संजय गुप्ता, INDORE. इंदौर हाईकोर्ट बेंच ने इंदौर की अपर कलेक्टर और एडीएम सपना लोवंशी को लेकर सख्त टिप्पणी की है। साथ ही उन पर 10 हजार की कॉस्ट लगाई है, क्योंकि उनके कारण हाईकोर्ट का कीमती समय बर्बाद हुआ। यही नहीं हाईकोर्ट ने ये भी आदेश दिया है कि इसकी कॉपी प्रमुख सचिव राजस्व को भेजी जाए जिसे वे सभी अधिकारियों को भेजें और वे मध्यप्रदेश के सभी अधिकारियों के बीच इसे प्रसारित करें, ताकि अधिकारी न्यायालय द्वारा पारित आदेशों की अपने तरीके से व्याख्या करना बंद कर सकें। ये भी कहा कि कोर्ट उम्मीद करता है कि भविष्य में कम से कम अतिरिक्त जिला मजिस्ट्रेट, शीर्ष न्यायालय द्वारा पारित आदेशों का अक्षरक्ष: पालन करेंगे। हाईकोर्ट ने यहां तक कहा कि उनके आदेशों से लगता है कि उन्हें मनमाने ढंग से शक्तियों का प्रयोग करने की आदत है।
खुद की जेब से जमा करनी होगी कॉस्ट
अपर कलेक्टर लोवंशी की कार्यशैली पर हाईकोर्ट ने इस कदर नाराजगी जताई है कि उन्होंने आदेश में ही लिखा कि ये 10 हजार की कॉस्ट उन्हें जमा करानी होगा और अपनी जेब से देनी होगी। ये राज्य शासन द्वारा वहन नहीं किया जाएगा। उन्होंने न्यायालय के आदेश का पालन नहीं करके कोर्ट का कीमती समय बर्बाद किया है।
क्यों एडीएम लोवंशी पर इतना नाराज हुआ कोर्ट
एसएमएफजी इंडिया क्रेडिट कंपनी अधिकृत प्रतीक दुबे द्वारा होटल सवेरा मिलाक अमन डावर, विजय डावर का लोन दिया गया था। इस लोन की रिकवरी के लिए सरफेसी एक्ट में केस लगा जिसमें गारंटी तौर पर रखी संपत्ति पर कब्जा चाहा गया, लेकिन लोवंशी ने कब्जा सौंपने की जगह कर्जदारों को जवाब देने के लिए समय दे दिया। याचिकाकर्ता दुबे ने फिर हाईकोर्ट में मई में 2023 में हाईकोर्ट में केस दाखिल कर जवाब देने वाले फैसले पर आपत्ति ली। इस पर हाईकोर्ट ने साफ निर्देश दिए किए याचिकाकर्ता के आवेदन पर फैसला लिया जाए, लेकिन लोवंशी ने आवेदन ये कहकर खारिज कर दिया कि सामने वाला पक्ष डीआरटी जबलपुर गया है। इस पर फिर जून 2023 में याचिकर्ता ने लोवंशी के खिलाफ अवमानना याचिका दायर कर दी।
ये खबर भी पढ़िए..
हाईकोर्ट ने फैसले में लोवंशी के फैसले पर जताई भारी नाराजगी
हाईकोर्ट ने कहा कि जब पूर्व में हाईकोर्ट आदेश दे चुका था, तब इसके बाद भी लोवंशी खुद ही फंक्शनल ऑफिसियो बन गई और आदेश की अपने हिसाब से व्याख्या करते हुए आवेदन खारिज कर दिया। जबकि उन्हें सरफेसी एक्ट में केवल ये देखना था संपत्ति उनके क्षेत्र में है या नहीं और एक्ट की धारा के तहत नोटिस हुए या नहीं। हाईकोर्ट ने 13 जुलाई को आदेश भी दिया था अपर कलेक्टर जवाब पेश करें कि उन्होंने हाईकोर्ट का आदेश दरकिनार कर अपने हिसाब से व्याख्या क्यों की और वे कैसे फंक्शनल ऑफिसियो बन गई। हाईकोर्ट में उन्होंने जवाब दिया, लेकिन ये कहीं नहीं कि बताया कि वे फंक्शनल ऑफिसियो कैसे बन गई? देखने में आया कि अधिकारी सरफेसी एक्ट में अपनी सुविधानुसार आदेश पारित कर रहे हैं और व्याख्या कर रहे हैं। उन्होंने (लोवंशी) ने आदेश वापस लेने की मंजूरी भी कोर्ट से मांगी है। यानी उन्हें मनमाने ढंग से शक्तियों का प्रयोग करने की आदत है। इसिलए उन पर भारी जुर्माना लगाया जाना चाहिए।