समझ नहीं आ रहा था। इस बीच प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने 26 दिसंबर 1949 को मुख्यमंत्री गोविंद वल्लभ पंत से बात की। उत्तर प्रदेश सरकार के मुख्य सचिव ने भी फैजाबाद के कमिश्नर को लखनऊ बुलाकर खूब फटकारा। इधर, नेहरू ने गृह मंत्री सरदार पटेल को लखनऊ भेजा। मुख्यमंत्री पंत को पत्र लिखे। इन सबसे ज्यादा कुछ नहीं हुआ।

निरंतर...

अयोध्यानामा के अगले भाग में जानिए...

अयोध्या में कैसे कानूनी लड़ाई ने बड़ा रूप लिया।

सियासत में कब क्या हुआ और इसका क्या असर पड़ा।







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