BILASPUR. छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण टिप्पणी की है। पत्नी और बेटे- बेटी को गुजारा भत्ता देने के फैमिली कोर्ट के आदेश के खिलाफ पिता ने हाई कोर्ट में याचिका लगाई थी, लेकिन सुनवाई के दौरान उपस्थित नहीं हुए। इस रवैये पर टिप्पणी करते हुए हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा की बेंच ने कहा है कि इस मामले में वह गुजारा भत्ता देने से बचने के लिए टैक्टिस अपनाता रहा है, जबकि पिता के तौर पर अपने बेटे को भरण पोषण देने के लिए वह बाध्य है।
पिता अपने बेटे को गुजारा भत्ता देने के लिए बाध्य
दरअसल, जांजगीर-चांपा में रहने वाले शिक्षक की 1993 में शादी हुई, उनके एक बेटी और एक बेटा हुआ। इस बीच आपसी विवादों के चलते 2012 से पति- पत्नी अलग रहने लगे। पत्नी ने सीआरपीसी की धारा 125 के तहत गुजारा भत्ता की मांग करते हुए आवेदन लगाया। फैमिली कोर्ट ने हर माह 4500 रुपए देने के आदेश दिए। इसके बाद बेटे ने भी गुजारा भत्ता देने की मांग करते हुए आवेदन लगाया। कोर्ट में सुनवाई के दौरान शिक्षक पिता के नहीं पहुंचने पर कोर्ट ने एकतरफा आदेश देते हुए स्कूल के प्राचार्य को वेतन से हर माह 6 हजार रुपए कटौती करने के आदेश दिए हैं।
2015 में हाई कोर्ट में दी चुनौती
सुनवाई के दौरान हाई कोर्ट ने कहा कि निचली अदालत के समक्ष आवेदक की अनुउपस्थिति कुछ नहीं, बल्कि मुकदमे को लंबा खींचने और गुजारा भत्ता देने की जिम्मेदारी से बचने का प्रयास है। जबकि पिता होने के नाते वह बेटे को गुजारा भत्ता देने के लिए बाध्य है। बता दें कि फैमिली कोर्ट द्वारा वर्ष 2014 में दिए गए आदेश को शिक्षक ने वर्ष 2015 में हाई कोर्ट में चुनौती दी, लेकिन सुनवाई के दौरान नहीं पहुंचा। इसके बाद इस मामले पर दोबारा सुनवाई नहीं हो सकी थी, जिसके बाद चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा की सिंगल बेंच में सुनवाई हुई।