TMC सांसद महुआ मोइत्रा पर पैसे लेकर संसद में सवाल पूछने के मामले में सुनवाई गुरुवार को, जानें क्या पहले भी हो चुका है ऐसा

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Vikram Jain
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TMC सांसद महुआ मोइत्रा पर पैसे लेकर संसद में सवाल पूछने के मामले में सुनवाई गुरुवार को, जानें क्या पहले भी हो चुका है ऐसा

BHOPAL. इस समय देश की सियासत में टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा का पैसे लेकर संसद में सवाल पूछने का मामला गर्माया हुआ है। इस मामले में संसद की एथिक्स कमेटी यानी आचार समिति गुरुवार 26 अक्टूबर को सुनवाई करने वाली है। दरअसल बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे ने महुआ मोइत्रा पर कारोबारी दर्शन हीरानंदानी से पैसे और गिफ्ट लेकर लोकसभा में प्रश्न पूछने का आरोप लगाया है। निशिकांत दुबे ने लोकसभा स्पीकर ओम बिरला को लिखित में महुआ की शिकायत की है। सवाल यह है कि क्या सांसद पैसे लेकर संसद में सवाल पूछते हैं? यह सब जानने के लिए हमें कुछ पीछे जाना होगा।

2005 में सांसदी गंवा चुके हैं 11 सांसद

देश की संसद में पैसे के बदले सवाल पूछने का मामला नया नहीं है। इससे पहले भी 11 सांसद ऐसा कर चुके हैं और इसकी सजा भी उन्हें मिली थी। उन सांसदों को अपनी सांसदी गंवाना पड़ी थी। मामला 2005 का है। तब इस आरोप में बीजेपी के 6, कांग्रेस का 1, बीएसपी के 3 और आरजेडी का एक सांसद आरोपी थे। तब हुआ यह था कि पैसे के बदले सवाल को लेकर एक वीडियो सामने आया था। इसके तुरंत बाद कांग्रेस सांसद पवन कुमार बंसल के नेतृत्व में जांच कमेटी बना दी गई थी। इसके बाद दस दिन में ही लोकसभा और राज्यसभा में वोटिंग कराकर 11 सांसदों का निष्कासन कर दिया गया था।

मामले में फंसे थे ये सांसद

2005 में पैसे के बदले सवाल मामले के समय सोमनाथ चटर्जी लोकसभा स्पीकर थे। कांग्रेस नेता प्रणब मुखर्जी ने मुद्दे को लोकसभा में उठाया था। तत्कालीन पीएम मनमोहन सिंह भी यही प्रस्ताव राज्यसभा में लेकर आए थे। उस मामले में बीजेपी के वाईजी महाजन, छत्रपाल सिंह लोढ़ा, अन्नासाहेब एमके पाटिल, चंद्र प्रताप सिंह, प्रदीप गांधी, सुरेश चंदेल, बीएसपी के नरेंद्र कुमार खुशवा, लालचंद्र कोल और राजा रामपाल, कांग्रेस के रामसेवक सिंह और आरजेडी मनोज कुमार की सदस्यता चली गई थी। इनमें छत्रपाल सिंह लोढ़ा राज्यसभा सदस्य थे। अन्य सभी लोकसभा के सांसद थे।

बीजेपी ने अपने सांसदों को बचाने के लिए लगाया था जोर

जो बीजेपी आज टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा पर हमलावर है, वही बीजेपी 2005 के मामले में अपने सांसदों को बचाने में जुटी थी, लेकिन उन्हें बचा नहीं पाई थी। बीजेपी ने वोटिंग का बहिष्कार किया था। विपक्ष के तत्कालीन नेता लालकृष्ण आडवाणी ने उस वोटिंग को कंगारू कोर्ट तक कह दिया था।

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