गंगेश द्विवेदी, RAIPUR. छत्तीसगढ़ में शराबबंदी को लेकर अजीबोगरीब हालात बने हुए हैं। 2018 के चुनाव में कांग्रेस के जनघोषणा पत्र में 36 प्रमुख बिंदुओं में शराबबंदी एक बड़ा वादा था, लेकिन सरकार का कार्यकाल खत्म होने को शराबबंदी पर पहल करना तो दूर, खुद आबकारी मंत्री कवासी लखमा शराब की पैरवी में उतर आए हैं, लखमा साफ कहते है कि आदिवासी पूजा-पाठ में महुआ शराब का इस्तेमाल करते हैं। ऐसे में बीजेपी को 2023 के चुनाव के लिए एक बड़ा मुद्दा मिल गया है। अब स्थानीय नेताओं से लेकर बीजेपी का शीर्ष नेतृत्व कांग्रेस पर वादाखिलाफी का आरोप लगा रहे हैं। वहीं कांग्रेस इन आरोपों से बचती नजर आ रही है। कांग्रेस के लिए यह मामला अब गले की हड्डी बन गया है।
इकॉनोमिक रिसर्च एजेंसी ICRIER और लॉ कंसल्टिंग फर्म PLR Chambers की रिपोर्ट के मुताबिक सबसे ज्यादा शराब की खपत वाले राज्यों में छत्तीसगढ़ का नाम सबसे पहले आता है। लगभग 3 करोड़ जनसंख्या वाले प्रदेश छत्तीसगढ़ की तकरीबन 35.6 फीसदी आबादी शराब का सेवन करती है। इसमें 32 फीसदी आबादी आदिवासियों की है। आदिवासी समाज से आने वाले आबकारी मंत्री कवासी लखमा भी खुलकर शराब बंद नहीं करने की बात कहते हैं।
शराबबंदी और आदिवासी सीटों का गणित
जानकारों की मानें तो प्रदेश की 32 फीसदी आदिवासी आबादी 29 आरक्षित व 21 अन्य विधानसभा क्षेत्रों में निवास करती है। बस्तर और सरगुजा दो बड़े आदिवासी बहुल संभाग हैं। बस्तर की 12 सीटों में से 11 आदिवासियों के लिए आरक्षित है, वहीं सरगुजा संभाग की 14 में से 9 सीटें आदिवासियों के लिए आरक्षित हैं, वहीं राज्य के दूसरे संभागों में बाकी की नौ आरक्षित सीटें है। 21 सीट ऐसी है जहां आदिवासियों की आबादी इतनी है कि वे चुनाव के परिणाम को प्रभावित कर सकते हैं, यानि प्रदेश की 90 में 50 सीटों में रहने वाले आदिवासियों को अपने लिए 5 लीटर शराब रोज बनाने और पीने का अधिकार है। सरकार शराबबंदी करती है तो उसका सीधा असर दिखेगा।
छत्तीसगढ़ में शराब सरकारी दुकानों में बिक रही है। इन दुकानों के जरिए 2 हजार करोड़ घोटाले का केस प्रवर्तन निदेशालय (ED)देख रही है, लेकिन जानकार की मानें तो यह घोटाला करीब 20 हजार करोड़ का बताया जा रहा है, वहीं आदिवासी बहुल इलाकों में अब आदिवासी शराब बनाकर खुले बाजार में बेचने लगे हैं, जिससे उनकी अच्छी कमाई हो जाती है।
सरकार को मिलता है अच्छा राजस्व
साल दर साल शराब से सरकार को मिलने वाले राजस्व में इजाफा हुआ है। छत्तीसगढ़ में पहले की बीजेपी सरकार ने साल 2017 में प्रदेश की आबकारी नीति में परिवर्तन करते हुए ठेका सिस्टम को खत्म कर दिया था। नीति में बदलाव के वक्त कहा गया था कि सरकार सभी दुकानों को अपने नियंत्रण में लेकर धीरे- धीरे बंद करती चली जाएगी, लेकिन सत्ता बदली और कमान कांग्रेस के हाथों में चली गई। चुनाव से पहले शराबबंदी का वादा करने वाली कांग्रेस ने सरकार बनने वादे को भूल करके शराब की बिक्री को बढ़ावा दिया। इसी का परिणाम है कि हर साल शराब से मिलने वाले राजस्व में लगातार इजाफा हो रहा है, और सरकार इसे बंद करने के मूड में दिखाई नहीं देती।
शराब बिक्री से सरकार को हुई अच्छी कमाई
1. साल 2015-16 में 3338.40 करोड़ रुपए
