फायरिंग में कई कारसेवकों की हुई मौत, फिर कल्याण सिंह के हाथ में कमान

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Pratibha Rana
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फायरिंग में कई कारसेवकों की हुई मौत, फिर कल्याण सिंह के हाथ में कमान

AYODHYA, रविकांत दीक्षित.

होइए सोई जो राम रचि राखा...

परिणाम की चिंता किए बिना भगवान श्रीराम को मन में बसाकर कारसेवकों ने कमर कस ली थी।

दिनांक: 30 अक्टूबर 1990

समय: सुबह 9 बजे

यह वही दिन था, जब पूरे देश की निगाहें अयोध्या को तक रही थीं। तीन महीनों से चर्चित अयोध्या के राम जन्मभूमि मंदिर निर्माण के लिए शुरू होने वाली 'कारसेवा' का क्षण करीब आ रहा था। अनहोनी की चिंता किए बिना देशभर से लाखों कारसेवक अयोध्या की ओर कूच कर रहे थे।

उस दिन आकाश शंख ध्वनि से गूंज उठा था। पुलिस और सीमा सुरक्षा बल के सैनिक घर-घर, मंदिर-मंदिर कारसेवकों को खोजने में जुटे थे। दावा था कि 'परिंदा' भी 'पर' नहीं मार सकता।

इन सबके बीच विश्व हिंदू परिषद के महामंत्री अशोक सिंघल और श्रीश्चन्द्र दीक्षित पहले से ही अयोध्या में थे। सरकार ने इन्हें देखते ही गिरफ्तार करने के आदेश दे रखे थे, सो चप्पे-चप्पे पर तलाशी की जा रही थी।

रास्तों पर जमा होने लगी भीड़

पहले से नियत 30 अक्टूबर को मठ, मंदिरों, नदी किनारे की बस्तियों में ठहरे कारसेवक शहर के रास्तों पर जुटने लगे थे। जहां कर्फ्यू के कारण सनाका था, अब वहां जनसैलाब उमड़ रहा था। सरयू के पुल पर 40,000 लोग एकत्रित हो गए थे। सुरक्षाकर्मियों और अफसरों को भीड़ पर काबू पाने का कोई अचूक उपाय नहीं सूझ रहा था।

अशोक सिंघल को लगी चोट

जैसे-जैसे सड़कें भर रही थीं, वैसे-वैसे पुलिस की सख्ती शुरू होती गई। लाठियां बरसने लगीं। आंसू गैस के गोलों से आसमान धुआं-धुआं हो गया। झड़पें होने लगीं। महंत नृत्यगोपाल दास, महंत रामचन्द्रदास परमहंस आदि को गिरफ्तार करने के पुलिस के प्रयास जनता ने नाकाम कर दिए। सुबह 8.45 बजे के आसपास अशोक सिंघल कारसेवकों का नेतृत्व करने आगे आ गए, लेकिन पुलिस कार्रवाई में वे जख्मी हो गए।

कारसेवकों ने लहराया ध्वज

घायल अवस्था में सिंघल को अस्पताल पहुंचाया गया। इस बीच श्रीश्चन्द्र दीक्षित एक टुकड़ी के अगुवा थे, वे भी पकड़े गए। खबर आई कि दोनों का पता नहीं चल रहा है। आनन-फानन में सरकार ने दोनों को फरार भी घोषित कर दिया। पुलिस के जवान कारसेवकों को गिरफ्तार करने की कोशिश कर रहे थे। थोड़ी ही देर में कारसेवक रामलला के मंदिर में प्रवेश कर गए। कुछ ने ऊपर चढ़कर तीनों गुंबदों पर ध्वज लहरा दिया। श्रीश्चन्द्र ने ईंट रखकर पूजा शुरू कर दी, लेकिन ध्वज लहराने वाले दो कारसेवकों में से एक को जवान ने गोली से मार दिया।

लोकसभा में हार

राम जन्मभूमि पर जमा कारसेवकों को काबू में करने के लिए प्रशासन को विश्व हिंदू परिषद के नेताओं की ही मदद लेनी पड़ी। महंत नृत्यगोपाल दास और श्रीश्चन्द्र दीक्षित के कहने पर कारसेवकों ने परिसर खाली कर दिया। स्थिति सामान्य हो रही थी कि 2 नवंबर को मुलायम सिंह यादव ने कारसेवकों पर गोली चलाने का आदेश दे डाला। कई लोगों की मौत हो गई। कहा जाता है कि तब सरयू तट रामभक्तों की लाशों से पट गया था। अभी इसकी आंच ठंडी भी नहीं हुई थी कि 7 नवम्बर 1990 को वीपी सिंह सरकार की लोकसभा में हार हो गई।

और शुरू हो गया मंदिर निर्माण

1991 के लोकसभा चुनाव के दौरान राजीव गांधी की हत्या हो गई और कांग्रेस नेता नरसिम्हा राव प्रधानमंत्री बने। उधर, उत्तर प्रदेश में मध्यावधि चुनाव में भाजपा के कल्याण सिंह मुख्यमंत्री बने। दिन बीतते गए। मंदिर निर्माण का क्रम शुरू हो गया था। इस पर हाईकोर्ट ने आदेश दिया कि इस जमीन पर स्थायी निर्माण नहीं होगा। फिर भी जब जुलाई में निर्माण शुरू हो गया तो सुप्रीम कोर्ट ने हस्तक्षेप किया और निर्माण रुकवाया गया।

निरंतर

अयोध्या नामा के अगले भाग में पढ़िए...

  • 6 दिसंबर 1992 का इतिहास में दर्ज वह अहम दिन
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