BHOPAL. प्रदेश के सहकारी बैंकों के हाल बेहाल हैं, दर्जन भर से ज्यादा सहकारी बैंकों का भट्टा बैठ चुका है। आरबीआई की गाइडलाइन का पालन न करते हुए कर्ज बांटना इन बैंकों को भारी पड़ा। अन्य आर्थिक अनियमितताओं के चलते ये बैंक में गर्त में जा चुके हैं। हालात यह हैं कि 65 हजार से ज्यादा जमाकर्ता अपने 50 करोड़ रुपए वापस पाने की जद्दोजहद में लगे हुए हैं। जमाकर्ता कभी सरकार तो कभी न्यायालय में दस्तक देकर गुहार लगा रहे हैं। गंभीर परिस्थितियों में भी उन्हें उनका पैसा वापस नहीं मिल पा रहा।
वेतन निकल जाए इतनी ही करते हैं वसूली
बैंको के हाल ऐसे हैं कि यहां वीरान पड़े बैंकों में महज कुछ ही कर्मचारी हैं, वे भी बकायादारों से महज इतनी वसूली करते हैं, जितने में उनका वेतन निकल सके। इसके अलावा बकायादारों से वसूली करने में किसी का कोई इंट्रेस्ट नहीं है। मुख्यालयों में जल्द से जल्द प्रकरणों को निपटाने 3 से 4 माह के बीच समीक्षा बैठक होती है, जिसमें सहकारिता और आरबीआई के अधिकारी सिर्फ मंथन पर मंथन किए जा रहे हैं, लेकिन वसूली में इन मीटिंग्स को कोई असर देखने को नहीं मिल रहा।
घोटालों और मिलीभगत का नतीजा
सहकारी बैंकों के गर्त में जाने के पीछे घोटालों का भी बड़ा हाथ है, वसूली के लिए तहसीलदारों के जरिए आरआरसी जारी कराई जा चुकी है, लेकिन असलियत यह है कि यह कवायद भी कागजी कार्रवाई से आगे नहीं बढ़ पाई। बीते 30 सालों की बात की जाए तो 16 सहकारी बैंक डूब चुके हैं। जिनमें 65 हजार से ज्यादा जमाकर्ताओं के 50 करोड़ रुपए फंसे हुए हैं।
लापरवाह हैं वसूली अधिकारी
सूत्र बताते हैं कि जिन अधिकारियों के पास वसूली के अधिकार हैं वे ही लापरवाही कर रहे हैं। सहकारी बैंकों का संचालन करने वालों की नीति ही नहीं नियत में भी खोट है, जिस कारण मालवा-निमाड़ से लेकर महाकौशल और बुंदेलखंड में ये सहकारी बैंक डूबते चले गए। इंदौर का महाराष्ट्र ब्राम्हण सहकारी बैंक, मित्र मंडल सहकारी बैंक, सिटीजन अर्बन को ऑपरेटिव बैंक और श्री को ऑपरेटिव बैंक हो या फिर रतलाम, बुरहानपुर, खरगोन और खंडवा के सहकारी बैंक सभी का यही हाल है।
महाकौशल में यह हाल
महाकौशल की बात की जाए तो जबलपुर का नागरिक सहकारी बैंक और संस्कारधानी महिला नागरिक सहकारी बैंक गर्त में है। होशंगाबाद, सागर, दमोह और दतिया में भी सहकारी बैंक डूब चुके हैं। ये सारे बैंक साल 2004 से 2009 के बीच ही डूब गए और परिसमापन में शामिल हो गए।
परिसमापकों की यह है जिम्मेदारी
दरअसल परिसमापकों की जिम्मेदारी यह है कि वे बकायादारों से वसूली करें और जमाकर्ताओं को उनका पैसा लौटाएं। परिसमापक को सिविल कोर्ट के अधिकार प्राप्त हैं। लेकिन वे ठीक से काम ही नहीं कर पा रहे। अपर आयुक्त सहकारिता ब्रजेश शरण शुक्ल का कहना है कि यदि परिसमापक ठीक से काम नहीं कर पा रहे हैं तो निगरानी बढ़ाई जाएगी। विभाग की कोशिश है कि सभी जमाकर्ताओं को जल्द से जल्द उनका पैसा लौटाया जाए।