शिवम दुबे, RAIPUR. छत्तीसगढ़ में बीजेपी की शानदार जीत के साथ सूबे में सत्ता बदल चुकी है। पिछले चुनाव में बुरी तरह हारने वाली बीजेपी ने इस बार दमदार वापसी करते हुए बहुमत का आंकड़ा पार कर लिया। इसके साथ ही कांग्रेस सरकार की विदाई हो गई है। चुनाव में कांग्रेस को मिली हार के बाद मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने रविवार को राज्यपाल विश्वभूषण हरिचंदन को अपना इस्तीफा सौंप दिया।
यह बात किसी से नहीं छिपी कि कुछ दिनों पहले तक यहां बीजेपी के नेता अपना मुंह लटका चुके थे। रविवार को आए चुनाव परिणाम ने सबको हैरत में डाल दिया। अपने काम के दम पर कांग्रेस जो इस बार 75 से ज्यादा सीटें जीतने का दावा कर रही थी। वो सारे हवा हो गए। कांग्रेस पिछड़ गई और 35 सीटों पर सिमट गई। कांग्रेस की हार को लेकर जानकार क्या कहते हैं आइए जानते हैं।
जातीय समीकरण में असफल
राजनीतिक जानकारों का मानना है कि किसी राज्य में किसी भी तरह का चुनाव होता है तो उसमें जातीय समीकरण का अहम रोल होता है। ओबीसी वोटर बीजेपी और कांग्रेस दोनों को ही वोट करता रहा है। लेकिन, इस बार कांग्रेस ओबीसी की अलग-अलग जातियों का समीकरण बैठाने में सफल नहीं रही। कांग्रेस का सबसे बड़ा वोट बैंक गांवों में था। कांग्रेस उसी को आधार बनाकर चुनाव लड़ रही थी। बीजेपी ने गांव और किसान के उस वोटर में बेहतर चुनावी प्रबंधन किया। कांग्रेस इन जातीय समीकरणों को बिठाने में असफल रही। जो जातियां कांग्रेस को वोट करती रहीं इस बार उससे दूर खड़ी दिखाई दीं।
भ्रष्टाचार के आरोप
जानकार यह भी मानते है कि कांग्रेस सत्ता में अपनी सफाई में कुछ भी कहती रहे। कोर्ट में क्या साबित हो पाए या नहीं या वक्त बताएगा लेकिन, कांग्रेस सरकार के ऊपर भष्ट्राचार के आरोप एक तरह से नत्थी हो गए। ऐन चुनाव के वक्त महादेव ऐप के मामले ने भी इस धारणा की पुष्टि की। मुक्तिबोध कहते हैं कि इससे इंकार नहीं कर सकते कि भष्ट्राचार के आरोपों ने कांग्रेस का नुकसान किया।
एक-दूसरे पर बयानबाजी
राजनीतिक जानकारों का कहना है कि कांग्रेस की हार का एक बड़ा कारण पीएम मोदी पर बयानबाजी करना भी रहा है। कांग्रेस के नेताओं ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को टारगेट करने की विफल कोशिश की। कांग्रेस नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर विवादित बयान दिया था। कांग्रेस अध्यक्ष ने कहा, “मोदी जी, झूठों के सरदार बन गए हैं।” इस तरह की बयानबाजी से पीएम मोदी को हर बार लाभ ही पहुंचा है।
गुटबाजी का असर पड़ा भारी
इस बार मध्य प्रदेश और राजस्थान में कांग्रेस के अंदर ही बड़ी गुटबाजी देखने को मिली, राजस्थान में अशोक गहलोत और सचिन पायलट के गुटों में तकरार पहले दिन से ही उजागर थी। पूरे पांच सालों तक कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व इसे गड़बड़ी को ठीक करने में जुटा रहा। मध्य प्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया के बीजेपी में जाने के बाद कई छोटे नेताओं ने भी बीजेपी का दामन थाम लिया। तब से वह खाली जगह भरी नहीं गई है।