BHOPAL. कछुए और खरगोश की कहानी में धीमी चाल वाले कछुए ने तेज रफ्तार खरगोश को हरा दिया था। वजह थी स्लो एंड स्टडी विन्स द रेस। कहानी की इस सीख को मध्यप्रदेश में कांग्रेस अब तक बखूबी निभा रही थी। लेकिन बीजेपी की 2 लिस्ट ने, खासतौर से दूसरी लिस्ट ने कांग्रेस का सारा कॉन्फिडेंस और बैलेंस डिगा दिया लगता है। क्योंकि कांग्रेस की चाल धीमी होने के बावजूद अब डगमगाने लगी है। चुनावी तारीखें घोषित हो चुकी हैं, लेकिन कांग्रेस अब तक एक लिस्ट भी फाइनल नहीं कर सकी। माना जा रहा है कि बीजेपी की दूसरी लिस्ट के बाद एक बार फिर कांग्रेस में मंथन शुरू हो चुका है। बीजेपी ने रण जीतने के लिए दिग्गजों को मैदान में उतार दिया है। अब कांग्रेस भी जीत की खातिर दिग्गजों की तरफ बेहद उम्मीद से देख रही है, लेकिन मुश्किल ये है कि कुछ दिग्गज मैदान में आना नहीं चाहते और कुछ दिग्गजों को मैदान में उतारा तो कांग्रेस को फायदे की जगह नुकसान हो जाएगा।
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बीजेपी ने खेला बड़ा दांव
बीजेपी ने बड़ा दांव खेलते हुए अपने 3 बड़े नेताओं को विधानसभा चुनाव में उतार दिया है। अब पार्टी या गुटबाजी की खातिर नहीं, अपनी साख बचाने के लिए ही इन बड़े नेताओं को पूरी ताकत झोंकनी है। इन नेताओं में शामिल हैं केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर, प्रहलाद पटेल और कैलाश विजयवर्गीय। इन 3 के अलावा फग्गन सिंह कुलस्ते को भी विधानसभा चुनाव की जिम्मेदारी सौंप दी गई है। बीजेपी के इस फैसले से माना जा रहा है कि पार्टी ने बड़ी चुनावी जंग जीत ली है। जिसमें कार्यकर्ताओं का असंतोष कम होना भी शामिल है। अब अपनी अगली लिस्ट में भी बीजेपी कुछ ऐसे ही चौंकाने वाले फैसले कर सकती है। तीसरी लिस्ट में जो होगा सो होगा, फिलहाल दूसरी लिस्ट का असर कांग्रेस पर खूब हुआ है। अंदरूनी हलकों में खबर है कि कांग्रेस अब अपने दिग्गजों के नाम पर फिर से विचार कर रही है।
कांग्रेस के दिग्गजों ने चुनाव लड़ने से किया इनकार
बीजेपी ने जिस आसानी से दिग्गजों को मैदान में खड़ा कर दिया कांग्रेस के लिए ये पैंतरा आजमाना उतना आसान नहीं है। कांग्रेस के कुछ दिग्गजों ने खुद चुनाव लड़ने से इनकार कर दिया है। कुछ दिग्गज ऐसे हैं जिन्हें चुनावी मैदान में उतारा तो फायदे की जगह नुकसान हो सकता है। कई भरोसेमंद चेहरों को दूसरे प्रदेश की जिम्मेदारी सौंपी जा चुकी है। दिग्गजों की जंग में कांग्रेस दिग्विजय सिंह को भी चुनाव में उतार देती, लेकिन ऐसा करने से बीजेपी प्रदेश में और मुखर हो जाएगी। पर्दे के पीछे रहकर जीत की बुनियाद मजबूत करने वाले दिग्विजय सिंह का चुनावी रण में उतरना फायदे की जगह घाटे का सौदा साबित हो सकता है।
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कांग्रेस ने जारी नहीं की प्रत्याशियों की एक भी लिस्ट
बीजेपी की लिस्ट में धुरंधर नेताओं के नाम देखने के बाद खबर है कि कांग्रेस भी अब दिग्गजों को मैदान में उतारना चाहती है। इसके लिए कुछ दिग्गजों के नाम पर चर्चा भी शुरू हो चुकी है। जिसमें दिग्विजय सिंह समेत कई कद्दावर या अपने क्षेत्र के बड़े नेताओं के नाम शामिल हैं। लेकिन कांग्रेस के लिए ये फैसला लेना बहुत आसान नहीं है। शायद यही वजह है कि चुनावी तारीखों का ऐलान हो चुका है, उसके बावजूद कांग्रेस अब तक एक लिस्ट भी जारी नहीं कर सकी है। कांग्रेस के भीतरखानों से खबर है कि कांग्रेस जिन दिग्गजों पर दांव लगाना चाहती है वे चुनाव नहीं लड़ना चाहते। वहीं कुछ दिग्गज ऐसे हैं जिन्हें चुनावी मैदान में उतारने से फायदे की जगह नुकसान हो सकता है।
