संजय गुप्ता, INDORE. मप्र लोक सेवा आयोग (पीएससी) के परीक्षा शेड्यूल को लेकर खासकर राज्य सेवा परीक्षा प्री 2023 और राज्य सेवा मेंस 2022 की तारीखों को लेकर उम्मीदवारों के विरोध प्रदर्शन जारी है। एक सप्ताह में तीसरी बार शनिवार को उम्मीदवारों ने इन तारीखों को आगे बढ़ाने की मांग के साथ आयोग के दफ्तर के बाहर प्रदर्शन, नारेबाजी की। तारीखों में बदलाव नहीं करने को आयोग की तानाशाही करार दिया।
आयोग की ही 20 दिन में तीन परीक्षा का कैलेंडर
उम्मीदवारों का कहना है कि आयोग पांच साल से एक भी नौकरी नहीं दे सका और जब हम बाहर अन्य परीक्षाओं की तैयारी कर रहे हैं तो आयोग उनका शेड्यूल देखे बिना अपना कैलेंडर जारी कर देता है। खुद आयोग की ही 20 दिन में तीन परीक्षाएं होना हैं, जबकि कम से कम 40 दिन का अंतर होना चाहिए। उम्मीदवारों ने कहा कि यह तो शोषण है।
ये खबर भी पढ़ें...
आयोग की यह परीक्षाएं 20 दिन के अंतर में होना है
- राज्य वन सेवा परीक्षा 2022 मेंस – 10 दिसंबर
- राज्य सेवा प्री परीक्षा 2023- 17 दिसंबर
- राज्य सेवा मेंस परीक्षा 2022- 26 से 31 दिसंबर
- इसके साथ ही 16 दिसंबर को सहायक कुलसचिव के इंटरव्यू है।
उधर यह भी परीक्षाएं इसी बीच शेड्यूल्ड हैं
- 17 और 18 दिसंबर को डीएफसीसीआईएल भर्ती परीक्षा है।
- 16 से 24 दिसंबर के बीच एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालय कर्मचारी चयन परीक्षा 2023 है।
- 6 से 22 दिसंबर के बीच यूजीसी नेट अर्हता परीक्षा है।
प्रारंभिक बैठक में तारीख बढ़ाने के लिए नहीं बनी सहमति
द सूत्र पहले ही बता चुका है कि आयोग का शेड्यूल काफी टाइट है और हाल ही में हुई अधिकारियों की बैठक में तय समय पर ही परीक्षाएं कराने की बात हुई थी। आगे परीक्षाओं को लेकर जो कैलेंडर है, उसे आयोग डिस्टर्ब नहीं करना चाहता है। यह मेंस 2022 वैसे ही अक्टूबर में थी जो चुनाव के चलते टालना पड़ी और इसे फिर 26 दिसंबर से प्रस्तावित किया गया। एक बार और इसे बढाने में दिक्कत है, उधर कुछ उम्मीदवारों का कहना है कि मेंस नहीं बढ़ाकर 2023 की प्री को आगे 40 दिन के अंतर बाद जनवरी अंत या फरवरी में रखा जाए।
पूरा राजनीतिक मामला सारी स्थिति 3 दिसंबर के बाद ही तय होगी
चुनाव के बाद अब सभी की नजरें 3 दिसंबर की वोटिंग पर लगी है। ऐसे में माना जा रहा है कि बड़े स्तर के नीतिगत फैसले अब इस चुनाव परिणाम के बाद ही तय हो सकेंगे। अधिकारी स्तर पर कोई भी ऐसे बड़े फैसले नहीं होंगे, जिससे बाद में नई सरकार के सामने उन्हें जवाब देना पड़ जाए। इसी के चलते आयोग ने आचार संहिता के नाम पर रिजल्ट भी रोककर रखे थे और जब वोटिंग हो गई इसके बाद यह रिजल्ट जारी करने शुरू हुए। जबकि राजस्थान ने तो चुनावी आचार संहिता के दौरान अंतिम रिजल्ट भी जारी किए थे। ऐसे में आचार संहिता का कोई मामला ही नहीं था। लेकिन आयोग अपने स्तर पर कोई फैसला लेने से बच रहा था। अभी भी तारीख बढ़ाने को लेकर भी मोटे तौर पर यह सब इश्यू भी अहम है।