मध्यप्रदेश में दल-बदल की बयार में कांग्रेस का हाथ भारी, बीजेपी में नए चेहरों ने की हिस्सेदारी, 4 महीने में 40 बड़े नेताओं की घुसपैठ

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Jitendra Shrivastava
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मध्यप्रदेश में दल-बदल की बयार में कांग्रेस का हाथ भारी, बीजेपी में नए चेहरों ने की हिस्सेदारी, 4 महीने में 40 बड़े नेताओं की घुसपैठ

अरुण तिवारी, BHOPAL. चुनाव आते ही सियासत में दलबदल का खेल शुरू हो जाता है, लेकिन मध्यप्रदेश में दो दशक की राजनीति में ये पहली बार हो रहा है जब इतने बड़े पैमाने पर नेता अपनी पार्टी बदलकर दूसरी पार्टी में जा रहे हैं। प्रदेश में जो मौजूदा सरकार है उस पार्टी के नेताओं का विपक्ष की पार्टी में जाना उसके लिए अलार्मिंग स्टेज कही जा सकती है। पिछले चार से छह महीनों में बड़ी संख्या में लोग कांग्रेस में शामिल हुए हैं। ये वे नेता हैं जो या तो विधायक हैं या फिर पूर्व विधायक जिनका अपने क्षेत्र में बड़ा दखल है। वहीं बीजेपी में भी लोग शामिल हुए हैं, लेकिन वे राजनीति में कोई विशेष बड़े कद के नहीं माने जा सकते। कुछ नौकरशाहों ने तो कुछ जिला पंचायत के प्रतिनिधियों ने कमल का हाथ थामा है।

कमलनाथ की पौ बारह

इस समय चुनावी चौसर पर कमलनाथ की पौ बारह हो रही है। बीजेपी के नाराज दिग्गज नेता कांग्रेस का रुख कर रहे हैं। इन चार से छह महीनों में 40 से ज्यादा बड़े नेताओं ने कांग्रेस का दामन थामा है। दो बार के विधायक वीरेंद्र रघुवंशी, पूर्व मंत्री दीपक जोशी, दो बार के पूर्व विधायक भंवर सिंह शेखावत जैसे नेताओं का कांग्रेस में शामिल होना कैडरबेस पार्टी बीजेपी के लिए चिंता का सबब हो सकते हैं। इसके अलावा आधा दर्जन पूर्व विधायकों का कांग्रेस में आना उसके खुश होने के लिए काफी है।

बीजेपी छोड़कर थामा हाथ

  • वीरेंद्र रघुवंशी, भाजपा विधायक कोलारस
  • पूर्व विधायक भंवर सिंह शेखावत
  • पूर्व सांसद माखन सिंह सोलंकी
  • पूर्व विधायक राधेलाल बघेल
  • पूर्व मुख्यमंत्री कैलाश जोशी के पुत्र दीपक जोशी
  • गिरिजाशंकर शर्मा, पूर्व विधायक
  • महेंद्र बागरी पूर्व विधायक गुनौर
  • आष्टा के जिला पंचायत सदस्य कमल सिंह चौहान
  • पूर्व विधायक राव देशराज सिंह के बेटे यादवेंद्र सिंह यादव
  • पूर्व विधायक और नगर पालिका अध्यक्ष अनुभा मुंजारे
  • पूर्व मंत्री सईद अहमद
  • विधायक प्रदीप लारिया के भाई हेमंत लारिया
  • मंत्री कमल पटेल के सहयोगी दीपक सारण
  • पर्वतारोही मेघा परमार
  • मुलताई की नगर पालिका अध्यक्ष नीतू परमार
  • पंकज लोधा, धार
  • समंदर पटेल, नीमच
  • अजुम रहबर, इंदौर
  • रोशनी यादव, निवाड़ी
  • बैजनाथ सिंह यादव, शिवपुरी
  • वेदांती त्रिपाठी,
  • नितिन दुबे पत्रकार, सीहोर
  • ध्रुव प्रताप सिंह, विजयराघौगढ़, कटनी
  • मलखान सिंह, भिंड
  • अवधेश नायक, दतिया
  • शुभांगना राने, धार
  • नीरज शर्मा, सुरखी
  • जितेन्द्र जैन गोटू,
  • राजकुमार धनौरा सुरखी
  • राजू दांगी, दतिया
  • देवराज बागरी, सतना
  • वंदना बाग़री, सतना
  • शंकर महतो, बहोरीबंद
  • रघुनंदन शर्मा, बजरंग सेना
  • रामशंकर मिश्रा, बजरंग सेना
  • अरुण पाठक, बजरंग सेना
  • उर्मिला मराठा, बजरंग सेना
  • अम्बरीश राय, बजरंग सेना
  • राजेन्द्र सिंह मुरावर, बजरंग सेना
  • रणवीर पटैरिया, बजरंग सेना
  • चंद्रभूषण सिंह बुंदेला उर्फ गुड्डू राजा
  • छेदीलाल पांडे शिवम पांडे कटनी
  • अरविंद धाकड़ शिवपुरी
  • अंशु रघुवंशी गुना
  • केशव यादव भिंड
  • आशीष अग्रवाल गोलू, पूर्व गृहमंत्री उमाशंकर गुप्ता के भांजे
  • महेंद्र प्रताप सिंह नर्मदापुरम

