संजय गुप्ता, INDORE. इंदौर में रामनवमीं के दिन 30 मार्च को श्री बेलेश्वर महादेव झूलेलाल मंदिर में हुए बावड़ी हादसे में 36 मौतों की जान गंवाने के मुद्दे पर मंगलवार को हाईकोर्ट इंदौर बेंच में सुनवाई हुई। इसमें हाईकोर्ट ने शासकीय अधिवक्ता से पूछा कि मार्च में जब एफआईआर हुई थी फिर जांच का क्या हुआ ? चालान क्यों अभी तक पेश नहीं हुआ ? साथ ही मृतकों को मुआवजा राशि शासन द्वारा दिए जाने पर सवाल पूछा कि इसकी वसूली मंदिर ट्रस्ट से क्यों नहीं हुई ? हाईकोर्ट ने सभी पक्षकारों को 4 सप्ताह में जवाब देने के साथ ही मजिस्ट्रियल जांच रिपोर्ट, पुलिस जांच की स्टेटस रिपोर्ट ये सभी जानकारी मांगी है। न्यायमूर्ति विवेक रूसिया और न्यायमूर्ति अनिल वर्मा की डबल बेंच ने सुनवाई की।
इन्होंने लगाई है याचिका
पूर्व पार्षद महेश गर्ग और कांग्रेस नेता प्रमोद द्विवेदी ने अधिवक्ता मनीष यादव और अधिवक्ता अदिती मनीष यादव के माध्यम से 2 अलग-अलग जनहित याचिका दायर कर उच्च न्यायालय से हस्तक्षेप की मांग की हुई है। इसी में ये सुनवाई हुई। याचिकाकर्ता ने मामले में मृतकों को 25 लाख का मुअवाजा देने, दोषियों पर आपराधिक कार्रवाई होने, सीबीआई की जांच होने ये सभी मांग की हैं। हालांकि कोर्ट ने कहा कि सीबीआई जांच की अभी जरूरत नहीं है, पहले ये सभी रिपोर्ट और क्या जांच की जा रही है, ये सभी जवाब देखेंगे।
प्रशासनिक और नेताओं का दबाव है
याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता यादव ने साफ कहा कि इस पूरे मामले में जांच सही नहीं हो रही है, क्योंकि प्रशासनिक दबाव है और राजनीतिक हस्तक्षेप के चलते भी दबाव है। हालत ये है कि मार्च में घटना होने और केस दर्ज होने के बाद भी पुलिस ने एक भी गिरफ्तारी तक नहीं की है। इस पर हाईकोर्ट ने भी आश्चर्य जताया कि पुलिस कर क्या रही है ? उल्लेखनीय है कि इसमें मंदिर ट्रस्ट के अध्यक्ष और सचिव दोनों पर ही केस दर्ज हुए थे, लेकिन पुलिस ने अभी तक कोई गिरफ्तारी नहीं की।
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द सूत्र पहले ही बता चुका मजिस्ट्रियल जांच में कुछ नहीं है
उल्लेखनीय है कि इस मामले में जिला प्रशासन ने तत्कालीन अपर कलेक्टर डॉ. अभय बेड़ेकर की कमेटी बनाकर मजिस्ट्रियल जांच रिपोर्ट बनवाई थी। लेकिन ये रिपोर्ट अभी तक दबी हुई और इसे सार्वजनिक नहीं किया गया और ना ही हाईकोर्ट में पुटअप किया गया है, लेकिन द सूत्र ने इसका पहले ही खुलासा कर दिया था कि इस जांच रिपोर्ट में 36 मौतों का कोई सीधे दोषी नहीं है। इसमें केवल मंदिर ट्रस्ट की जिम्मेदारी और निगम के चुनिंदा अधिकारियों की जिम्मेदारी मानी है, जिन्होंने अपने बावड़ी सर्वे में इस बावड़ी को चिन्हित ही नहीं किया था और ना ही अतिक्रमण नोटिस पर कोई एक्शन लिया था। इसमें सीधे तौर पर किसी को हादसे के लिए जिम्मेदार नहीं माना गया है।