CHHARTARPUR. जिले के बकस्वाहा डायमंड प्रोजेक्ट के विवादों में घिरने के चार साल बाद आदित्य बिड़ला ग्रुप की कंपनी एस्सेल माइनिंग लिमिटेड ने अपने हाथ खींच लिए हैं। ग्रुप के डायरेक्टर ने खनिज संसाधन विभाग के संचालक को पत्र भेजकर प्रोजेक्ट को सरेंडर करने की इच्छा जताई है। सरकार ने आदित्य बिड़ला 4 को वन और पर्यावरण की अनुमति के लिए तीन साल का समय दिया था, यह अवधि भी खत्म हो गई( इसके बाद भी ग्रुप ने प्रोजेक्ट के एक्सटेंशन के लिए आवेदन नहीं किया, बल्कि सरेंडर करने के लिए पत्र लिखा है। लगभग 6 महीने पहले केंद्रीय वन और पर्यावरण मंत्रालय ने बकस्वाहा हीरा परियोजना के लिए जरूरी 382 हेक्टेयर वन भूमि का लैंड यूज चेंज करने का प्रस्ताव खारिज कर दिया था। जिसके बाद यह प्रोजेक्ट खटाई में पड़ गया था।
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हीरों की बिक्री से सरकार को मिलना थी 41.55% राशि
आदित्य बिरला ग्रुप ने 10 दिसंबर 2019 की नीलामी में अधिकतम बोली लगाकर 364 हैक्टेयर की बंदर हीरा परियोजना हसिल की थी। जीएसआई ने बकस्वाहा के बंदर डायमंड ब्लॉक में 20 मिलियन कैरेट हीरा भंडार होने की संभावना जताई थी। इस पर राज्य सरकार ने बंदर परियोजना का अपसेट मूल्य 56 हजार करोड़ रुपए आंकते हुए बेस रायल्टी 150 प्रतिशत रखी थी। नीलामी में सरकार को 1.50 फीसदी TS के साथ 30,05 प्रतिशत प्रीमियम भी मिलना था। यागी राज्य सरकार को हीरों की बिक्री रशि से कुल 4.55 प्रतिशत राशि मिलना थी।एक अनुमान के मुताबिक राज्य शासन को इस खदान से लीज अवधि में करीब।6 हजर करोड़ का प्रीमियम और 6 हजार करोड़ की रॉयल्टी के रूप में मिलने का अनुमान लगाया गया था। इसके साध ही खान की लीज की अवधि 50 साल के लिए दिए जाने पर भी सहमति जताई गई थी। सर्वाधिक बोली लगाने पर सरकार ने बिरला ग्रुप की कंपनी को एलओआई जारी करते हुए तीन साल के अंदर वन और पर्यावरण और राजस्व की अनुमति प्राप्त करने के विर्देश दिए।
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परियोजना का 2.15 लाख पेड़ कटने के कारण विरोध
केंद्रीय वन और पर्यावरण मंत्रालय ने पहले ही कह दिया था कि केन-बेतवा परियोजना के पूरी होने के बाद उससे टाइगर रिजर्व और बाघों पर पड़ने वाले प्रभाव अध्ययन रिपोर्ट मिलने के बाद ही बकस्वाहा हीरा परियोजना पर विचार किया जाएगा। इस आधार पर माना जा रहा है कि केन-बेतवा प्रोजेक्ट के पूरे होने तक बकस्वाहा हीरा परियोजना अटक गई है। बिड़ला ग्रुप में इन्हीं तथ्यों को ध्यान में रखते हुए कदम पीछे खींच लिए हैं। केन-बेतवा परियोजना के तहत लाखों पेड़ डूब क्षेत्र में आ रहे हैं। ऐसे में बकस्वाहा हीरा परियोजना में भी इसी इलाके के 2.6 लाख पेड़ों की और बलि दी जा रही थी। कोरोना के समय ऑक्सीजन की कमी और ऐसे हालत में हीरों के लिए लाखों पेड़ों की कटाई होने का खुलासा होने के चलते यह परियोजना विवादों में रही है।
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कंपनी ने प्रोजेक्ट को सरेंडर करने पर सहमति जताई
खनिज संसाधन विभाग भोपाल के संचालक राजीव रंजन मीना ने बताया कि बिड़ला ग्रुप के द्वारा प्रोजेक्ट को आगे नहीं बढ़ाए जाने का पत्र जारी करने के बाद एलओआई को निरस्त करने के लिए शासन का प्रस्ताव भेजा गया है। कंपनी तीन साल में वैध अनुमति प्राप्त करने में असफल रही है। बिड़ला ग्रुप को अभी और दो साल का एक्सटेंशन मिल सकता था, लेकिन कंपनी ने प्रोजेक्ट को सरेंडर करने पर सहमति जताई है। इसके चलते शासन को प्रस्ताव भेजा गया है। शासन के निर्णय के आधार पर आगे की कार्रवाई की जाएगी।
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21 साल पहले मिली थी अनुमति
बकस्वाहा में हीरा खोजने के लिए रियो टिंटे कंपनी को वर्ष 2002 में रिकनसेंस से की अनुमति मिली थी। डायमंड के कारोबार के लिए मशहूर ऑस्ट्रेलियाई कंपनी ने पर्यावरण मंत्रालय से खनन की अनुमति नहीं मिलने पर 2016 में इससे खुद को अलग कर लिया था।