मनीष गोधा, JAIPUR. महिलाओं की शिक्षा के मामले में एक समय बेहद पिछड़ा माने जाने वाले राजस्थान में अब तस्वीर तेजी से बदलती दिख रही है। पिछले 15 वर्ष में राजस्थान में कॉलेज पहुंचने वाली छात्राओं की संख्या लगातार बढ़ रही है और स्थिति यह है कि कॉलेजों में अब लड़कों के मुकाबले लड़कियों की संख्या ज्यादा है।
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इस तरह बढ़ रही कॉलेजों में छात्राओं की संख्या
एक सरकारी रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2005-06 में जहां प्रति सौ छात्र 63 छात्राएं कॉलेज पहुंच रही थी, वहीं अब यह संख्या बढ़ कर 111 हो गई है और ऐसा नहीं है कि यह बढ़ोतरी सिर्फ सामान्य वर्ग की छात्राओं में हुई है। अनुसूचित जाति, जनजाति, अन्य पिछडा वर्ग यहां तक कि अल्पसंख्यक वर्ग की छात्राओं की संख्या भी बढ़ी है। सुखद स्थिति यह है कि इस मामले में सबसे अच्छी बढ़ोतरी अनुसूचित जनजाति यानी आदिवासी छात्राओं मे हुई है। वर्ष 2005-06 में जहां सौ आदिवासी छात्रों पर सिर्फ 30 छात्राएं कॉलेज जा रही थी, वहीं अब यह संख्या अब बढ़ कर 125 हो गई है जो किसी भी अन्य वर्ग की छात्राओं से ज्यादा है। हालांकि इसके साथ ही तस्वीर का दूसरा पहलू यह है कि कॉलेजों में पढ़ाने वालों की बेहद कमी है और सरकारी कॉलेजों के 50 प्रतिशत पद रिक्त पड़े है।
दसवीं के बाद पढ़ाई छोड़ने की दर भी कम हुई
राजस्थान की पहचान हमेशा से एक सामंतवादी और रूढ़ियों में जकड़े राज्य की रही है। यहां लडकियों की शिक्षा तो छोड़िए बच्चियों को गर्भ में ही मारने यानी कन्या भ्रूण हत्या के मामले एक समय में सबसे ज्यादा दर्ज किए जाते थे। वहीं दसवीं के बाद लड़कियों की पढ़ाई छोड़ने की दर भी एक समय 15 प्रतिशत से ज्यादा हुआ करती थी, लेकिन वर्ष 2021-22 के आंकड़े बता रहे हैं कि यह घट कर 7.5 प्रतिशत रह गई है जो कई अन्य राज्यों के मुकाबले काफी कम है।
लड़कों को पछाड़ रही हैं लड़कियां
दिलचस्प स्थिति यह भी है कि कॉलेज पहुंचने के मामले में लडकियां लडकों को भी पछाड़ रही है। हर वर्ष लड़कों से ज्यादा लड़कियां कॉलेज पहुंच रही है। वर्ष 2005-06 में लडकों का नामांकन जहां सिर्फ 1.23 प्रतिषत बढ़ा था, वहीं लडकियों का नामांकन 11.08 प्रतिशत बढ़ा था। यह स्थिति हर साल ऐसी ही रही है। वर्ष 2022-23 में तो यह भी देखा गया कि कॉलेज में लड़कों का नामांकन पिछले वर्ष के मुकाबले 1.52 प्रतिशत कम हो गया वहीं लडकियो का नामांकन 1.69 प्रतिशत बढ़ गया।
साइंस और कामर्स पढ़ने के मामले में भी पीछे नहीं
फैकल्टीवाइज एनरोलमेंट देखा जाए तो हालांकि आर्ट्स फैकल्टी मे लड़कियों की संख्या लडकों से ज्यादा है, लेकिन साइसं और कॉमर्स जैसे विषय पढ़ने में भी पीछे नहीं है लडकियां। पिछले वर्ष साइंस में लडकों का एनरोलमेट 11.36 प्रतिशत था तो लडकियो का 10.81 वहीं कॉमर्स में लड़कों का एनरोलमेंट 10.20 प्रतिशत था तो लड़कियों का 2.52 प्रतिशत था। यहां तक कि एग्रीकल्चर और लॉ में भी अंतर ज्यादा नहीं था।