BHOPAL. इस बार के विधानसभा चुनाव में भी बीजेपी नई स्ट्रेटजी के साथ चुनाव मैदान में उतरी है। बीजेपी की रणनीति यह है कि कद्दावर मंत्रियों और सांसदों को कठिन सीटों पर उतारकर उनसे पूरे क्षेत्र के मतदाताओं को प्रभावित किया जाए, पर इन दिग्गजों की उलझन यह है कि एक तो उन्हें कठिन सीट दी गई है, जिसमें वे अपना राजनैतिक कौशल प्रयोग में ला रहे हैं, चुनाव हारे तो दामन में बदनुमा दाग लगने का रिस्क है। ऐसे में वे अपनी सीट के इतर बाकी के क्षेत्र में ध्यान दें तो कैसे दें।
ये हैं वे दिग्गज
बीजेपी ने मध्यप्रदेश में केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर, केंद्रीय मंत्री फग्गन सिंह कुलस्ते, केंद्रीय मंत्री प्रहलाद सिंह पटेल, राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय, सांसद रीति पाठक, सांसद राकेश सिंह, सांसद गणेश सिंह और सांसद राव उदय प्रताप सिंह को विधानसभा उम्मीदवार बनाया है। अब यह जानिए कि किसके सामने क्या चुनौती है
नरेंद्र सिंह तोमर
नरेंद्र सिंह तोमर को कठिन सीट दिमनी से मैदान में उतारा गया है। इस सीट पर आखिरी बार साल 2008 में बीजेपी जीत पाई थी। 2013 में बसपा तो 2018 में कांग्रेस के खाते में यह सीट गई थी। क्षेत्र में दलित वोटर्स का अच्छा खासा प्रभाव है। ऐसे में तोमर इस उलझन में हैं कि वे अपनी सीट पर ज्यादा मेहनत करें कि बाकी के सराउंडिंग एरिया में।
कैलाश विजयवर्गीय
कैलाश विजयवर्गीय को इंदौर 1 सीट से उम्मीदवार बनाया गया है। हालांकि इंदौर शहरी क्षेत्र है और ऐसा माना जाता है कि शहरी क्षेत्र में बीजेपी का कोर वोटर उसकी पूरी शक्ति है, हालांकि 2018 के चुनाव में बीजेपी का प्रदर्शन शहरों में भी उतना अच्छा नहीं रहा था। विजयवर्गीय जुझारू नेता हैं वे इंदौर की तीसरी सीट पर चुनौती स्वीकार कर चुके हैं, वे अपनी सीट रमेश मेंदोला का देकर महू से भी चुनाव जीत चुके हैं। अपने बयानों से वे पूरे इंदौर की राजनीति को प्रभावित तो कर रहे हैं लेकिन कहीं उनके बयान ही रिजल्ट पर उल्टा असर न डाल दें इसका भी रिस्क है।
प्रहलाद सिंह पटेल
प्रहलाद सिंह पटेल को महाकौशल क्षेत्र में बीते चुनाव में पार्टी को जो नुकसान हुआ, उसकी भारपाई के लिए चुनाव मैदान में उतारा गया है। प्रहलाद पटेल वैसे तो चैलेंज एक्सेप्ट करने वाले नेता हैं। वे छिंदवाड़ा में कमलनाथ तक को चुनौती दे चुके हैं और मणिपुर में जीत दिलाकर पूर्वोत्तर में पार्टी के द्वारा खोलने का सहरा उनके सिर बंध चुका है। अभी वे अपनी परंपरागत सीट नरसिंहपुर से चुनाव मैदान में उतारे गए हैं। यहां से उनके भाई जालम सिंह पटेल वर्तमान विधायक हैं। सराउंडिंग एरिया की बात की जाए तो पटेल परिवार का यहां अच्छा खासा दबदबा है। भतीजे मोनू की आकस्मिक मृत्यु से युवा वर्ग जरूर इनसे छिटक जाए लेकिन माना यही जा रहा है कि ये अपने पूरे क्षेत्र में चुनाव को प्रभावित जरूर कर पाएंगे।
फग्गन सिंह कुलस्ते
फग्गन सिंह कुलस्ते को करीब 3 दशकों बाद पार्टी ने विधानसभा मैदान में उतार दिया है। मंडला और डिंडोरी में बीते कई चुनावों से पार्टी का प्रदर्शन कमतर ही होता गया है। लोकसभा में पब्लिक भले ही प्रचंड मतों से विजय दिलाती रही लेकिन विधानसभा में बीजेपी को खास तवज्जो नहीं मिल पा रही। फग्गन सिंह कुलस्ते को अपनी सीट के साथ-साथ पूरे क्षेत्र में काफी चुनौतियां मिलनी तय हैं। जयस और गोंगपा के साथ-साथ कांग्रेस से उनका बहुकोणीय मुकाबला होना है।
राकेश सिंह
जबलपुर सांसद राकेश सिंह को जबलपुर पश्चिम से चुनाव मैदान में उतारा गया है, उन्हें अपने राजनैतिक जीवन में मिला अब तक का सबसे कठिन टास्क सौंप दिया गया है। इस क्षेत्र से पूर्व वित्तमंत्री तरुण भनोत उनके सामने हैं। जिनकी 10 साल में इलाके में अच्छी खासी पकड़ हो चुकी है। जरूरतमंद लोगों की मदद के लिए सदैव तत्पर रहने वाले तरुण भनोत से जीतने में सांसद सिंह को ऐड़ी चोटी का जोर लगाना पड़ेगा, उधर उन्हें भितरघात का भी डर है। पूर्व मंत्री हरेंद्रजीत सिंह बब्बू, नगर अध्यक्ष प्रभात साहू, बीजेवायएम के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अभिलाष पांडे सभी के सभी पर यह शक है कि वे सांसद की राहों में कांटे बिछाने वाले हैं। अब इन हालातों में सांसद सिंह अपना क्षेत्र देखेंगे या सराउंडिंग एरिया अंदाजा लगाया जा सकता है।
रीती पाठक
सीधी में पेशाब कांड के बाद यहां पार्टी की जमकर किरकिरी हुई थी, आरोपी विधायक केदारनाथ शुक्ला का समर्थक था। इस कांड के चलते केदारनाथ शुक्ला की टिकट काटकर सांसद रीति पाठक को मैदान में उतारा गया है। पाठक के लिए सबसे बड़ी चुनौती तो पार्टी विधायक शुक्ला ही रहेंगे। रीति पाठक को इलाके के ब्राम्हण वर्ग को मनाने मेहनत करनी पड़ रही है। ब्राम्हण वर्ग पेशाब कांड के बाद सरकार की कार्रवाई के तरीके से नाराज बैठा हुआ है।
राव उदय प्रताप सिंह और गणेश सिंह
इसी तरह गाडरवारा से चुनाव मैदान में उतारे गए सांसद राव उदय प्रताप सिंह और सतना से उम्मीदवार सांसद गणेश सिंह को भी विरोधियों से ज्यादा अपनों की चुनौतियां झेलनी हैं। ऐसे में वे अपनी सीटें छोड़कर सराउंडिंग एरिया में दखल दे पाएंगे इसकी गुंजाइश काफी कम है।