संजय गुप्ता, INDORE. इंदौर के राजा-महाराजाओं के स्कूल के रूप में पहचान रखने वाले डेली कॉलेज के हाईप्रोफाइल बोर्ड गवर्नर्स पर 17 करोड़ के घोटाले के आरोपों का द सूत्र द्वारा एक्सक्लूसिव खुलासा किए जाने के बाद बोर्ड सदस्यों ने चुप्पी साध ली है। वहीं इन खर्चों के रिकार्ड ( द सूत्र के पास मौजूद है दस्तावेज) से साफ होता है कि खर्चों में या तो पहले के सालों में खेल किया गया है या फिर अब खेल हुआ है।
पहले देखते हैं क्या है खर्चों के रिकार्ड में
द सूत्र के पास मौजूद खर्चों के रिकार्ड से साफ होता है कि डेली कॉलेज प्रबंधन ने साल 2021-22 के वित्तीय रिकार्ड में केवल 40 दिन स्कूल चलना बताया है औऱ् इसकी वजह कोविड काल बताई गई है। इस काल में कुल खर्च 53 करोड़ रुपए हुआ है, वहीं साल 2022-23 के वित्तीय रिकार्ड में स्कूल 220 दिन चलना बताया गया है और खर्चा 70 करोड़ रुपए से ज्यादा बताया गया है।
क्यों खर्चों पर उठ रही है उंगलियां?
1- इलेक्ट्रिसिटी खर्च- यह खर्च साल 2021-22 में जब स्कूल केवल 40 दिन चलना बताया गया है, तब एक करोड़ 6 लाख रुपए बताया गया है, लेकिन जब 220 दिन स्कूल चला तो यही बिल एक करोड़ 40 लाख रुपए था। यानि कोविड काल में औसत हर दिन का बिल 2.65 लाख रुपए और जब स्कूल खुला तो 63 हजार करीब प्रति दिन।
2- सिक्यूरिटी बिल- सिक्यूरिटी कांटेक्ट में जो भुगतान पहले मात्र 15.80 लाख रुपए खर्च हुआ वह 2022-23 में बढ़कर करीब छह गुना बढ़कर 86.70 लाख रुपए हो गया।
3- एन्युअल डे फंक्शन- साल 2021-22 में जो एन्युल डे फंक्शन मात्र 32.44 लाख रुपए में किया गया, वह साल 2022-23 में चार गुना बढ़कर एक करोड़ 25 लाख रुपए में किया गया।
4- मैस खर्च- यह मैस खर्च जो पहले 2.37 करोड़ रुपए था वह बढ़कर 2022-23 में 6 करोड़ रुपए हुआ।
5- लीगल सेल का खर्च जो करीब आठ लाख रुपए था वह बढ़कर 36 लाख रुपए हो गया।
खर्चे का यह रिकार्ड जो बोर्ड में पेश हुआ था
बोर्ड के सदस्य ने ही उठाए हैं सवाल
इन खर्चों पर सवाल किसी और ने नहीं बल्कि बोर्ड के ही गंभीर और ईमानदार सदस्य के रूप में पहचान रखने वाले संदीप पारिख के एक संदेश के बाद उठे हैं, जो उन्होंने ओल्ड डेलियंस कैटेगरी (ओडीए) के सदस्यों को भेजे हैं। पारिख ने गंभीर बात उठाई है कि कॉलेज का जो खर्च साल 2021-22 के वित्तीय साल में केवल 53 करोड़ रुपए था वह साल 2022-23 रुपए में एकदम से बढ़कर 70 करोड़ रुपए हो गया है। एक साल में ही 35 फीसदी की बढ़ोतरी खर्च में हो गई है। पारिख ने इस अप्रत्याशित खर्च की जानकारी ओडीए को दे दी है। बातया है कि 24 सितंबर को बोर्ड मीटिंग में यह खर्च वित्तीय अनुमोदन के लिए पेश हुआ है।
बोर्ड में पंवार, झाबुआ, भाटिया, लुल्ला, पाहवा, चंडोक, प्रियवत, राजवर्धन सभी सदस्य-
घोटाले के आरोप के पहले देखते हैं कि डेली कॉलेज के बोर्ड में कौन-कौन किसी कैटेगरी से सदस्य है
ओल्ड डोनर्स कैटेगरी (पुराने राजा-महाराजा है)- नरेंद्र सिंह झाबुआ और प्रियवत खिलची
न्यू डोनर्स कैटेगरी (नए दानदाता)- हरपाल सिंह (उर्फ मोनू भाटिया)
ओल्ड डोनर्स एसोसिएशन (पूर्व छात्र)- संदीप पारिख, धीरज लुल्ला
सरकारी प्रतिनिधि- विक्रम पंवार (देवास महारानी गायत्री राजे के पुत्र) और राजवर्धन नरसिंहगढ़
पैरेंटेस कैटेगरी के- संजय पाहवा और सुमित चंडोक
प्रिंसीपल बोर्ड की सचिव- गुणमीत बिंद्रा
पारिख के संदेश में क्या है
कई पुराने ओल्ड डेलियंस द्वारा उठाए गए प्रश्नों के उत्तर में मुझे यह पुष्टि करनी है कि 24/9/23 को डीसी में एक बोर्ड बैठक हुई थी जहाँ वर्ष 22-23 के लिए डीसी का वित्तीय विवरण अनुमोदन के लिए प्रस्तुत किया गया था। मैं आपका ध्यान इस गंभीर चिंता की ओर आकर्षित कर रहा हूं कि राजस्व व्यय में लगभग 17.00 करोड़ की तेजी से वृद्धि हुई है* (सत्रह करोड़) वर्ष 22-23 के दौरान (21/22 में 53.86 करोड़ से 22 में 70.48 करोड़ तक) -23) *पूंजीगत व्यय को छोड़कर।
फीस में बढ़ोतरी के बावजूद, दुर्भाग्य से 31/3/23 को नेट सरप्लस भी बड़ी चिंता का विषय बना हुआ है। स्कूल की संख्या पिछले साल की तरह ही बनी हुई है। मैंने अपनी गंभीर चिंताओं और टिप्पणियों को बोर्ड के साथ साझा किया है। मैं स्कूल के कामकाज में पारदर्शिता के लिए प्रयास करता हूं। इसलिए मैं आपसे उन मामलों में अपने सुझाव/राय साझा करने का अनुरोध करता हूं, जिन्हें स्कूल की बेहतरी के लिए लागू किया जा सकता है।
कृपया बेझिझक मुझे कॉल करें या मेरी ईमेल आईडी पर लिखें. smparekh6@gmail.com
संदीप पारेख*
पूर्व सदस्य अजय बागड़िया ने उठाए सवाल
ओडीए के सदस्य व अधिवक्ता अजय बागड़िया ने साफ कहा है कि बोर्ड में हमने दो सदस्य पारिख और लुल्ला को इसलिए भेजा है कि वह हमारे स्कूल के हितों की रक्षा करें। हम उनसे सवाल पूछेंगे और उन्हें जवाब देना होगा। बोर्ड में हो रहे किसी मुद्दे पर हां में हां मिलाने के लिए इन्हें नहीं चुना है। हम चाहते हैं यह हमारी आवाज बने और स्कूल के हित पहले देखें। रही बात प्रिंसीपल की इस मामले में सफाई का कोई मतलब नहीं बनता है। वह तो केवल एम्पलाई है।