मध्यप्रदेश में क्या क्षेत्रवार मतदाताओं के मूल मुद्दों को भूल रही हैं बीजेपी-कांग्रेस? घोषणा पत्र में किन मुद्दों को भूले दल

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Harish Divekar
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मध्यप्रदेश में क्या क्षेत्रवार मतदाताओं के मूल मुद्दों को भूल रही हैं बीजेपी-कांग्रेस? घोषणा पत्र में किन मुद्दों को भूले दल

BHOPAL. मध्यप्रदेश के चुनाव प्रचार में आपने लगातार सुना होगा कांग्रेस और बीजेपी लगातार एक दूसरे को भ्रष्टाचार के मुद्दे पर घेरने की कोशिश में हैं। भ्रष्टाचार के बाद अगर कोई मुद्दे बचे हैं तो वो रेवड़ियों के ढेर के समान ही सजे हुए हैं। जिनके लिए घोषणाओं की होड़ भी लगी है। इन दो के बीच हर अंचल की जनता के असल मुद्दों की आवाज कहीं सुनाई ही नहीं दे रही। चुनाव में पांच ही दिन बचे हैं, लेकिन अब तक किसी भी राजनीतिक दल को उन मुद्दों की याद नहीं आई है, जिनसे असल में हर अंचल जूझ रहा है। ये हाल तब है जब कांग्रेस-बीजेपी दोनों ने वादा किया था कि वो जिलेवार घोषणा पत्र जारी करेंगे। उसके बावजूद स्थानीय मुद्दे अब तक अनसुने ही रह गए हैं।

कांग्रेस-बीजेपी असल मुद्दों से कोसों दूर

कांग्रेस-बीजेपी दोनों अपने वचन पत्र या संकल्प पत्र के जरिए ये साफ कर चुकी हैं कि दोनों ही दलों को गरीब, किसान और महिलाओं की बहुत ज्यादा फिक्र है। कुछ-कुछ बिंदुओं में स्कूली बच्चों की फिक्र भी नजर आई है। इस के बावजूद दोनों ही असल मुद्दों को एड्रेस करने से कोसों दूर हैं। पहले एक नजर में देखिए किस दल ने अपने मतदाताओं से क्या वादा किया है।

बीजेपी के वादे

• 5 सालों तक गरीबों को मुफ्त राशन

• किसानों से 2700 रुपये प्रति क्विंटल पर गेहूं और 3100 रुपये प्रति क्विंटल पर धान की खरीदी

• किसान सम्मान निधि और किसान कल्याण योजना से किसानों को सालाना 12 हजार रुपये

• मध्यप्रदेश का कोई भी परिवार बेघर नहीं रहेगा, प्रधानमंत्री आवास योजना के साथ ही मुख्यमंत्री जन आवास योजना शुरू होगी

• लाड़ली बहनों को आर्थिक सहायता के साथ मिलेगा पक्का मकान

• प्रत्येक परिवार में कम से कम एक रोजगार अथवा स्वरोजगार के अवसर

• 15 लाख ग्रामीण महिलाओं को कौशल प्रशिक्षण द्वारा लखपति बनाएंगे

• लाड़ली लक्ष्मियों को जन्म से 21 वर्ष तक कुल 2 लाख रुपये दिया जाएगा

कांग्रेस के वादे

• पुराने बिजली बिल की माफी

• सिंचाई के लिए 12 घंटे बिजली

• स्कूली बच्चों को प्रतिमाह 500 से 1,500 रुपये देने के लिए पढ़ो पढ़ाओ योजना

• 50 प्रतिशत से अधिक जनसंख्या वाले आदिवासी बहुल क्षेत्र छठवीं अनुसूची में शामिल करने का वचन

• ओबीसी को 27 प्रतिशत आरक्षण

• सरकार में आने पर जाति आधारित गणना

• ढाई हजार रुपए प्रति क्विंटल धान और ₹2600 क्विंटल की दर पर गेहूं खरीदी

• 2 रुपये किलो की दर से गोबर खरीदा जाएगा

• नंदिनी योजना प्रारंभ होगी

• 2 लाख पदों पर भर्ती की जाएगी

• युवा स्वाभिमान योजना प्रारंभ होगी 1500 से 3000 रुपये तक दिए जाएंगे

• 25 लाख रुपए का स्वास्थ्य बीमा और 10 लाख रुपए का दुर्घटना बीमा देंगे

• स्वास्थ्य का अधिकार कानून बनाया जाएगा

• सामाजिक सुरक्षा पेंशन योजना 1200 रुपये प्रतिमाह की जाएगी

• मेरी बेटी योजना में 2 लाख 51 हजार रुपये दिए जाएंगे

ऐसे ही मुद्दों से दोनों दलों के घोषणा पत्र भरे हुए हैं। जो जन हितैषी से ज्यादा चुनावी नजर आते हैं क्योंकि अधिकांश घोषणाएं रेवड़ियां ही नजर आती हैं।

दल बदलुओं और बागियों को मनाने में उलझे रहे

इन मुद्दों में स्थानीय वोटर जरूर वो वादे तलाश रहा होगा जो उसकी रोजमर्रा की मुश्किलों से जुड़े हैं। दल बदलुओं को संभालने और बागियों को मनाने में कांग्रेस और बीजेपी इतना उलझी रहीं कि शायद ये भूल ही गईं कि वो हर सीट की जनता से उनकी परेशानियां सुनने का वादा कर चुकी थीं। अब तो खेर वक्त बचा नहीं है और परेशानियां पहले की ही तरह मुहं बाए खड़ी हैं।