2. साल 2016-17 में 3443.51 करोड़ रुपए
3. साल 2017-18 में 4050 करोड़ रुपए
4. साल 2018-19 में 4489.02 करोड़ रुपए
5. साल 2019-20 में 4952.36 करोड़ रुपए
6. साल 2020-21 में 4635.80 करोड़ रुपए
7. साल 2022-23 में 6000.00 करोड़ रुपए
समय-समय पर बदली गई आबकारी नीति
छत्तीसगढ़ राज्य गठन के समय मध्यप्रदेश की शराब नीति की तरह तैयार की गई थी, जिसे समय-समय पर बदला गया। इस शराब नीति को छत्तीसगढ़ आबकारी अधिनियम नाम दिया गया। साल 2017 में बीजेपी शासनकाल के दौरन इस नीति में परिवर्तन करते हुए ठेका सिस्टम को खत्म कर दिया गया। सरकार ने खरीद-बिक्री,आयात-निर्यात जैसे सभी कार्य को अपने अधीन कर लिया। सारे फैसले सरकार के हाथ में थे। सरकार के आदेश पर जिला कलेक्टर द्वारा निर्देशित करने का नियम बना दिया गया है।
छत्तीसगढ़ आबकारी अधिनियम जिसे अधिनियम 1915 के तहत रखा गया है। दिसंबर 2000 में मध्यप्रदेश के अधिनियम जैसे ही छत्तीसगढ़ का अधिनियम तैयार किया गया था। 16 साल बाद पुराने अधिनियम में संशोधन करते हुए छत्तीसगढ़ की शराब नीति राज्य सरकार के अधीन हो गई। इसमें शराब की खरीद बिक्री, ट्रांसपोर्टेशन, जैसे सभी कार्य सरकार के अधीन किया गया है। इसके साथ ही शराब की दर तय करने का काम भी सरकार के पास है, बिक्री में ठेका सिस्टम को निरस्त कर दिया गया है।
देशी-विदेशी मदिरा पर किस तरह का लगता है शुल्क?
नए अधिनियम के अनुसार छत्तीसगढ़ सरकार देशी-विदेशी और बीयर पर अलग-अलग तरह का टैक्स चार्ज करती है। जिसमें पेटी में प्रति प्रुफ लीटर और बल्क लीटर में ड्यूटी दर निर्धारित किया गया है। देसी शराबों से जिसमें मसाला प्लेन और रासी पर 68 रुपए प्रति प्रुफ लीटर का चार्ज लिया जाता है। विदेशी शराब पर 700/ पर 85 रुपए प्रुफ लीटर, 701/- से 1000/ तक 100 रुपए प्रति प्रुफ लीटर, 1001/ से 1500 तक 115 रुपए प्रति प्रुफ लीटर, 1501 से 2000 तक 130 रुपए प्रति प्रुफ लीटर, 2001/ से और उससे अधिक में 150 रुपए प्रति प्रुफ लीटर ड्यूटी चार्ज किया जाता है। विदेशी मदिरा, माल्ट बियर पर 22 रुपए प्रति बल्क लीटर ड्यूटी चार्ज किया जाता है।
छत्तीसगढ़ में आम आदमी के लिए क्या है नियम
छत्तीसगढ़ में अधिनियम के अनुसार शराब में आयात निर्यात करने के अलग-अलग नियम बनाए गए हैं। अगर कोई वाहन सरकारी शराब को इधर से उधर लेकर जाता है तो उसे आबकारी विभाग से जारी पास का उपयोग किया जाना जरूरी है। बिना पास के वाहन शराब की ट्रांसपोर्टिंग करता है तो उसे अवैध माना जाएगा। इसके साथ ही प्रति व्यक्ति को (जो बालिग हो) छत्तीसगढ़ में उसे पांच लीटर तक शराब नियमानुसार रख सकता है। इसके ऊपर एक पॉव भी शराब पाए जाने पर उसके ऊपर आबकारी की अलग-अलग धाराओं के तहत दोषी बनाया जा सकता है। दोषी को एक साल तक सजा और 2500 से एक लाख तक जुर्माना का प्रावधान है।
आदिवासी परिवार को पांच लीटर शराब बनाने की छूट
प्रदेश में 14 जिले पूर्ण अनुसूचित क्षेत्र और 13 जिले आंशिक रूप से अनुसूचित क्षेत्र हैं। प्रदेशभर में आदिवासियों की आबादी 31.76 लाख है। प्रदेश के 146 ब्लाक में से 85 ब्लॉक आदिवासी उपक्षेत्र हैं। इन ब्लॉकों में एक आदिवासी परिवार को पांच लीटर शराब बनाने की छूट है। इस तरह पांच लाख परिवार में 25 लाख लीटर शराब तैयार हो जाती है। यह सीमा एक समय की है। यानी आदिवासी चाहे तो रोज पांच लाख लीटर शराब बना सकते हैं।
