BHOPAL. आज पंत प्रधान नरेंद्र मोदी अपना 73वां जन्मदिन मना रहे हैं। सोशल मीडिया पर उन्हें बधाई देने वालों की बाढ़ आई हुई है। मध्यप्रदेश भी भारी बारिश से पानी- पानी है और इसी बीच मामा यानी सूबे के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने बहनों को आवास देने की योजना भी लॉन्च भी कर दी। हां भाई हां, बारिश के मौसम में घोषणाओं की बौछार जारी है।
उधर, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के फरमान से प्रदेश सरकार के दो मंत्रियों की मनचाही सीट से टिकट पाने की मंशा पर पानी फिर गया है। उनके कार्यकर्ता कह रहे हैं कि शाह अलग 'खाए' जा रहे हैं। केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर लगता है पुत्र मोह में आ गए हैं।
अब दिल्ली चलते हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार 17 सितंबर को इंडिया इंटरनेशनल कन्वेंशन और एक्सपो सेंटर यशोभूमि (IICC) के पहले पार्ट का इनॉगरेशन किया। दिल्ली के द्वारका में बना यह दुनिया का सबसे बड़ा MICE (मीटिंग्स, इंसेंटिव, कॉन्फ्रेंस और एग्जीबिशन) सेंटर है। उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने नए संसद भवन पर तिरंगा लहराया। अब बारी खेल की। एशिया कप में भारत और श्रीलंका के बीच आज खिताबी जंग होगी। भारत का पलड़ा भारी नजर आता है। देश- प्रदेश और दुनिया में खबरें तो और भी बहुत हैं, पर आप तो सीधे नीचे चलिए और 'बोल हरि बोल' के रोचक किस्सों का आनंद लीजिए...।
क्या पुत्र मोह में आ गए तोमर!
केन्द्रीय कृषि मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर का एक बयान मीडिया में वायरल हो रहा है। मजे की बात यह है कि इसे वायरल करने वालों में वे नेता शामिल हैं, जो अपने बेटों को राजनीति के मैदान में उतारने के लिए बेताब हैं। तोमर ने कहा कि नेता का बेटा चुनाव लड़ता है तो वह वंशवाद नहीं होगा, क्योंकि वो नेता का बेटा होने के साथ पार्टी का कार्यकर्ता भी है। बता दें, तोमर के पुत्र देवेन्द्र सिंह भी ग्वालियर पूर्व की सीट से अपनी दावेदारी कर रहे हैं। तोमर के इस बयान के बाद सवाल उठने लगे हैं कि क्या वे भी पुत्र मोह में आ गए हैं? तोमर क्या सोचते हैं, उससे ज्यादा महत्वपूर्ण है कि मोदी- शाह क्या सोचते हैं। क्योंकि होगा, वही जो ये जोड़ी चाहेगी।
शाह के फरमान के बाद टेंशन में मंत्रीजी
शिवराज कैबिनेट के दो कद्दावर मंत्री इन दिनों परेशान हैं। दरअसल इन दोनों को उम्मीद थी कि वे पार्टी में अपने रुतबे का असर दिखाकर पड़ोस वाली विधानसभा सीट से टिकट ले आएंगे। हाल ही में हुई बैठक में अमित शाह ने दो टूक कहा कि 2018 में जो हुआ सो हुआ, अब कोई सीट अदला- बदली का खेल नहीं चलेगा। शाह के इस फरमान के बाद दोनों माननीय के अरमानों पर पानी फिर गया है। ये दोनों मंत्री चंबल क्षेत्र से आते हैं। उम्मीद है कि आप समझ ही गए होंगे, न समझे तो हमसे संपर्क कर लीजिए।
भीड़ वाले ही फोटो जारी करें..
भाजपा के अंदरखाने से खबर है कि दिल्ली से आए चुनाव प्रभारी स्थानीय नेताओं की आपसी खींचतान से परेशान हैं। इसका असर जन आशीर्वाद यात्रा पर भी नजर आ रहा है। मामा जिस यात्रा में होते हैं तो वहां का प्रशासन जुट जाता है और भारी भीड़ हो जाती है। जहां मामा नहीं हैं, वहां हालात दूसरे होते हैं। लोगों में यात्रा का गलत इम्पेक्ट न जाए, इसे ध्यान में रखते हुए पार्टी मीडिया सेल को हिदायत दी गई है कि यात्रा में फोटो खींचते वक्त इस बात का ध्यान रखा जाए कि भीड़ नजर आए।
बड़े मियां तो बड़े मियां...
बड़े मियां तो बड़े मियां, छोटे मियां सुबहानल्लाह...मप्र की अफसरशाही में भी कुछ ऐसा ही नजारा नजर आ रहा है। जूनियर अफसरों पर छोटे मियां की धाक चलती है। कुछ तो उन्हें अब मिनी सीएस भी कहने लगे हैं। छोटे मियां का खौफ कहें या मोहब्बत, उन्हें उनसे एक बैच सीनियर अफसर भी खुश करने में लगे रहते हैं। बैचमेट ने तो छोटे मियां को अपनी ढाल बना लिया है। रोजाना शाम को रिपोर्ट करके अपने जिले की ही नहीं, बल्कि पड़ोस के जिले में चल रही हवाओं का रुख भी बता देते हैं।
अब एमपी लॉबी का जलवा
अब आईएएस आईपीएस और आईएफएस में न साउथ लॉबी चलेगी, न पंजाबी और न ही बिहारी लॉबी राज कर पाएगी। अब तीनों अखिल भारतीय सेवा में मध्यप्रदेश के मूल निवासी अफसरों का जलवा होगा। ऐसा इसलिए कहा जा रहा है, क्योंकि पहली बार एमपी के रहने वाले अफसर अपना संगठन बनाने जा रहे हैं। डीजीपी सुधीर सक्सेना की अध्यक्षता में इसकी पहली बैठक भी हो चुकी है। इसमें कई अफसरों का दर्द छलका की एमपी के बाहर वाले अफसरों को ज्यादा मह्त्व मिलता है। अगली मीटिंग पीसीसीएफ आरके गुप्ता की अगुवाई में होगी। इसमें कोई ठोस निष्कर्ष सामने आ सकता है।
योग्य एडीजी की तलाश शुरू
पुलिस मुख्यालय में एडीजी एडमिन की पोस्ट के लिए योग्य 'वर' की तलाश जारी है, लेकिन 15 दिन बीतने के बाद भी न तो डीजीपी को, न ही गृह विभाग को योग्य एडीजी मिल पाया है, जो उनके पैरामीटर पर खरा उतर सके। बता दें, एडीजी एडमिन वो महत्वूपर्ण पद है, जो डीजीपी के बाद कई प्रशासनिक अधिकार रखता है। आईपीएस अफसरों के तबादलों से लेकर विभागीय जांच तक सारी फाइलें इन्हीं की नजरों से होकर गुजरती हैं। यूं कहें कि ये शिवजी के नंदी की तरह हैं, इन्हें नमस्ते किए बगैर काम नहीं चल सकता। ये पहली बार है कि इतनी महत्वपूर्ण पोस्ट को इतने लंबे समय से खाली रखा गया है। इधर, दावेदार हैं कि इस पद पर आने के लिए सेटिंग जमा रहे हैं, अब देखना होगा किसका सिक्का भारी पड़ता है।