दोनों ही दलों के हर वादे और इरादे अब हवा हुए

कांग्रेस ने दम तो ये भरा था कि हर जिले ही नहीं हर विधानसभा सीट के लिए अलग से घोषणा पत्र लाएंगे। चुनाव नजदीक आते आते ऐसे हर वादे और इरादे अब हवा हो चुके हैं। अब दोनों ही दलों का फोकस सिर्फ उन मुद्दों पर है जो चुनाव जितवा सके और जनता का ध्यान खींच सकें। इस चक्कर में वो मुद्दे अब अनदेखे और अनसुने हो चुके हैं जिनसे क्षेत्र की जनता दो चार हो रही है।

महाकोशल-विंध्य

  • यहां के शीतल पानी, चांडा, पंडरी पानी, ढांड पथरा आदि क्षेत्रों में करीब सात हजार लोग कुपोषित हैं।
  • इसी तरह से मंडला में 11 लाख की आबादी में से बीपीएल कार्ड धारक परिवारों की संख्या लगभग 2,48,000 है, यहां कुपोषित बच्चों की संख्या लगभग चार हजार है। जुन्नारदेव, अमरवाड़ा, तामिया में गरीबी और कुपोषण दोनों दिखाई देता है।

बुंदेलखंड 

  • पलायन इस क्षेत्र का सबसे बड़ा मसला है। जिस पर किसी दल का ध्यान नहीं गया, खासतौर से टीकमगढ़ का।
  • कुडिला, देरी, फुटेर, भेलसी सहित ऐसे कई गांव हैं, जो सूने पड़े रहते हैं। यही हाल छतरपुर के ग्रामीण इलाकों का है।
  • इस क्षेत्र में केन बेतवा सिंचाई परियोजना, तालाबों के निर्माण अब तक धरातल पर नहीं उतर सके हैं।

मालवा-निमाड़

  • मंदसौर जिले के तहत आने वाले मल्हारगढ़ व सुवासरा विकासखंड के बच्चों में 10 से 12 प्रतिशत तक कुपोषण है।
  • रतलाम जिले में भी कुपोषित बच्चों की संख्या करीब 14 हजार, तो खरगोन जिले में आठ हजार बच्चे कुपोषित हैं।
  • सिकलसेल एनीमिया की बीमारी भी यहां पर परेशानी की वजह है। इससे करीब 10 हजार से ज्यादा लोग पीड़ित बताए जाते हैं।
  • धार जिले की बात की जाए तो यहां पर कुपोषित बच्चों की संख्या करीब 7000 और सिकलसेल एनीमिया से पीड़ित बच्चों की संख्या करीब 5000 है।
  • देवास, आलीराजपपुर, झाबुआ, बुरहानपुर जिलों में भी कुपोषण बड़ी समस्या है।

मध्य क्षेत्र

  • विदिशा से 70 किमी दूर स्थित ग्राम पंचायत बरोदिया के अंतर्गत छोटे-छोटे नौ गांव हैं। यहां के 400 परिवार बिजली, पानी, सड़क, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी बुनियादी सुविधाओं के अभाव का सामना कर रहे हैं।
  • तलैया गांव में बीते दो सालों से बिजली नहीं है। पूरी पंचायत में आंगनबाड़ी भवन नहीं है।

कुपोषण, पलायन, बिजली पानी जैसे ढेरों मुद्दे हैं जिन पर स्थानीय स्तर के अनुसार दोनों ही दलों में कोई चर्चा नहीं है न ही कोई रणनीति है।

मतदाता को परेशान करने वाले दूसरे भी कई मुद्दे

विधानसभा चुनाव में स्थानीय मुद्दे बड़े मुद्दों से ज्यादा अहमियत रखते है। हालांकि, कर्नाटक में भ्रष्टाचार का मुद्दा कांग्रेस के लिए फायदेमंद साबित हुआ था, लेकिन वहां की हकीकत ये है कि वहां भ्रष्टाचार आम आदमी को प्रभावित करने लगा था। मध्यप्रदेश में आम मतदाता को परेशान करने वाले दूसरे भी कई मुद्दे हैं। जिन्हें एड्रेस किया जाता तो शायद ज्यादा माइलेज लिया जा सकता था। क्योंकि विधानसभा चुनावों में स्थानीय मुद्दे वोटर से जुड़ने में ज्यादा मददगार साबित होते हैं। अंचलवार बात करें तो ये बड़े मुद्दे हैं। अगर जिलेवार या सीटवार नजर डाली जाती तो शायद और भी अहम मुद्दे निकलकर सामने आते।

दोनों का मकसद सिर्फ सत्ता में वापस आना

अफसोस है की आम जनता की सरकार बनने के ख्वाहिशमंद सियासी दल आम जमता के मुद्दों पर बात करना ही भूल गईं। दोनों का मकसद सिर्फ एक है, किसी भी तरह सत्ता में वापस आना। इसलिए मुद्दे वो चुने गए हैं जो कुर्सी तक पहुंचने की राह आसान बना सकें, लेकिन ये याद रखना भी जरूरी है कि यही छोटे-छोटे मुद्दे प्रत्याशियों की जीत को आसान बना सकते थे। जिनमें से आदिवासी जरूर राजनीतिक दलों के घोषणा पत्र पर जगह हासिल कर सके, लेकिन कुपोषण और पलायन जैसे अहम मुद्दों का तोड़ अब भी किसी दल के संकल्पों में शुमार नहीं हो सका है।

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