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संजय शर्मा, BHOPAL. कुछ साल पहले तक गंभीर संकटग्रस्त प्रजातियों में शामिल चम्बल के घड़ियाल अब नदी में रेत के उत्खनन की वजह से खतरे में घिरे हैं। सेंचुरी में घड़ियालों को दिए जा रहे संरक्षित माहौल पर रेत माफिया का लालच भरी पड़ रहा है। स्थिति ये है कि घड़ियालों की इस विशेष प्रजाति को खतरे से बचाने 40 साल से प्रयास कर रही वाइल्ड लाइफ सेंचुरी की कोशिश नाकाफी साबित हो रही हैं। वहीं चम्बल के घड़ियालों को संरक्षित करने के लिए चल रहा ब्रीडिंग सेंटर भी अपने टारगेट से पिछड़ रहा है।
विशेष प्रजाति के घड़ियालों का संरक्षण
मुरैना से करीब 17 और ग्वालियर से 50 किलोमीटर दूर चम्बल नदी के पास 1978 में शुरू हुई वाइल्ड लाइफ सेंचुरी में घड़ियालों की ब्रीडिंग कराते हुए नवजातों को संरक्षित रखा जाता है और फिर उन्हें नदी में छोड़ दिया जाता है। ये सेंचुरी 40 साल से चम्बल नदी में पाए जाने वाले विशेष प्रजाति के घड़ियालों के संरक्षण के लिए काम कर रही है। इसके लिए सेंचुरी के देवरी में घड़ियाल पालन केंद्र बनाया गया है। यहां घड़ियालों के अंडों को रखा जाता है और उनसे निकलने वाले नवजात घड़ियालों को नदी घाटों पर उनके प्राकृतिक आवास की तरह माहौल दिया जाता है।
DFO स्वरूप दीक्षित क्या कहते हैं ?
सेंचुरी के संचालन का दायित्व संभाल रहे डीएफओ स्वरूप दीक्षित के अनुसार पालन केंद्र में घड़ियालों की ब्रीडिंग के बाद उनके अंडों को देखरेख में रखा जाता है। फिर निर्धारित अवधि में जब अंडों से बच्चे निकलते हैं तो उन्हें भी प्राकृतिक आवास में रखा जाता है और बड़े होने पर नदी में उनके मूल आवासों में छोड़ दिया जाता है। चम्बल में रेत का खनन घड़ियालों के लिए जोखिम न बने इसके लिए विशेष दल बनाकर निगरानी कराई जा रही है। इसके लिए जिला प्रशासन और वरिष्ठ अधिकारियों की ओर से भी नदी में घड़ियालों के विचरण क्षेत्रों को खनन से बचाने के प्रयास जारी हैं।
देशभर के चिड़ियाघरों में है चम्बल के घड़ियालों की मांग
चम्बल नदी के घड़ियाल अपनी विशेष प्रजाति की वजह से अन्य उभयचरों में सबसे अलग हैं। इसी वजह से इन घड़ियालों की डिमांड न केवल प्रदेश बल्कि देश के अन्य राज्यों के चिड़ियाघरों में है। इन घड़ियालों को देखने वालों की संख्या भी काफी है।
अध्ययन करने बड़ी संख्या में आते हैं शोधकर्ता
वाइल्ड लाइफ सेंचुरी न केवल मध्यप्रदेश बल्कि पूरे देशभर में वन्यप्राणी प्रेमियों का केंद्र बन गया है। यहां न केवल छुट्टी के दिनों में लोग पर्यटन के लिए पहुंच रहे हैं, बल्कि देशभर से शोधकर्ता अध्ययन के लिए चम्बल घड़ियाल सेंचुरी में डेरा जमाए रहते हैं।