संजय गुप्ता, INDORE. इंदौर विधानसभा तीन से तीन बार के विधायक और पांच बार चुनाव लड़ चुके कांग्रेस नेता अश्विन जोशी आम आदमी पार्टी के संपर्क में हैं। इसका दावा खुद आप की प्रदेश अध्यक्ष रानी अग्रवाल ने की है और उन्होंने कहा कि पार्टी में हमारे साथ कई लोगों के आने का सिलसिला चल रहा है और अश्विन जोशी से भी बात चल रही है। वहीं जोशी से जब द सूत्र ने बात की तो उन्होंने कहा कि आज गणेश चतुर्थी का मौका है। अभी मीडिया से बात नहीं करूंगा।
जोशी ने ऊपर बोल दिया है या तो मैं या फिर बागड़ी, पिंटू नहीं
सूत्रों के अनुसार कुछ दिन पहले अश्विन जोशी ने भोपाल स्तर पर कांग्रेस के आलाकमान को स्पष्ट शब्दों में कह दिया कि अरविंद बागड़ी को टिकट मिलता है तो एक बार मैं उन्हें सपोर्ट करने के लिए तैयार हूं, लेकिन अपने चचेरे भाई पिंटू जोशी को सपोर्ट नहीं कर सकता हूं। उन्हें टिकट मिला तो मैं फिर अपने हिसाब से फैसला करूंगा। वहीं पार्टी ने जब पिंटू के लिए सपोर्ट की बात कही तो उनकी बात 'आप' से शुरू हो गई। सूत्रों के अनुसार आप के दिल्ली के दो वरिष्ठ नेताओं के साथ अश्विन की मुलाकात भी हो गई है और लगातार बात चल रही है। इसलिए आप ने भी इंदौर के प्रत्याशी की घोषणा अभी रोक कर रखी है, वह बड़े शहरों में कुछ दमदार प्रत्याशियों की तलाश में हैं, जिससे राजनीतिक माहौल बनाया जा सके।
पिंटू के लिए क्यों तैयार नहीं, उधर पिंटू बोल रहे भाई अब अपना वादा निभाएं
महेश जोशी के बाद कांग्रेस ने 1998 में उनके भतीजे अश्विन जोशी को टिकट दिया, वह 1998, 2003 और 2008 में लगातार तीन बार चुनाव जीते, लेकिन साल 2013 में ऊषा ठाकुर से और फिर 2018 में बीजेपी के आकाश विजयवर्गीय से चुनाव हारे। अश्विन को लगता है कि पिंटू ने उन्हें चुनाव में सपोर्ट नहीं किया। वहीं पिंटू ने द सूत्र से कहा कि वह पांच चुनाव से लगातार अपने भाई को सपोर्ट कर रहे हैं और लगातार मेरा ही नाम विधानसभा टिकट के लिए चल रहा है। बीते चुनाव में भी भाई के लिए मैं पीछे हट गया और उनकी मदद की, उन्होंने भी वादा किया था कि अगले चुनाव में वह मुझे सपोर्ट करेंगे, तो फिर अब वादा निभाने की बारी बड़े भाई अश्विन की है।
दिग्गी राजा ने कराया था समझौता
अश्विन जोशी 63 साल के हैं और विधानसभा सीट नंबर 3 से इस बार भी दावेदार हैं। लेकिन पिछले चुनाव में दोनों चचेरे भाईयों के बीच टिकट को लेकर समझौता हुआ था। पिछले चुनाव में भी महेश जोशी ने बेटे पिंटू के लिए सिफारिश कर दी थी। मामला दिग्विजयसिंह तक पहुंचा तब यह सुलह हुई थी कि 2018 का चुनाव अश्विन लड़ लें, अगली बार सीट को छोड़ना पड़ सकता है। मुश्किल यह हो गई है कि अश्विन सशर्त टिकट मिलने के बाद हार भी गए।
दोनों भाई में लड़ाई हुई तो कांग्रेस खाते से सीट जाना तय
अश्विन जोशी यहां से मैदानी पकड़ रखते हैं, यदि वह दूसरी पार्टी से उतरते हैं या फिर कांग्रेस के लिए किसी भी तरह से खिलाफ होते हैं तो कांग्रेस के जो भी प्रत्याशी होंगे उनके लिए मुश्किल हो जाएगी। विधानसभा तीन सबसे छोटी विधानसभा है इंदौर की, ऐसे में यहां हार-जीत का खेल पांच-छह हजार वोट का ही होता है, इसलिए थोड़े से वोट भी कटे तो किसी भी दल के लिए मुश्किल है।