संजय गुप्ता, INDORE. यशवंत क्लब की नई सदस्यता पर रोक लगाने के फर्म एंड सोसायटी के आदेश के बाद भी क्लब के सचिव संजय गोरानी ने खेल कर दिया है। सूत्रों के अनुसार सदस्यता रोके जाने की खबर लगते ही सबसे पहले उन्होंने प्राथमिकता क्रम से आए 38 सदस्यों की सदस्यता प्रक्रिया को आगे बढ़ा दिया है, ताकि किसी भी कानूनी प्रक्रिया से इससे किसी को आंच नहीं आए। इसमें कई उनके करीबी हैं। वहीं उन्होंने अगले दिन शुक्रवार सुबह को फर्म एंड सोसायटी के असिस्टेंट रजिस्ट्रार बीडी कुबेर के पास जाकर आदेश को लेकर बहस की और उन पर दबाव बनाने का प्रयास किया, जिस पर कुबेर ने उन्हें चलता कर दिया और कहा कि जो कहना है सुनवाई के दौरान कहना। (द सूत्र ने इन मामलों को लेकर चेयरमैन टोनी सचदेवा और सचिव संजय गोरानी से संपर्क किया, मैसेज किया, लेकिन जवाब नहीं दिया गया)
प्रस्ताव के अनुसार पहले संविधान संशोधन होना था फिर रखनी थी पारदर्शिता
- द सूत्र के पास सचिव गोरानी के हस्ताक्षर वाला नई सदस्यता संबंधी प्रस्ताव की कॉपी मौजूद है। इसमें साफ है कि 100 सदस्य बनाए जाने (6 जून 2023 का) के लिए ये प्रक्रिया होगी।
- संविधान में जरूरी संशोधन किया जाएगा।
- पारदर्शिता को बरकरार रखा जाएगा। इसके लिए फार्म जारी होंगे, सभी मानकों के साथ इनकी छंटनी होगी और फिर 50 सदस्यों की बैलेटिंग कमेटी बनेगी।
संविधान संशोधन बिना ही फॉर्म दे दिए, पारदर्शिता गायब
संजय गोरानी अपने लोगों को क्लब में लाने के लिए इस तरह बेचैन थे कि उन्होंने अपने ही प्रस्ताव को दरकिनार कर दिया। इस केस में फर्म्स एंड सोसायटी में याचिका लगाने वाले बलमीत सिंह छाबड़ा कहते हैं कि संविधान में संशोधन किए बिना ही 15-15 हजार रुपए में फॉर्म दे दिए। कुल 182 फॉर्म आए। इसमें से 172 को उन्होंने मंजूर करने की सूची जारी की, लेकिन 10 फॉर्म किसके थे और क्यों रदद् हुए ये आज तक क्लब को नहीं बताया गया। ना ही ये बताया गया कि जिन 172 सदस्यों के मंजूर किए गए उनका बैकग्राउंड क्या है। क्या उन पर कोई आपराधिक केस नहीं है क्या ? ये क्लब के सदस्यों ने पूछा, लेकिन उन्होंने बताने से इनकार कर दिया।
प्राथमिकता क्रम में अपने वालों को आगे करने का खेल
क्लब के सचिव ने एक और चालाकी दिखाई, इन 172 में से हर साल 25-25 सदस्यों को सदस्यता देना है। इसके लिए प्राथमिकता क्रम मैनेजिंग कमेटी ने तय किया। लेकिन ये कैसे तय हुआ ? क्या लॉटरी निकाली या कोई अन्य तरीका अपनाया। ये किसी को आज तक नहीं बताया गया। जब 172 लोगों की सूची आई तो इसमें कई अपने वालों को उन्होंने पहले 40 सदस्यों की सूची में रख लिया। बाकी भी जो लोग चुने गए हैं, इसमें से दर्जनभर पर कई तरह के केस मौजूद है, लेकिन इनकी छंटनी नहीं की गई।
गैंगरेप का आरोपी रह चुका मोनू सूची में
गोरानी अलग-अलग जगह बयान दे चुके हैं कि उन्होंने अपराधिक रिकॉर्ड वालों को बाहर किया है। फिर उनकी जारी 172 चयनित सदस्यता आवेदकों में प्राथमिकता में 11वें नंबर पर हरपाल उर्फ मोनू भाटिया पर सवाल खड़े हो रहे हैं। इन पर एक महिला एक होटल में ले जाकर गैंगरेप करने का आरोप लगा चुकी है। इस मामले में केस खत्म हुआ, लेकिन महिला ने कोर्ट में निजी परिवाद लगाया हुआ है, हद तो ये है उन पर इसी केस से जुड़ी फाइल कोर्ट से चुराने के आरोप लगे हैं और जिला कोर्ट में भी ये केस चल रहा है जिसमें 16 अक्टूबर को ही सुनवाई हुई है। इसमें कोर्ट द्वारा कराई गई जांच में भी सामने आ चुका है कि उन्होंने कोर्ट से फाइल चुराई है और कॉपी हाईकोर्ट में दाखिल की है।
भ्रष्टाचार में घिरे आबकारी अधिकारी पराक्रम भी सूची में
गोरानी ने इसमें भ्रष्टाचार के मामले में सस्पेंड चल रहे आबकारी अधिकारी पराक्रम सिंह चंद्रावत को भी सदस्यता सूची में चुना है। इन पर धार, इंदौर में लोकायुक्त छापे मार चुका है और केस चल रहा है, वे अभी सस्पेंड हैं। ये 25 लाख नंबर एक में भरेंगे और साथ ही क्लब सदस्यता पर जीएसटी भी देंगे। गोरानी ने अपने करीबी बिल्डर अविनाश अग्रवाल को भी सदस्यता क्रम में 14वें नंबर पर रखा है। अग्रवाल के ही पार्टनर आशीष गुप्ता और मोनू भाटिया के बहुत करीबी संबंध है। इन्हीं सबंधों के कारण मोनू और अविनाश को आगे रखा गया है। कई विवादित बिल्डर इस सूची में शामिल हैं, जिनमें कुछ पर थानो में केस है, जो कई लोगों के खिलाफ कोर्ट में केस चल रहा है। आरोप है कि जिनके गोरानी से संबंध अच्छे नहीं थे, उनके फार्म या तो रिजेक्ट किए गए या फिर उन्हें प्राथमिकता क्रम में पीछे रखवा दिया गया। सदस्यता सूची को लेकर कोई पारदर्शिता नहीं रखी गई।
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फर्म्स एंड सोसायटी में लगी याचिका में ये है तर्क
सदस्य बलमीत सिंह के लिए अधिवक्ता अजय मिश्रा द्वारा लगाई याचिका में ये कहा गया है कि स्पेशल कैटेगरी में 100 सदस्य बनाए जाने हैं, हर साल 25 साल और इनसे 25-25 रुपए सदस्यता शुल्क (जीएसटी अलग) लिया जाएगा। इसके लिए जो संविधान संशोधन होना था, वह हुआ ही नहीं और 15-15 हजार में फॉर्म दे दिए। 182 में से 172 फॉर्म वैध होना पाया गया। कहा गया आपराधिक रिकॉर्ड वालों को हटा दिया। ये जानकारी नहीं दी गई क्यों हटाए गए और जिनके स्वीकार किए उनके क्या रिकॉर्ड हैं। मनमर्जी से पूरा काम किया गया और पारदर्शिता नहीं रखी गई। इसके अलावा भी क्लब में कई अनियमितता हो रही हैं। यशवंत क्लब को रईसों का क्लब कहा जाता है। इंदौर के कई धनवान इसके सदस्य हैं।