बीजेपी में नए मोहरे

सरकार होने के बाद भी बीजेपी में बड़े चेहरों की आवाजाही नहीं हो रही। केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के कुनबे के अतिक्रमण की वजह से नेताओं को यहां ज्यादा गुंजाइश नजर भी नहीं आ रही। कुछ बड़े चेहरों की बात करें तो पूर्व मंत्री विजयलक्ष्मी साधौ की बहन प्रमिला साधौ और 2018 में कांग्रेस की उम्मीदवार रहे खिलाड़ी सिंह और छाया मोरे ही नजर आते हैं। बीजेपी ने लोधी समुदाय में बड़े चेहरे प्रीतम लोधी की वापसी कराने जरूर कामयाबी हासिल की है। वहीं कुछ पूर्व नौकरशाह भी बीजेपी का हिस्सा बने हैं।

ये नेता बीजेपी में शामिल हुए

  • प्रमिला साधौः विजयलक्ष्मी साधौ की बहन
  • प्रीतम लोधी
  • खिलाड़ी सिंह आर्मोः कांग्रेस के उम्मीदवार रहे
  • लीला कटारियाः जिला पंचायत अध्यक्ष
  • कवींद्र कियावतः रिटायर्ड आईएएस
  • रघुवीर श्रीवास्तवः रिटायर्ड आईएएस
  • छाया मोरेः कांग्रेस की विधानसभा उम्मीदवार
  • डॉ. हितेश मुजाल्देः जयस
  • सुनील जायसवालः कांग्रेस नेता
  • शैलेष राठौरः कांग्रेस नेता
  • रघुराज सिंहः कांग्रेस नेता
  • सरफराज खान
  • देवेंद्र सिंह राणावत
  • प्रकाश उइकेः पूर्व जज
  • रामसिंह मेड़ाः रिटायर्ड एसडीओपी
  • आकांक्षा बघेल
  • भेरुलाल कटारिया
  • राजेश तिवारीः विहिप नेता

कुछ कहता है ये सीजन

राजनीतिक विश्लेषक और वरिष्ठ पत्रकार जयराम शुक्ल कहते हैं कि इतने बड़े पैमाने पर दलबदल बदलाव का संकेतक माना जाता है, लेकिन ये कई बार राजनीतिक परिस्थियों पर भी निर्भर करता है। 2014 में लोकसभा चुनाव के पहले दलबदल की आंधी आई थी और कांग्रेस समेत अन्य दल के बड़े नेता बीजेपी में शामिल हुए थे। वे जीते भी और मंत्री भी बने यानी इसका उन्हें भरपूर फायदा मिला, लेकिन इससे उलट 2004 में भी इंडिया शाइनिंग का नारा चला था और ऐसा माना जा रहा था कि फिर से अटल सरकार बनेगी। इस दौरान भी बड़े पैमाने पर अन्य दल के नेता बीजेपी में शामिल हुए थे, लेकिन ये अनुमान गलत निकला और कांग्रेस की सरकार बन गई। हालांकि, लोकसभा और विधानसभा की राजनीतिक परिस्थितयां अलग भी होती हैं। शुक्ल कहते हैं कि प्रदेश की जहां तक बात है तो इस तरह का दलबदल दो दशकों में नहीं देखा गया। कई बार ये मौका परस्ती का जरिया भी माना जाता है। जीत के लिए अकेले दलबदल का सहारा कामयाब नहीं रहता। जनता बहुत चतुर होती है उसे समझ में भी सब आता है। नतीजा क्या होगा ये अभी स्पष्ट तौर पर नहीं कहा जा सकता, लेकिन कांग्रेस के लिए खुशफहमी पालने और बीजेपी के लिए कैडर के बिखराव का चिंतन करने की बात जरूर हो सकती है।

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