विवेक तन्खा
महाकौशल को मजबूती देने के लिए कांग्रेस विवेक तन्खा को मैदान में उतारना चाहती है। विवेक तन्खा खुद ही चुनाव लड़ने से इनकार कर चुके हैं। इससे पहले उन्होंने जो भी चुनाव लड़े उनमें जीत हासिल भी नहीं हुई।
सुरेश पचौरी
सुरेश पचौरी चुनाव लड़ने को तैयार हो सकते हैं, लेकिन वो भी कभी कोई चुनाव नहीं जीत सके हैं।
अरुण यादव
अरुण यादव ने पिछले चुनाव में शिवराज सिंह चौहान से मुकाबला किया था। जबकि वो निमाड़ की सीट से चुनाव लड़ना चाहते थे। प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनी, लेकिन यादव को कोई तवज्जो नहीं दी गई, जिसके बाद से यादव पार्टी से खफा हैं। कई मुद्दों पर मुखर होकर अपनी राय भी जता चुके हैं। खबर है कि पार्टी उन्हें एक बार फिर आश्वासन दे रही है कि हारने के बावजूद सत्ता या संगठन में अहम जिम्मेदारी सौंपी जाएगी।
कांतिलाल भूरिया
झाबुआ और रतलाम से सांसद रहे कांतिलाल भूरिया मजबूत उम्मीदवार माने जा रहे हैं। भूरिया अपनी जगह अपने बेटे विक्रांत भूरिया को चुनाव लड़ाना चाहते हैं। अगर दोनों को टिकट मिलता है तो बीजेपी परिवारवाद का मुद्दा जोरशोर से उठा सकती है।
अजय सिंह
2018 की हार के बावजूद अजय सिंह चुनाव लड़ने के लिए तैयार हैं। काफी पहले से वो क्षेत्र में एक्टिव भी चुके हैं।
मीनाक्षी नटराजन
मालवा में मीनाक्षी नटराजन एक अहम चेहरा हो सकती थीं। लेकिन उन्हें तेलंगाना की जिम्मेदारी सौंप दी गई है।
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दिग्विजय का पर्दे के पीछे रहना ही कांग्रेस के लिए फायदेमंद
कांग्रेस दिग्विजय सिंह पर भी दांव खेलना चाहती है। लेकिन दिग्विजय सिंह को चुनावी मैदान में उतारकर फायदे से ज्यादा नुकसान हो सकता है। दिग्विजय सिंह फिलहाल कांग्रेस के लिए संगठन को मजबूत करने और कार्यकर्ताओं को एक करने में जुटे हुए हैं। खुद चुनाव मैदान में उतरे तो एक ही सीट तक सिमटकर रह जाएंगे। दूसरा बीजेपी उनके खिलाफ फिर मिस्टर बंटाधार की छवि को भुनाने में लगी है। ऐसे में दिग्विजय सिंह अगर सामने होते हैं तो कांग्रेस को ज्यादा नुकसान हो सकता है। इसके अलावा उनके भाई, बेटा और भतीजा भी चुनाव मैदान में हैं। ऐसे में परिवारवाद के आरोप में भी वो घिर सकते हैं। लिहाजा पार्टी और वो खुद पर्दे के पीछे रहकर रणनीतिक तैयारियों में जुटे रहना चाहते हैं। यही कांग्रेस के लिए फायदेमंद भी है। कांग्रेस के लिए अब उन सीटों पर टिकट फाइनल करना एक बड़ी चुनौती है, जहां बीजेपी सांसदों को जीत की जिम्मेदारी सौंप चुकी है।
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कांग्रेस ने दोनों मोर्चों पर खाई मात
ताबड़तोड़ घोषणाओं के बाद बीजेपी ने 2 लिस्ट भी ताबड़तोड़ ही जारी की हैं। कांग्रेस फिलहाल दोनों ही मोर्चों पर मात खाई हुई है। महिलाओं को हर महीने 1500 देने की घोषणा पर बीजेपी की लाड़ली बहना योजना भारी पड़ चुकी है। सस्ते सिलेंडर का तोड़ भी बीजेपी निकाल चुकी है। अपनी लिस्ट से भी बीजेपी ने कांग्रेस के खेमे में खलबली तो मचा ही दी है। अब आचार संहिता भी लग चुकी है। जिसके बाद माना जा रहा है कि कांग्रेस अब कुछ ऐसे वादे करे जिनका तोड़ बीजेपी तुरंत न निकाल सके। लेकिन दिग्गजों की दौड़ में कांग्रेस अब भी पिछड़ती ही नजर आ रही है। अगर बड़े नेता अपनी बात पर अड़े रहे तो कांग्रेस की नैया का खिवैया कौन बनेगा।