इंदौर में राजा- महाराजाओं के डेली कॉलेज बोर्ड पर 17 करोड़ के घपले के आरोप, सदस्य ने ही उठा दिए सवाल, ओडीए सदस्यों में गहरी नाराजगी

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Chakresh
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इंदौर में राजा- महाराजाओं के डेली कॉलेज बोर्ड पर 17 करोड़ के घपले के आरोप, सदस्य ने ही उठा दिए सवाल, ओडीए सदस्यों में गहरी नाराजगी

संजय गुप्ता @ INDORE

इंदौर के राजा- महाराजाओं के स्कूल के रूप में पहचान रखने वाले डेली कॉलेज के हाईप्रोफाइल बोर्ड गवर्नर्स पर 17 करोड़ के घोटाले के गंभीर आरोप लगे हैं। यह आरोप और किसी के नहीं, बल्कि बोर्ड के ही गंभीर और ईमानदार सदस्य के रूप में पहचान रखने वाले संदीप पारिख के एक संदेश के बाद उठे हैं, जो उन्होंने ओल्ड डेलियंस कैटेगरी (ODA) के सदस्यों को भेजे हैं। पारिख ने गंभीर बात उठाई है कि कॉलेज का जो खर्च साल 2021-22 के वित्तीय साल में केवल 53 करोड़ रुपए था, वह साल 2022-23 में एकदम से बढ़कर 70 करोड़ रुपए हो गया है। एक साल में ही 35 फीसदी की बढ़ोतरी खर्च में हो गई है। पारिख ने इस अप्रत्याशित खर्च की जानकारी ओडीए को दे दी है। बताया है कि 24 सितंबर को बोर्ड मीटिंग में यह खर्च वित्तीय अनुमोदन के लिए पेश हुआ है।


डेली कॉलेज के बोर्ड में ये हैं शामिल

  • घोटाले के आरोप के पहले देखते हैं कि डेली कॉलेज के बोर्ड में कौन-कौन किसी कैटेगरी से सदस्य हैं
  • ओल्ड डोनर्स कैटेगरी (पुराने राजा-महाराजा हैं )- नरेंद्र सिंह झाबुआ और प्रियवत खिलची
  • न्यू डोनर्स कैटेगरी (नए दानदाता)- हरपाल सिंह (उर्फ मोनू भाटिया)
  • ओल्ड डोनर्स एसोसिएशन (पूर्व छात्र)- संदीप पारिख और धीरज लुल्ला
  • सरकारी प्रतिनिधि- विक्रम पंवार (देवास महारानी गायत्री राजे के पुत्र) और राजवर्धन नरसिंहगढ़
  • पैरेंटेस कैटेगरी- संजय पाहवा और सुमित चंडोक
  • प्रिंसिपल बोर्ड की सचिव- गुणमीत बिंद्रा


क्यों उठे हैं खर्चे पर सवाल?

सूत्रों के अनुसार बोर्ड ने खर्चे को मंजूरी दी है और इस बजट में कई खर्च ऐसे हैं जो बेतहाशा बढ गए हैं। जैसे कि लीगल सेल में जो खर्च सात-आठ लाख रुपए प्रति साल था, वह बढ़कर 35 लाख से ज्यादा हो चुका है। जो अवार्ड सेरेमनी पहले 30 लाख से कम में होती थी, उसका खर्च एक करोड़ के पार हो गया। इसी तरह सिक्योरिटी से लेकर कई खर्च में बेतहाशा बढ़ोतरी हुई है। पारिख ने अपने संदेश में यह भी लिखा है कि खर्च बढ़ने की कोई खास वजह नहीं समझ आती है, क्योकि छात्रों की संख्या तो पूर्ववत ही है। ऐसे में इस खर्च की इतनी बढ़ोतरी संजिदा विषय है। जिस पर सभी के सुझाव चाहिए, ताकि इसे आगे देखा जा सके, यह गंभीर मुद्दा है।


