मप्र में मिजोरम के कारण 15 अक्टूबर से पहले लगेगी आचार संहिता, वजह मिजोरम की विधानसभा के लिए 15 दिसंबर तक चुनाव कराना जरूरी

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Pratibha Rana
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मप्र में मिजोरम के कारण 15 अक्टूबर से पहले लगेगी आचार संहिता, वजह मिजोरम की विधानसभा के लिए 15 दिसंबर तक चुनाव कराना जरूरी

संजय गुप्ता, INDORE. चुनाव आयोग 6 अक्टूबर को चुनाव वाले राज्यों के पर्यवेक्षकों की बैठक कर रहा है और इसके बाद चुनाव तारीख की घोषणा आयोग किसी भी दिन कर देगा और आचार संहिता लग जाएगी। आचार संहिता लगने का फार्मूला क्या है? और यह मप्र में कब तक लगेगी? इसके जवाब के लिए द सूत्र ने पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त ओपी रावत से भी बात की और इस बात को समझा। इससे यह सामने आया कि मप्र में जल्द आचार संहिता लगने की वजह मिजोरम राज्य है। इस राज्य के चलते लंबी आचार संहिता चलती है।

आचार संहिता के लिए क्या है फार्मूला?

रावत बताते हैं चुनाव आयोग चुनाव के लिए देखता है कि किस विधानसभा का कार्यकाल कब खत्म हो रहा है। उस विधानसभा के पहले चुनाव की संपूर्ण प्रक्रिया पूरी कराना आयोग की संवैधानिक ड्यूटी है। इसलिए जिस राज्य की विधानसभा का कार्यकाल पूरा हो रहा होता है, उसके अनुसार चुनाव की प्रक्रिया तय होती है। सामान्य तौर पर चुनाव में 45 दिन का समय लगता है। उसी के अनुसार आयोग यह तारीख तय करता है। यदि अधिक राज्यों में चुनाव हो और ला एंड आर्डर के इश्यू हो तो आयोग उसी हिसाब से सुरक्षा बल के मूवमेंट के हिसाब से थोड़ा और समय लेता है और ऐसे में राज्य की विधानसभा का कार्यकाल खत्म होने के दो माह पहले भी चुनाव तारीख आ जाती है।

अब मिजोरम क्यों हैं इसकी वजह?

इस फार्मूले के अनुसार चुनाव वाले राज्य मप्र, राजस्थान, छत्तीसगढ़, तेलगांना, मिजोरम को देखे तो सबसे पहले कार्यकाल मिजोरम की विधानसभा का खत्म हो रहा है। वहां 17 दिसंबर तक ही विधानसभा का कार्यकाल है, यानि इसके तीन-चार दिन पहले तक चुनाव रिजल्ट आ जाना चाहिए। यानि कम से कम चुनाव के रिजल्ट 15 दिसंबर तक हो जाना चाहिए ताकि विधानसभा समय पर शुरू हो सके। भले ही अन्य राज्यों की विधानसभा का कार्यकाल अभी बाकी हो। 15 दिसंबर तक चुनाव पूरे कराने के लिए जरूरी है कि प्रक्रिया दो माह पहले यानि 15 अक्टूबर के पहले शुरू की जाए।

आचार संहिता में अधिकतम समय लेने का कोई नियम नहीं

हालांकि आयोग के लिए आचार संहिता का समय लेने के लिए कोई तय मापदंड नहीं है, वह चाहे तो पर्यवेक्षकों की बैठक के बाद किसी भी दिन चुनाव तारीख घोषित कर आचार संहिता लगा सकती है। यह आयोग स्वतंत्र तौर पर तय करता है कि उसे कितना समय चुनाव प्रक्रिया में लेना है और कब तारीख घोषित करना है। इसलिए 15 अक्टूबर के पहले आयोग किसी भी तारीख पर चुनाव घोषित कर सकता है।

मप्र की विधानसभा का कार्यकाल- 6 जनवरी 2024 तक है

  • राजस्थान की विधानसभा का कार्यकाल- 14 जनवरी 2024 तक
  • तेलंगाना की विधानसभा का कार्यकाल- 16 जनवरी तक
  • छत्तीसगढ़ की विधानसभा की कार्यकाल- 3 जनवरी तक
  • मिजोरम की विधानसभा का कार्यकाल- 17 दिसंबर 2023 तक है

मिजोरम नहीं हो तो आचार संहिता नवंबर माह में लगे

यानि मिजोरम की विधानसभा का कार्यकाल इन बाकी राज्यों के साथ नहीं आता तो यहां आचार संहिता अक्टूबर माह की जगह नवंबर माह में लगती। हर बार मिजोरम के चलते ही इन राज्यों में भी आचार संहिता अक्टूबर माह में ही लगती आई है।

कब-कब लगी आचार संहिता

  • 2018 के चुनाव में- 6 अक्टूबर 2018
  • 2013 चुनाव में- 4 अक्टूबर 2013
  • 2008 चुनाव में- 14 अक्टूबर 2008
  • 2003 चुनाव में- 12 अक्टूबर

साल 2018 में चुनाव प्रक्रिया इस तरह हुई

छह अक्टूबर को आयोग ने चुनाव तारीख का ऐलान किया। मप्र में दो नवंबर से नौ नवंबर 2018 तक नामांकन पत्र भरे गए। 28 नवंबर को वोटिंग एक सिंगल फेस में हुई और मतगणना 13 दिसंबर होकर रिजल्ट जारी हुए और चुनाव प्रक्रिया संपन्न हुई। क्योंकि साल 2018 में मिजोरम की विधानसभा का कार्यकाल 16 दिसंबर 2018 में खत्म हो रहा था, इसलिए पूरी प्रक्रिया 13 दिसंबर 2018 तक करने का लक्ष्य चुनाव आयोग ने तय किया था। पूरी चुनाव प्रक्रिया में 66 दिन लगे।

कर्नाटक में इस तरह 46 दिन में हुई प्रक्रिया

कर्नाटक में विधानसभा का कार्यकाल 24 मई तक था। यहां आयोग ने 29 मार्च को चुनाव की घोषणा की और रिजल्ट 13 मई घोषित कर दिया। इस तरह पूरी चुनाव प्रक्रिया आयोग ने 46 दिन में पूरी कर दी थी।

शहरी मतदाताओं को छुट्‌टी नहीं लोकतंत्र का त्योहार मनाना चाहिए- रावत

शहरी विधानसभाओं में कम वोटिंग और ग्रामीण में अधिक वोटिंग के कारण बताते हुए रावत कहते हैं कि शहरी मतदाता अभी भी इसे एक छुट्‌टी का दिन मानते हैं, बाकी काम बंद होने के कारण यह सोच में आ जाता है। लेकिन ग्रामीण मतदाता रोज की अपनी दिनचर्या को जीता है और वह इसी दिनचर्या से समय निकाल कर वोट देने जाता है। दरअसल यह लोकतंत्र का त्योहार, उत्सव है और इसे इसी रूप में मनाना चाहिए और अपने साथ आस-पास के लोगों को भी बोलना चाहिए चलो वोट देने चलते हैं। इसी मानसिकता से वोटिंग प्रतिशत बढ़ेगा। आयोग लगातार इसी पर काम कर रहा है और लक्ष्य हमेशा सौ फीसदी वोटिंग का ही होता है। इसलिए दिव्यांग, बुजुर्गों को घर से मतदान की सुविधा भी दी जा रही है।

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