अरुण तिवारी, BHOPAL. मध्यप्रदेश के चुनावों ने सबको चौंका दिया है। कांग्रेस की इतनी बड़ी हार हैरान करने वाली रही। इस चुनाव को बेहद करीबी मुकाबला माना जा रहा था, लेकिन बीजेपी की एकतरफा जीत ने ये साबित कर दिया कि कांग्रेस कहीं मुकाबले में ही नहीं रही। यहां तक कि कांग्रेस के कई दिग्गज नेता भी अपनी सीट बचाने में भी नाकाम रहे। आइए जानने की कोशिश करते हैं कि वो क्या दस बड़ी वजहें रहीं जिन्होंने कांग्रेस को इस चुनाव में धूल चटा दी।
ये रहीं कांग्रेस हार की ग्यारह बड़ी वजहें...
कमलनाथ का चेहरा और मैनेजमेंट दोनों फेलः ये चुनाव पूरी तरह से कमलनाथ के इर्द गिर्द रहा है। चुनाव की हार से साफ है कि न कमलनाथ का चेहरा चला और न ही उनका मैनेजमेंट काम आया।
लाड़ली बहना को जज करने में नाकामः कांग्रेस लाड़ली बहना इफेक्ट को समझने में नाकाम रही। नारी सम्मान योजना के जरिए उसकी काट जरुर खोजी गई लेकिन लाड़ली बहना अपना काम कर गई।
एंटी इन्कमबेंसी से ओवर कान्फिडेंट : कांग्रेस ओवर कान्फिडेंट भी कि प्रदेश में सत्ता विरोधी लहर चल रही है। वो मान चुकी थी कि एंटी इन्कमबेंसी इतनी ज्यादा है कि प्रदेश में एकतरफा जीत होगी लेकिन नतीजा कुछ और निकला।
काम नहीं आई दिग्गजों की रणनीति : कांग्रेस नेताओं ने गुटबाजी से दूर एक होकर चुनाव लड़ने का दावा किया। दिग्गजों की रणनीति कोई काम न आई। कांग्रेस के कई दिग्गज तक चुनाव हार गए।वहीं कमलनाथ और दिग्विजय सिहं के बीच कपडा फाड़ विवाद से कार्यकर्ताओं में गलत मैसेज गया।
कोई बड़ा मुद्दा खड़ा न कर पाना : इस पूरे चुनाव के दौरान बीजेपी के खिलाफ कांग्रेस कोई बड़ा मुद्दा खड़ा नहीं कर पाई। भ्रष्टाचार और कानून व्यवस्था जैसे मुद्दों पर ही कांग्रेस बयानबाजी करती रही।
वचन पत्र में कोई तुरुप का इक्का नहीं : इस बार वचन पत्र में कांग्रेस ने लोक लुभावन घोषणाएं जरुर कीं लेकिन पिछले चुनाव की तरह कर्ज माफी जैसा तुरुप का इक्का नहीं चल पाई। कर्ज माफी को आगे बढ़ाना ही वचन पत्र में शामिल रहा। वहीं नारी सम्मान योजना की घोषणा जरुर की लेकिन शिवराज सरकार ने योजना लागू कर नौ नगद न तेरह उधार वाली कहावत चरितार्थ कर दी।
काम नहीं आया 15 महीने की सरकार का कामकाज : कांग्रेस ने कमलनाथ के 15 महीने की सरकार के कामकाज के दम पर प्रदेश में वापसी का दावा किया। पार्टी 15 महीने बनाम 15 साल का मुद्दा भी उठाती रही। लेकिन जनता को लुभा न पाई।
नहीं चला युवाओं को लुभाने का दांव : कांग्रेस ने प्रदेश के युवाओं पर भी फोकस किया था। उनको रोजगार का रोडमैप भी दिखाया लेकिन ये दांव भी काम नहीं आ पाया।
नहीं चला जातिगत जनगणना का कार्ड : कांग्रेस के स्टार प्रचारक राहुल गांधी ने बार-बार जातिगत जनगणना का जिक्र कर ओबीसी कार्ड खेला। ये कार्ड भी इस चुनाव में नहीं चला।
बेअसर रहे राहुल और प्रियंका : कांग्रेस ने स्टार प्रचारक के तौर पर राहुल गांधी,प्रियंका गांधी और मल्लिकार्जुन खड़गे की ज्यादा से ज्यादा सभाएं करवाईं लेकिन राहुल का किसान और ओबीसी पर फोकस, प्रियंका की गारंटी और खड़गे की एससी-एसटी को अपने पाले में लाने की योजना काम नहीं कर पाई।
टिकट वितरण में भी पिछड़ी कांग्रेसः बीजेपी ने अपने 39 उम्मीदवारों की पहली सूची 3 महीने पहले ही घोषित कर दी थी। बीजेपी की यह रणनीति कामयाब साबित हुई और इस सूची के अधिकांश प्रत्याशियों ने जीत दर्ज की।