पारिख के संदेश में क्या है

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कई पुराने ओल्ड डेलियंस द्वारा उठाए गए प्रश्नों के उत्तर में मुझे यह पुष्टि करनी है कि 24/9/23 को डीसी में एक बोर्ड बैठक हुई थी, जहां वर्ष 22-23 के लिए डीसी का वित्तीय विवरण अनुमोदन के लिए प्रस्तुत किया गया था। मैं आपका ध्यान इस गंभीर चिंता की ओर आकर्षित कर रहा हूं कि राजस्व व्यय में लगभग 17.00 करोड़ की तेजी से वृद्धि हुई है। फीस में बढ़ोतरी के बावजूद, दुर्भाग्य से 31/3/23 को नेट सरप्लस भी बड़ी चिंता का विषय बना हुआ है। स्कूल की संख्या पिछले साल की तरह ही बनी हुई है। मैंने अपनी गंभीर चिंताओं और टिप्पणियों को बोर्ड के साथ साझा किया है। मैं स्कूल के कामकाज में पारदर्शिता के लिए प्रयास करता हूं। इसलिए मैं आपसे उन मामलों में अपने सुझाव साझा करने का अनुरोध करता हूं, जिन्हें स्कूल की बेहतरी के लिए लागू किया जा सकता है।

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(संदीप पारेख की चैट, जिसमें उन्होंने मामले को उठाया है)


प्रिंसिपल बोर्ड के बचाव में- कोविड काल को बताया जिम्मेदार

उधर बोर्ड की बजाय इस मामले में प्रिंसिपल मैदान में उतर आई हैं। उन्होंने ओडीए के अध्यक्ष कमलेश कासलीवाल और सचिव तेजवीर जुनेजा को पत्र लिखा। प्रिंसिपल डॉ. गुणमीत बिंद्रा ने इसमें लिखा है ओडीए के संदेश से गहरा दुख हुआ है। हम लगातार डीसी को आगे बढ़ाने का काम कर रहे हैं। यह खर्च इसलिए अधिक लग रहा है, क्योंकि पहले कोविड के चलते आयोजन बंद थे और अन्य गतिविधियां भी सीमित स्तर पर थीं, लेकिन अब यह आयोजन लगातार हो रहे हैं। डीसी खेल व अन्य गतिविधियों में आगे आया है। यह खर्च उचित तरीके से किया गया है।


पूर्व सदस्य अजय बागड़िया ने भी उठाए सवाल

ओडीए के सदस्य व अधिवक्ता अजय बागड़िया ने इस मामले को गंभीरता से लिया है। उन्होंने द सूत्र से चर्चा में साफ तौर पर कहा कि प्रिंसिपल केवल एक एम्पलाई हैं। उनका काम बोर्ड की नीतिगत फैसले के पालन का है, इसलिए उनके इस मामले में सफाई देने से कुछ नहीं होगा। दूसरा यह है कि सवाल उठ रहा है कि क्या खर्च 17 करोड़ इसलिए अधिक बढ़ाया गया है कि यह घूमकर बोर्ड सदस्यों के पास अप्रत्यक्ष तौर पर पहुंचे। इसका जवाब तो देना होगा।

दीपक कासलीवाल ने लगाई याचिका

वहीं एक अन्य सदस्य दीपक कासलीवाल ने नीतिगत बिंदु उठाते हुए कहा कि डेली कॉलेज मप्र रजिस्ट्रीकरण एक्ट 1973 में रजिस्टर्ड है। किसी भी वित्तीय अनुमोदन, बजट के लिए जरूरी है कि सोसायटी के अंगों की एजीएम बुलाई जाए। ओडीए सदस्य होने के नाते में भी सोसायटी का अंग हूं और मुझे भी और सभी को जानने का अधिकार है कि कहां क्या खर्च हो रहा है? बिना एजीएम बुलाए अनुमोदन कैसे हो सकता है? इस मामले में मैंने पहले ही हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की हुई है, फिर यह तो अवमानना है। मैं इस मुद्दे को फिर उठा रहा हूं। डीसी बोर्ड की आड़ में खर्च बढ़ाकर किस तरह का घोटाला कर रही है? इसका जवाब तो सामने आना चाहिए और पारदर्शिता होना चाहिए।



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