BHOPAL. पुराने संसद भवन में जब तक सरकार का डेरा था तब तक सरकार विपक्षी दलों की दलीलें और विरोध झेल रही थी। नए संसद भवन के पहले सत्र को भव्य बनाते हुए पूरे साजो-सामान और दल बल के साथ सरकार ने सेंट्रल विस्टा में सत्र का आगाज किया। ये दिन और यादगार बन सके इसलिए महिला आरक्षण बिल पर चर्चा भी छेड़ दी। सरकार इस बिल पर वाहवाही बटोर ही रही थी कि विपक्षी दलों ने महज 2 घंटे के अंदर बाल की खाल निकाल दी और साफ कर दिया कि 2024 तक भी इस पर अमल हो पाना मुश्किल है। पेंच कई फंसे हैं, लेकिन बीजेपी की मुश्किल तो ये है कि पराए सांसद तो ठीक अपने नेता ही इसके लूपहोल बताने से बाज नहीं आ रहे। जिस नेता ने बिल को लेकर फिर बीजेपी की मुश्किलें बढ़ाईं हैं उसे नजरअंदाज कर पाना भी आसान नहीं है। क्योंकि पार्टी की फायरब्रांड नेत्री कुछ कहे और वो अनसुना रह जाए ऐसा कैसे हो सकता है।
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महिला वोटर्स को रिझाने के लिए दांव
महिला वोटर्स को रिझाने के लिए बीजेपी ने चुनाव से पहले महिला आरक्षण बिल पर बड़ा दांव खेला है। इस दांव के साथ एक तीर से दो निशाने भी सधे। नई संसद का ऐतिहासिक आगाज हुआ और बिल का क्रेडिट भी बीजेपी की खाते में चला गया। घोषणा के शुरुआती 2 घंटे तक तो सब कुछ बीजेपी के फेवर में ही था, लेकिन बिल के पन्ने पलटते-पलटते उसकी खामियां भी साफ होती चली गईं। बिल में कहां-कहां क्या-क्या मुश्किलें आने वाली हैं, साफ होता चला गया और विपक्षियों ने उस पर खुलकर चर्चा शुरू कर दी।
उमा भारती ने खोला मोर्चा
विपक्षी दलों से तो यही उम्मीद थी कि विरोध होगा ही, लेकिन अपने ही मोर्चा खोल देंगे ये बीजेपी ने शायद नहीं सोचा होगा। ये काम भी शुरू किया पार्टी की फायर ब्रांड नेत्री उमा भारती ने। उमा ने सत्र शुरू होने से पहले ही ट्वीट कर अपने संशोधन जाहिर कर दिए। इसके बाद भी मन नहीं भरा तो पीएम मोदी के नाम पत्र भी लिख दिए। इस पत्र के जरिए उमा ने मांग की है कि स्थानीय निकायों में महिलाओं के लिए सुनिश्चित 33 प्रतिशत आरक्षण में से 50 प्रतिशत एससी, एसटी और ओबीसी समुदाय के लिए अलग रखा जाना चाहिए।
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इस पत्र में उमा भारती ने पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा का भी जिक्र किया है
जब 1996 में तत्कालीन प्रधानमंत्री देवेगौड़ा ने सदन में ये विशेष आरक्षण प्रस्तुत किया था, तब मैं संसद की सदस्य थी। मैं तुरंत खड़ी हुई और इस विधेयक पर एक संशोधन पेश किया। उस समय आधे से अधिक सदन ने मेरा समर्थन किया। देवेगौड़ा ने संशोधन को सहर्ष स्वीकार कर लिया। उन्होंने विधेयक को स्थायी समिति को सौंपने की घोषणा की। उमा ने ये भी जता दिया है कि उस वक्त भी लालू प्रसाद यादव और मुलायम सिंह जैसे विरोधी भी उनकी बात से सहमत थे।
बिल की कमियां अब भी नहीं हुईं हैं दूर
उमा भारती के पत्र की खबर वायरल होने से वो हो गया है जो शायद बीजेपी ने कभी सोचा नहीं था या कभी चाहा नहीं था। इस पत्र से उमा भारती ने ये जाहिर कर दिया की मोदी सरकार के पहले भी दूसरे दलों की सरकार में इस बिल पर चर्चा होती रही है और उसे पास करने की कोशिशें भी हो चुकी हैं। ये भी साफ हो गया जिन बिंदुओं पर आकर पहले ये बिल अटकता रहा वो खामियां या कमियां अब भी दूर नहीं हुई हैं। दिलचस्प बात ये है कि उमा भारती ने इस पूरी घटना का जिक्र बिल पेश होने से पहले ही ट्विटर कर दिया। जिसकी वजह से विपक्षियों को होमवर्क कम करना पड़ा और लाइन भी ठोस मिल गई।