इंदिरा गांधी के समय बना नियम
पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 1976 में संसद में आदिवासियों के लिए यह कानून बनवाया था। उस समय महुए से शराब बनाने के मामले में पुलिस कार्रवाई करती थी। आदिवासी परंपरा में महुए की शराब का महत्व होता है।
शराबबंदी बना मुद्द
2018 विधानसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस ने अपने घोषणा पत्र में कहा था कि राज्य में शराबबंदी की जाएगी। कांग्रेस सरकार को चार साल से ज्यादा समय हो गया है। इस बीच सरकार के मंत्रियों की शराबबंदी के सवाल पर समय-समय पर जवाब देते रहे हैं। वहीं, विपक्ष लगातार शराब बंदी के वादे को लेकर सरकार घेरने की कोशिश कर रहा है। राज्य में शराबबंदी को लेकर अभी कोई फैसला नहीं लिया गया है।
ठोस प्रयास नहीं कर पाई कांग्रेस
कांग्रेस ने अपने चुनावी वादे शराबबंदी के लिए कोई ठोस प्रयास नहीं किया। माहौल जरूर बनाया गया, वरिष्ठ विधायक सत्यनारायण शर्मा के नेतृत्व में अध्ययन समिति बनी, अध्ययन समिति में बीजेपी के विधायकों भी शामिल किया गया था लेकिन कांग्रेस आरोप लगाती है कि बीजेपी के लोग समिति की किसी बैठक में नहीं आए और न ही अध्ययन दल में शामिल हुए। बिहार, गुजरात और असम का अध्ययन करने भी टीमें गई लेकिन आने के बाद कोई परिणाम नहीं आया। कम से कम इस समिति की रिपोर्ट और अध्ययन दल की रिपोर्ट सावर्जनिक होनी चाहिए थी।
कांग्रेस दोषी लेकिन बीजेपी को भी मुद्दा बनाने का अधिकार नहीं
सामाजिक मामलों के जानकार गौतम बंदोपाध्याय कहते हैं कि शराब सामाजिक बुराई है इसका खामियाजा आदमी के स्वास्थ्य के साथ परिवार को खासतौर पर महिलाओं और बच्चों को भुगतना पड़ता है, परिवार आर्थिक तंगी से भी जूझता है, इसे बंद करने के लिए लंबे और सतत प्रयास की जरूरत है। गौतम बंदोपाध्याय साफ कहते हैं कि अपने वादे को पूरा नहीं कर पाने के लिए कांग्रेस दोषी है, लेकिन बीजेपी को भी इसमें आरोप लगाने का अधिकार नहीं है। 15 साल के कार्यकाल में प्राइवेट ठेके के साथ गांव-गांव तक कोचियों का नेटवर्क था। चाहते वे इतने दिनों में धीरे-धीरे करके दुकानों को आधी से कम कर सकते थे, लेकिन उनके कार्यकाल में शराब बेचने के काम का सरकारी करण हो गया।
शराबबंदी कभी नहीं होगी : लकमा
कांग्रेस सरकार के वादे के बीच शराबबंदी को लेकर आबकारी मंत्री कवासी लखमा का बयान भी हैरान करने वाला है। मंत्री लकमा का कहना है कि 5 साल से मैं सरकार में मंत्री हूं, जहां भी जाता हूं, मुझे शराब दुकान खोलने के लिए आवेदन मिलते हैं, लेकिन शराब दुकान बंद करने का एक भी आवेदन नहीं मिला है। उन्होंने कहा कि प्रदेश में शराबबंदी कभी नहीं होगी। उन्होंने कहा कि जिस दिन छत्तीसगढ़ में शराब बंद होगी, बड़े लोग बिहार-झारखंड से ले आएंगे। गुजरात में घर में पहुंचाकर शराब दी जा रही है। जेल कौन जाएगा? गरीब आदमी, गरीब आदमी पैसा नहीं पटाता है, तहसीलदार से बात नहीं करता, थानेदार बात नहीं सुनता है। हमको ऐसा राजनीति नहीं चाहिए, जिसमें गरीब जेल जाए और दूसरी शराब पीकर मरना हमको पसंद नहीं है।