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आरक्षण में आरक्षण का मुद्दा
उमा भारती ने आरक्षण बिल में भी आरक्षण देने का मुद्दा उठाया। बिल पेश हुआ और सदन में मौजूद सांसद और अन्य नेताओं से जब उनकी राय जानी गई तो जनगणना और परिसीमन का मामला तो उठा ही, आरक्षण में आरक्षण भी एक नया मुद्दा बन गया। एक के बाद एक कई नेताओं ने इसी तर्ज पर अपनी राय रखी। कांग्रेस से सोनिया गांधी ने कुछ अलग रुख के साथ अपनी प्रतिक्रिया पेश की। लालू की पार्टी की ओर से इस बार मुद्दे पर बोलने का जिम्मा संभाला राबड़ी देवी ने जिन्होंने जोर दिया कि आरक्षण में आरक्षण अनिवार्य है।
भीम आर्मी चीफ की मांग भी कुछ ऐसी ही
भीम आर्मी चीफ चंद्रशेखर आजाद ने भी कुछ ऐसी ही मांग की। उन्होंने इस पर 2 बिंदुओं में ट्वीट भी किया कि एससी, एसटी वर्गों के लिए वर्तमान में आरक्षित सीटों को छोड़कर, बाकी जनरल सीटों में एससी, एसटी और ओबीसी वर्गों की महिलाओं के लिए उनकी जनसंख्या के अनुपात में "महिला आरक्षण के भीतर आरक्षण" होना चाहिए। दूसरा सरकार अगर वास्तविकता में इन वर्गों की महिलाओं का सशक्तिकरण चाहती है तो एससी, एसटी और ओबीसी वर्गों की महिलाओं के लिए सभी सदनों- लोकसभा, राज्यसभा, विधानसभा और विधान परिषद में भी सीटों के आरक्षण की व्यवस्था लागू करे। एआईएमआईएम के चीफ असद्दुदीन ओवैसी के सुर अल्पसंख्यकों पर सिमटे रहे।
किसने क्या कहा ?
असद्दुदीन ओवैसी ने कहा कि इस बिल में बड़ी खामी ये है कि इसमें मुस्लिम महिलाओं के लिए कोई कोटा नहीं है और इसलिए हम इसके खिलाफ हैं। उन्होंने कहा कि आप किसे प्रतिनिधित्व दे रहे हैं? जिनका प्रतिनिधित्व नहीं है उन्हें प्रतिनिधित्व दिया जाना चाहिए। ओवैसी ने इस बिल में मुस्लिम महिलाओं के लिए अलग से आरक्षण की मांग की है। सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने भी आरक्षण में आरक्षण की बात की और बीएसपी सुप्रीमो मायावती के सुर भी वही रहे।
बिल के अनुसार टिकट वितरण लगभग असंभव
वैसे अभी बिल का प्रारूप पूरी तरह सबके सामने नहीं है। लेकिन ये तय है कि जनगणना और परिसीमन के बिना महिला आरक्षण को लागू करना मुश्किल होगा। तो, क्या महिला वोटर्स को अपने खेमे में लाने के लिए बीजेपी जो दांव खेलना चाहती थी वो कामयाब होगा। मध्यप्रदेश सहित चंद राज्यों में तो चुनाव बहुत नजदीक है वहां बिल के अनुसार टिकट वितरण कर पाना तकरीबन असंभव ही नजर आता है।
महिला आरक्षण को लेकर कौन कितना गंभीर
जो दल महिला हितैषी होने का दावा करते हैं, वो इतना तो कर ही सकते हैं कि रिजर्वेशन को ध्यान में रखते हुए ज्यादा से ज्यादा महिला उम्मीदवारों को टिकट दें। लेकिन ये इतना आसान है नहीं। खासतौर से चुनाव के मुहाने पर खड़े राज्यों में। जहां सालभर पहले से सर्वे हो चुके हैं और उम्मीदवारों का चयन तकरीबन पूरा हो चुका है। खुद बीजेपी ही अपनी एक लिस्ट जारी कर चुकी है। ऐसे में विधानसभा चुनाव में खुद बीजेपी ही महिला आरक्षण पर आगे नहीं बढ़ सकती। अब लोकसभा चुनाव में पार्टी का रुख साफ करेगा कि महिला आरक्षण को लेकर कौन कितना गंभीर है।